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Chalcolithic Age
jp Singh 2025-05-19 11:41:34
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ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Age)

ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Age) प्रागैतिहासिक काल का एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल है, जो पाषाण युग और धातु युग के बीच की कड़ी माना जाता है। यह युग लगभग 4,000 ईसा पूर्व से 2,000 ईसा पूर्व तक फैला हुआ है, हालांकि भारत में क्षेत्रीय भिन्नताओं के कारण समयावधि में अंतर देखा जाता है। इस काल में मानव ने तांबे (Copper) के औजारों का उपयोग शुरू किया, लेकिन पत्थर के औजार भी प्रचलन में रहे। ताम्रपाषाण युग में कृषि, पशुपालन, और स्थायी बस्तियों में प्रगति हुई, और प्रारंभिक शहरीकरण की नींव पड़ी। भारत में इस युग का सबसे उल्लेखनीय उदाहरण हड़प्पा सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता) है, जो ताम्रपाषाण युग की उन्नत संस्कृति का प्रतीक है। नीचे ताम्रपाषाण युग का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है
ताम्रपाषाण युग की पृष्ठभूमि
समयावधि: लगभग 4,000 ईसा पूर्व से 2,000 ईसा पूर्व तक (भारत में 3,000 ईसा पूर्व से 1,500 ईसा पूर्व तक कुछ क्षेत्रों में)।
पर्यावरणीय स्थिति: इस युग में जलवायु अनुकूल थी, जिसने कृषि और बस्तियों के विस्तार को बढ़ावा दिया। नदियों (सिंधु, घग्गर, गंगा) के किनारे उपजाऊ भूमि ने खेती और व्यापार को प्रोत्साहित किया।
मानव प्रजाति: होमो सेपियन्स (आधुनिक मानव) इस युग में प्रमुख थे। सामाजिक और तकनीकी विकास ने मानव को अधिक संगठित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया।
भारत में स्थिति: भारत में ताम्रपाषाण युग की कई संस्कृतियां विकसित हुईं, जैसे हड़प्पा सभ्यता, आहड़-बनास संस्कृति (राजस्थान), मालवा संस्कृति (मध्य प्रदेश), और जोरवे संस्कृति (महाराष्ट्र)। ये संस्कृतियां ग्रामीण और शहरी दोनों रूपों में उभरीं।
ताम्रपाषाण युग की विशेषताएं
ताम्रपाषाण युग में मानव ने तकनीकी, सामाजिक, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की। इस युग की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. तांबे के औजार और तकनीक
तांबे का उपयोग: इस युग की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता तांबे के औजारों का निर्माण था। तांबा नरम धातु है, जिसे गलाकर विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता था।
प्रमुख औजार: चाकू, कुल्हाड़ी, भाले, हंसिया, और मछली पकड़ने के हुक।
निर्माण प्रक्रिया: तांबे को खदानों से निकाला जाता था और भट्टियों में गलाकर ढाला जाता था। कुछ औजारों में तांबे और टिन को मिलाकर कांस्य (Bronze) भी बनाया गया, हालांकि कांस्य का उपयोग सीमित था।
पत्थर के औजार: तांबे के साथ-साथ पॉलिश किए गए पत्थर के औजार (जैसे माइक्रोलिथ्स और कुल्हाड़ियां) भी उपयोग में रहे, जिसके कारण इसे ताम्रपाषाण (Copper-Stone) युग कहा जाता है।
भारत में उदाहरण: हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में तांबे और कांस्य के औजार, जैसे चाकू, दर्पण, और बर्तन, मिले हैं। आहड़ (राजस्थान) में तांबे की कुल्हाड़ियां मिली हैं।
प्रभाव: तांबे के औजारों ने कृषि, शिकार, और शिल्पकारिता को अधिक कुशल बनाया।
2. कृषि और पशुपालन
