Attirampakkam
jp Singh
2025-05-19 20:53:27
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अत्तिरमपक्कम सभ्यता
अत्तिरमपक्कम (Attirampakkam) सभ्यता, जिसे सामान्यतः अत्तिरमपक्कम पुरातात्विक स्थल के रूप में जाना जाता है, दक्षिण भारत के तमिलनाडु में कोरट्टलयार नदी की घाटी में स्थित एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक स्थल है। यह स्थल पूर्व पुरापाषाण युग (Lower Paleolithic) से लेकर मध्य पुरापाषाण युग (Middle Paleolithic) तक की मानव गतिविधियों का साक्ष्य प्रदान करता है और भारतीय उपमहाद्वीप में मानव विकास, तकनीकी प्रगति, और पर्यावरणीय अनुकूलन को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अत्तिरमपक्कम को दक्षिण एशिया में सबसे प्राचीन मानव निवास स्थलों में से एक माना जाता है, और इसकी खोज ने पुरातत्वविदों को प्राचीन मानव की उपस्थिति और उनकी पाषाण तकनीक के बारे में नई जानकारी प्रदान की है। नीचे अत्तिरमपक्कम सभ्यता का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है
अत्तिरमपक्कम की पृष्ठभूमि
स्थान: अत्तिरमपक्कम, तमिलनाडु के तिरुवल्लुर जिले में चेन्नई से लगभग 60 किमी उत्तर-पश्चिम में कोरट्टलयार नदी के किनारे स्थित है। यह क्षेत्र उपजाऊ मैदानों और नदियों से समृद्ध है, जो प्राचीन मानव के लिए निवास के लिए उपयुक्त था।
पूर्व पुरापाषाण युग: लगभग 18 लाख वर्ष पूर्व से 3,00,000 वर्ष पूर्व (प्लीस्टोसीन युग)।
मध्य पुरापाषाण युग: लगभग 3,00,000 से 50,000 वर्ष पूर्व।
कुछ स्थलों पर बाद के काल (मध्यपाषाण और नवपाषाण) के अवशेष भी मिले हैं, लेकिन मुख्य महत्व पूर्व और मध्य पुरापाषाण युग का है।
खोज
अत्तिरमपक्कम की खोज सबसे पहले 1863 में ब्रिटिश भूवैज्ञानिक रॉबर्ट ब्रूस फूट ने की, जिन्होंने इस क्षेत्र से पाषाण उपकरण प्राप्त किए।
20वीं शताब्दी में भारतीय पुरातत्वविदों, जैसे के. डी. बनर्जी और ए. स्वामी, ने इस स्थल पर और अनुसंधान किया।
सबसे महत्वपूर्ण उत्खनन 1999 से 2018 तक शांति पप्पू और कुमार अखिलेश के नेतृत्व में हुआ, जिन्होंने अत्तिरमपक्कम को वैश्विक पुरातात्विक महत्व का स्थल सिद्ध किया। उनके शोध ने 2018 में साइंस जर्नल में प्रकाशित एक लेख के माध्यम से दुनिया का ध्यान खींचा।
पर्यावरण
अत्तिरमपक्कम का क्षेत्र प्लीस्टोसीन युग में नम और उपजाऊ था, जिसमें घने जंगल, नदियां, और प्रचुर मात्रा में क्वार्टजाइट पत्थर उपलब्ध थे।
जलवायु परिवर्तन (हिम और अंतर्हिम काल) ने मानव को नदियों और जल स्रोतों के पास रहने के लिए प्रेरित किया।
महत्व
अत्तिरमपक्कम दक्षिण एशिया में अशूलियन संस्कृति (Acheulean Culture) के सबसे प्राचीन साक्ष्यों में से एक है, जो अफ्रीका और यूरोप की अशूलियन परंपराओं से तुलनीय है।
यह स्थल भारतीय उपमहाद्वीप में मानव प्रवास और तकनीकी विकास का अध्ययन केंद्र है।
अत्तिरमपक्कम सभ्यता की विशेषताएं
अत्तिरमपक्कम सभ्यता की विशेषताएं इसके पाषाण उपकरणों, पुरातात्विक अवशेषों, और प्राचीन मानव की जीवनशैली के आधार पर निम्नलिखित हैं
1. पाषाण उपकरण
अत्तिरमपक्कम की पहचान इसके अशूलियन उपकरणों से होती है, जो प्राचीन मानव की उन्नत पाषाण तकनीक को दर्शाते हैं। ये उपकरण मुख्य रूप से क्वार्टजाइट और अन्य स्थानीय पत्थरों से बने थे। प्रमुख उपकरण निम्नलिखित हैं
हैंड-एक्स (हस्तकुठार)
बड़े, दोहरी धार वाले उपकरण, जो काटने, खुरचने, और शिकार के लिए उपयोगी थे।
अत्तिरमपक्कम से प्राप्त हैंड-एक्स अफ्रीका और यूरोप के अशूलियन हैंड-एक्स से मिलते-जुलते हैं, जो वैश्विक तकनीकी प्रसार को दर्शाते हैं।
क्लीवर (Cleaver)
चौकोर धार वाले उपकरण, जो पेड़ काटने, चीरने, और खाल उतारने में उपयोगी थे।
स्क्रेपर (Scraper)
खुरचने वाले उपकरण, जो लकड़ी को चिकना करने और जानवरों की खाल तैयार करने में उपयोगी थे।
कोर और फ्लेकउपकरण
कोर (Core): पत्थर का मुख्य भाग, जिससे फ्लेक्स (Flakes) निकाले जाते थे।
फ्लेक्स: छोटे, तेज टुकड़े, जो तीर या छोटे चाकू के रूप में उपयोगी थे।
लेवालुआ तकनीक (Levallois Technique): मध्य पुरापाषाण युग में अत्तिरमपक्कम से लेवालुआ तकनीक के साक्ष्य मिले हैं, जो उपकरण निर्माण की एक उन्नत विधि थी। इसमें पत्थर को पहले से तैयार कर नियंत्रित तरीके से फ्लेक्स निकाले जाते थे। यह तकनीक अफ्रीका और यूरोप में भी प्रचलित थी, जो दक्षिण एशिया में प्रारंभिक मानव की तकनीकी प्रगति को दर्शाती है।
काल निर्धारण
2018 के शोध के अनुसार, अत्तिरमपक्कम के अशूलियन उपकरण 17.2 लाख वर्ष पुराने हैं, जो दक्षिण एशिया में अब तक के सबसे प्राचीन उपकरणों में से हैं। मध्य पुरापाषाण युग के उपकरण 3,85,000 से 1,72,000 वर्ष पुराने हैं।
उदाहरण: अत्तिरमपक्कम से प्राप्त हैंड-एक्स और क्लीवर दक्षिण भारत की मद्रासियन संस्कृति का हिस्सा हैं, जो अशूलियन परंपरा से संबंधित है।
2. जीवनशैली और आर्थिक गतिविधियां
शिकार-संग्रह
अत्तिरमपक्कम के मानव शिकारी-संग्रहकर्ता (Hunter-Gatherers) थे। वे जंगली जानवरों (हिरण, सुअर, और छोटे स्तनधारी) का शिकार और जंगली फल, जड़ें, और बीज इकट्ठा करते थे। कोरट्टलयार नदी ने मछली पकड़ने और जल स्रोत की सुविधा प्रदान की।
खानाबदोश जीवन
मानव छोटे समूहों (10-30 लोग) में रहता था और मौसमी शिविर बनाता था। नदी के किनारे अस्थायी बस्तियां थीं। गुफाएं और चट्टानी आश्रय प्राकृतिक आपदाओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा प्रदान करते थे।
पर्यावरणीय अनुकूलन
प्लीस्टोसीन युग में जलवायु परिवर्तनों (हिम और अंतर्हिम काल) ने मानव को नदियों और जंगलों के पास रहने के लिए प्रेरित किया।
प्रारंभिक तकनीक
मानव अग्नि का उपयोग करने लगा था, हालांकि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण सीमित हैं। बर्तन निर्माण, कृषि, और पशुपालन का ज्ञान नहीं था।
3. सामाजिक और धार्मिक संगठन