कृषि में प्रगति: नवपाषाण युग से शुरू हुई खेती को और परिष्कृत किया गया। निम्नलिखित फसलों की खेती आम थी:
गेहूं, जौ, चावल, दालें (मूंग, उड़द, मसूर), और कपास।
हड़प्पा सभ्यता में गेहूं और जौ प्रमुख फसलें थीं, जबकि दक्षिण भारत में चावल की खेती बढ़ी।
सिंचाई: नहरों और कुओं के उपयोग से सिंचाई को व्यवस्थित किया गया। हड़प्पा में नहरों के अवशेष मिले हैं।
पशुपालन: गाय, भैंस, भेड़, बकरी, और सुअर पालतू थे। हड़प्पा सभ्यता में बैल का उपयोग खेती और परिवहन में होता था। कुछ स्थलों पर घोड़े के प्रारंभिक प्रमाण भी मिले हैं।
प्रभाव: कृषि और पशुपालन ने भोजन की प्रचुरता सुनिश्चित की, जिससे जनसंख्या वृद्धि और बस्तियों का विस्तार हुआ।
3. स्थायी बस्तियां और प्रारंभिक शहरीकरण
ग्रामीण बस्तियां: अधिकांश ताम्रपाषाण संस्कृतियां ग्रामीण थीं, जिनमें मिट्टी और पत्थर के घर बनाए गए। उदाहरण: इनामगांव (महाराष्ट्र) और गिलुंड (राजस्थान)।
शहरी बस्तियां: हड़प्पा सभ्यता इस युग की सबसे उन्नत शहरी संस्कृति थी। इसके प्रमुख लक्षण
सुनियोजित नगर: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, और लोथल जैसे नगरों में ग्रिड पैटर्न वाली सड़कें, जल निकासी व्यवस्था, और सार्वजनिक भवन (जैसे विशाल स्नानागार) थे।
आवास: पक्की ईंटों के मकान, जिनमें कई कमरे और आंगन होते थे।
भंडारण: अनाज के लिए बड़े गोदाम, जैसे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में।
सामाजिक संगठन: बस्तियों में सामाजिक स्तरीकरण स्पष्ट था। अमीर और गरीब के बीच अंतर उभरा। शिल्पकार, व्यापारी, और किसान जैसे विशिष्ट समूह बने।
भारत में उदाहरण: हड़प्पा सभ्यता के अलावा, आहड़-बनास और मालवा संस्कृतियों में छोटी बस्तियां थीं।
4. शिल्प और कला
मिट्टी के बर्तन: ताम्रपाषाण युग में मिट्टी के बर्तनों का निर्माण उन्नत हुआ। बर्तनों को चाक पर बनाया जाता था और उन पर रंगीन चित्रकारी की जाती थी।
हड़प्पा सभ्यता: लाल और काले रंग के बर्तन, जिन पर ज्यामितीय और प्राकृतिक चित्र (पेड़, जानवर) बने होते थे।
आहड़-बनास संस्कृति: काले और लाल बर्तन, जिन पर सफेद चित्रकारी थी।
मूर्तियां और आभूषण: मिट्टी, तांबे, और पत्थर से बनी मूर्तियां, जो उर्वरता पूजा या धार्मिक प्रतीकों से संबंधित थीं। हड़प्पा में प्रसिद्ध नर्तकी मूर्ति (कांस्य) और पशुपति मुहर मिली हैं।
आभूषण: सोना, चांदी, तांबा, सीपियां, और अर्ध-कीमती पत्थरों (लैपिस लाजुली, कार्नेलियन) से बने हार, कंगन, और मनके।
शिल्पकारिता: धातु गलाने, बर्तन बनाने, और कपड़ा बुनने में विशेषज्ञता। हड़प्पा में सूती कपड़े के अवशेष मिले हैं।
भारत में उदाहरण: मोहनजोदड़ो में तांबे के बर्तन और लोथल में मनके बनाने की कार्यशाला।
5. व्यापार और वाणिज्य
वस्तु विनिमय: अनाज, बर्तन, और औजारों का आदान-प्रदान आम था। हड़प्पा सभ्यता में मानकीकृत बाट और माप का उपयोग होता था।
लंबी दूरी का व्यापार: हड़प्पा सभ्यता का मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) और अन्य क्षेत्रों आंतरिक व्यापार: स्थानीय स्तर पर अनाज, बर्तन, और शिल्प वस्तुओं का आदान-प्रदान।
हड़प्पा में समुद्री सीपियां, लैपिस लाजुली, और फ़िरोज़ा जैसे पत्थर मिले, जो अफगानिस्तान और ईरान से आए थे।
लोथल में एक प्राचीन बंदरगाह, जो समुद्री व्यापार का केंद्र था।
प्रभाव: व्यापार ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक समृद्धि को बढ़ाया।