सामाजिक संरचना
छोटे कबीले-आधारित समूह, जिनमें सहयोग और श्रम विभाजन प्रचलित था। नेतृत्व संभवतः उम्र और अनुभव पर आधारित था।
लिंग आधारित भूमिकाएं: पुरुष शिकार करते थे, जबकि महिलाएं भोजन संग्रह और बच्चों की देखभाल में योगदान देती थीं।
धार्मिक विश्वास
धार्मिक प्रथाओं के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हैं, लेकिन प्रकृति पूजा (नदियां, पेड़, और जानवर) संभव थी।
कुछ विद्वानों का मानना है कि उपकरणों पर चिह्न बनाने की प्रथा जादुई विश्वासों से जुड़ी हो सकती थी।
मृतक संस्कार
दफन प्रथाओं के प्रमाण नहीं मिले हैं, जो इस काल की साधारण जीवनशैली को दर्शाता है।
4. पुरातात्विक अवशेष
मानव अवशेष
अत्तिरमपक्कम से मानव कंकाल या जीवाश्म नहीं मिले हैं, लेकिन उपकरणों के आधार पर होमो इरेक्टस या प्रारंभिक होमो सेपियन्स की उपस्थिति मानी जाती है।
कोरट्टलयार नदी ने मछली पकड़ने और जल स्रोत की सुविधा प्रदान की।
खानाबदोश जीवन
मानव छोटे समूहों (10-30 लोग) में रहता था और मौसमी शिविर बनाता था। नदी के किनारे अस्थायी बस्तियां थीं।
गुफाएं और चट्टानी आश्रय प्राकृतिक आपदाओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा प्रदान करते थे।
पर्यावरणीय अनुकूलन
प्लीस्टोसीन युग में जलवायु परिवर्तनों (हिम और अंतर्हिम काल) ने मानव को नदियों और जंगलों के पास रहने के लिए प्रेरित किया।
क्वार्टजाइट पत्थरों की प्रचुरता ने उपकरण निर्माण को बढ़ावा दिया।
प्रारंभिक तकनीक
मानव अग्नि का उपयोग करने लगा था, हालांकि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण सीमित हैं।
बर्तन निर्माण, कृषि, और पशुपालन का ज्ञान नहीं था।
3. सामाजिक और धार्मिक संगठन
सामाजिक संरचना
छोटे कबीले-आधारित समूह, जिनमें सहयोग और श्रम विभाजन प्रचलित था। नेतृत्व संभवतः उम्र और अनुभव पर आधारित था।
लिंग आधारित भूमिकाएं: पुरुष शिकार करते थे, जबकि महिलाएं भोजन संग्रह और बच्चों की देखभाल में योगदान देती थीं।
धार्मिक विश्वास
धार्मिक प्रथाओं के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हैं, लेकिन प्रकृति पूजा (नदियां, पेड़, और जानवर) संभव थी।
कुछ विद्वानों का मानना है कि उपकरणों पर चिह्न बनाने की प्रथा जादुई विश्वासों से जुड़ी हो सकती थी।
मृतक संस्कार
दफन प्रथाओं के प्रमाण नहीं मिले हैं, जो इस काल की साधारण जीवनशैली को दर्शाता है।
4. पुरातात्विक अवशेष
मानव अवशेष
अत्तिरमपक्कम से मानव कंकाल या जीवाश्म नहीं मिले हैं, लेकिन उपकरणों के आधार पर होमो इरेक्टस या प्रारंभिक होमो सेपियन्स की उपस्थिति मानी जाती है।
पशु अवशेष
कुछ स्थलों पर हिरण, सुअर, और अन्य छोटे जानवरों की हड्डियां मिली हैं, जो शिकार की गतिविधियों को दर्शाती हैं।
परतें (Stratigraphy)
अत्तिरमपक्कम में 8 मीटर गहरी पुरातात्विक परतें मिली हैं, जो विभिन्न कालों (पूर्व और मध्य पुरापाषाण) की गतिविधियों को दर्शाती हैं।
मिट्टी और रेत की परतें जलवायु परिवर्तनों और नदी की गतिविधियों को समझने में मदद करती हैं।
उदाहरण
शांति पप्पू के उत्खनन में प्राप्त लेवालुआ उपकरण मध्य पुरापाषाण युग की उन्नत तकनीक को दर्शाते हैं।
5. सांस्कृतिक और तकनीकी महत्व
अशूलियन संस्कृति
अत्तिरमपक्कम दक्षिण भारत में मद्रासियन संस्कृति का हिस्सा है, जो अशूलियन परंपरा से संबंधित है। यह परंपरा अफ्रीका में 17 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुई और भारत में अत्तिरमपक्कम के माध्यम से फैली।
हैंड-एक्स और क्लीवर की समरूपता अफ्रीका, यूरोप, और भारत के बीच तकनीकी समानता को दर्शाती है।
लेवालुआ तकनीक
मध्य पुरापाषाण युग में लेवालुआ तकनीक का उपयोग दक्षिण एशिया में तकनीकी प्रगति का संकेत देता है। यह तकनीक उपकरण निर्माण में नियंत्रण और दक्षता को दर्शाती है।
मानव प्रवास
अत्तिरमपक्कम के उपकरण दक्षिण एशिया में प्रारंभिक मानव प्रवास (Out of Africa Theory) का समर्थन करते हैं। यह संभव है कि होमो इरेक्टस अफ्रीका से भारत आए और अत्तिरमपक्कम जैसे स्थलों पर बस्तियां बनाईं।
वैश्विक संदर्भ
अत्तिरमपक्कम के उपकरण अफ्रीका की ओल्डोवान और अशूलियन संस्कृतियों से तुलनीय हैं, जो वैश्विक मानव विकास में भारत की भूमिका को रेखांकित करते हैं।
अत्तिरमपक्कम के प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य
हैंड-एक्स और क्लीवर (17.2 लाख वर्ष पुराने)
ये उपकरण अशूलियन संस्कृति के प्रारंभिक साक्ष्य हैं और दक्षिण भारत की मद्रासियन परंपरा का हिस्सा हैं।
लेवालुआ उपकरण (3,85,000-1,72,000 वर्ष पुराने)
मध्य पुरापाषाण युग की उन्नत तकनीक, जो नियंत्रित फ्लेक निर्माण को दर्शाती है।
पर्यावरणीय साक्ष्य
मिट्टी की परतें और जीवाश्म पौधे प्लीस्टोसीन युग के नम और उपजाऊ पर्यावरण को दर्शाते हैं।
उत्खनन
शांति पप्पू और कुमार अखिलेश के नेतृत्व में 1999-2018 के उत्खनन ने अत्तिरमपक्कम को वैश्विक पुरातत्व में महत्वपूर्ण बनाया।
अत्तिरमपक्कम का महत्व
मानव विकास का साक्ष्य
अत्तिरमपक्कम दक्षिण एशिया में होमो इरेक्टस और प्रारंभिक होमो सेपियन्स की उपस्थिति का प्रमाण देता है। यह स्थल भारत में मानव प्रवास और विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
पाषाण तकनीक: अशूलियन और लेवालुआ उपकरण प्राचीन मानव की उन्नत तकनीकी क्षमता को दर्शाते हैं, जो वैश्विक अशूलियन परंपराओं से तुलनीय हैं।
भारत में योगदान: अत्तिरमपक्कम ने दक्षिण भारत की प्रागैतिहासिक संस्कृति को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह मद्रासियन संस्कृति का एक प्रमुख स्थल है, जो उत्तर भारत की सोहन संस्कृति से भिन्न है।
अत्तिरमपक्कम की चुनौतियां
सीमित मानव अवशेष :- मानव कंकाल या जीवाश्मों की अनुपस्थिति के कारण सामाजिक और धार्मिक जीवन का अध्ययन कठिन है।
Conclusion
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