6. सामाजिक और धार्मिक संगठन
सामाजिक स्तरीकरण: ताम्रपाषाण युग में सामाजिक असमानता स्पष्ट थी। धनी वर्ग (व्यापारी, शिल्पकार) और किसान-मजदूरों के बीच अंतर था। हड़प्पा में बड़े घर और गोदाम धनी वर्ग के प्रतीक थे।
श्रम विभाजन: शिल्पकार, किसान, व्यापारी, और प्रशासक जैसे विशिष्ट समूह उभरे।
धार्मिक विश्वास: प्रकृति पूजा, उर्वरता पूजा, और पशु पूजा प्रचलित थी। हड़प्पा में पशुपति मुहर और मिट्टी की मूर्तियां धार्मिक विश्वासों को दर्शाती हैं।
यज्ञ और बलिदान की प्रथाएं कुछ स्थलों पर मिली हैं।
मृतक संस्कार: मृतकों को दफनाने की प्रथा आम थी। हड़प्पा में कब्रिस्तान मिले हैं, जहां मृतकों के साथ बर्तन और आभूषण रखे गए थे।
लिपि: हड़प्पा सभ्यता में एक प्रारंभिक लिपि का उपयोग हुआ, जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। यह व्यापार और प्रशासन में उपयोगी थी।
7. हड़प्पा सभ्यता: ताम्रपाषाण युग का शिखर
समय: लगभग 2,600 ईसा पूर्व से 1,900 ईसा पूर्व।
विशेषताएं:
सुनियोजित नगर: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, लोथल।
जल निकासी व्यवस्था, पक्की सड़कें, और सार्वजनिक भवन।
मानकीकृत बाट और माप।
उन्नत शिल्प: कांस्य मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन, और आभूषण।
व्यापार: मेसोपोटामिया और अन्य क्षेत्रों के साथ।
पतन: जलवायु परिवर्तन, नदी मार्ग में बदलाव, और बाहरी आक्रमणों के कारण हड़प्पा सभ्यता का पतन हुआ।
भारत में ताम्रपाषाण युग के प्रमुख स्थल
भारत में ताम्रपाषाण युग की कई संस्कृतियां और पुरातात्विक स्थल हैं:
1. हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (सिंधु घाटी, अब पाकिस्तान)
उन्नत शहरी सभ्यता।
सुनियोजित नगर, जल निकासी, और विशाल स्नानागार।
तांबे, कांस्य, और मिट्टी के शिल्प।
2. धोलावीरा (गुजरात)
विशाल जलाशय और किलेबंदी।
लिपि और व्यापार के प्रमाण।
3. लोथल (गुजरात)
प्राचीन बंदरगाह और मनके बनाने की कार्यशाला।
समुद्री व्यापार का केंद्र।
4. आहड़ (राजस्थान)
आहड़-बनास संस्कृति।
तांबे के औजार और काले-लाल बर्तन।
5. गिलुंड (राजस्थान)
मिट्टी के घर और अनाज भंडार।
कृषि और पशुपालन।
6. इनामगांव (महाराष्ट्र)
जोरवे संस्कृति।
मिट्टी के बर्तन और दफन प्रथाएं।
7. नावदाटोली (मध्य प्रदेश)
मालवा संस्कृति।
चावल की खेती और तांबे के औजार।
ताम्रपाषाण युग का महत्व
संक्रमण काल: ताम्रपाषाण युग ने पाषाण युग से धातु युग की ओर परिवर्तन को चिह्नित किया। तांबे के उपयोग ने तकनीकी प्रगति को गति दी।
शहरीकरण की शुरुआत: हड़प्पा सभ्यता ने भारत में प्रारंभिक शहरीकरण का उदाहरण प्रस्तुत किया।
सामाजिक और आर्थिक विकास: सामाजिक स्तरीकरण, श्रम विभाजन, और व्यापार ने आर्थिक समृद्धि और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाया।
सांस्कृतिक समृद्धि: मूर्तियां, बर्तन, और लिपि ने सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत किया।
ताम्रपाषाण युग की चुनौतियां
प्राकृतिक आपदाएं: बाढ़, सूखा, और नदी मार्ग में बदलाव ने बस्तियों को प्रभावित किया।
संसाधन सीमा: तांबे की खदानों की सीमित उपलब्धता।
सामाजिक तनाव: सामाजिक असमानता और संसाधनों के लिए संघर्ष।
बाहरी आक्रमण: कुछ विद्वानों का मानना है कि बाहरी समूहों ने हड़प्पा सभ्यता को कमजोर किया।
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