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Neolithic Age
jp Singh 2025-05-19 11:27:28
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नवपाषाण युग (Neolithic Age)

नवपाषाण युग (Neolithic Age) प्रागैतिहासिक काल का एक महत्वपूर्ण चरण है, जिसे कृषि क्रांति (Agricultural Revolution) का युग माना जाता है। यह युग लगभग 6,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक फैला हुआ है, हालांकि भारत में यह कुछ क्षेत्रों में 7,000 ईसा पूर्व से शुरू हुआ। इस काल में मानव ने शिकार-संग्रह की खानाबदोश जीवनशैली को छोड़कर स्थायी बस्तियों में रहना शुरू किया, कृषि और पशुपालन को अपनाया, और सामाजिक, सांस्कृतिक, और तकनीकी प्रगति की। नवपाषाण युग ने आधुनिक सभ्यता की नींव रखी और भारत में हड़प्पा सभ्यता जैसे उन्नत समाजों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। नीचे नवपाषाण युग का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:
नवपाषाण युग की पृष्ठभूमि
समयावधि: लगभग 7,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक (भारत में क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ)।
पर्यावरणीय स्थिति: मध्यपाषाण युग के बाद गर्म और नम जलवायु (होलोसीन युग) ने कृषि के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान कीं। नदियों और उपजाऊ मैदानों की उपलब्धता ने स्थायी बस्तियों और खेती को बढ़ावा दिया।
मानव प्रजाति: इस युग में होमो सेपियन्स (आधुनिक मानव) ही प्रमुख थे। मानव की बुद्धि और सामाजिक संगठन अधिक विकसित हो चुके थे।
भारत में स्थिति: भारत में नवपाषाण युग के सबसे प्रारंभिक प्रमाण मेहरगढ़ (बलूचिस्तान) से मिले हैं, जो लगभग 7,000 ईसा पूर्व के हैं। यह युग भारत में कृषि, पशुपालन, और स्थायी बस्तियों की शुरुआत का साक्षी है।
नवपाषाण युग की विशेषताएं
नवपाषाण युग में मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, जो कृषि, पशुपालन, और स्थायी बस्तियों पर आधारित थे। इस युग की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. कृषि क्रांति
खेती की शुरुआत: नवपाषाण युग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि कृषि का विकास था। मानव ने जंगली पौधों को पालतू बनाकर व्यवस्थित खेती शुरू की। भारत में निम्नलिखित फसलों की खेती शुरू हुई:
गेहूं और जौ: मेहरगढ़ में इनके प्रारंभिक प्रमाण।
चावल: कोल्डिहवा (उत्तर प्रदेश) में जंगली चावल के उपयोग और बाद में खेती के प्रमाण।
दालें: मूंग, उड़द, और मसूर।
कपास: मेहरगढ़ में कपास की खेती के प्राचीनतम प्रमाण।
कृषि तकनीक: मानव ने खेती के लिए हंसिया, हल, और पत्थर की चक्की जैसे औजार विकसित किए। सिंचाई के लिए नदियों और कुओं का उपयोग शुरू हुआ।
प्रभाव: कृषि ने भोजन की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की, जिससे खानाबदोश जीवन समाप्त हुआ और स्थायी बस्तियां बनीं।
2. पशुपालन
पालतू जानवर: मानव ने जंगली जानवरों को पालतू बनाया, जो भोजन (दूध, मांस), श्रम (खेती, परिवहन), और कपड़े (ऊन, चमड़ा) के स्रोत बने। भारत में पालतू बनाए गए जानवर:
गाय, भेड़, बकरी: मेहरगढ़ और बुर्जहोम में प्रमाण।
सुअर और कुत्ता: कुछ स्थलों पर कुत्तों को दफनाने की प्रथा।
प्रभाव: पशुपालन ने भोजन की सुरक्षा बढ़ाई और श्रम विभाजन को प्रोत्साहित किया।
3. स्थायी बस्तियां
गांवों का विकास: कृषि और पशुपालन के कारण मानव ने नदियों और उपजाऊ भूमि के पास स्थायी बस्तियां बनाईं। ये बस्तियां मिट्टी, लकड़ी, और पत्थर से बने घरों से युक्त थीं।
मेहरगढ़: आयताकार मिट्टी के घर, अनाज भंडारण के लिए गोदाम।
बुर्जहोम (कश्मीर): गड्ढों में बने घर, जो ठंड से बचाव के लिए थे।
सामाजिक संगठन: स्थायी बस्तियों ने बड़े समुदायों (50-200 लोग) को जन्म दिया। सामाजिक संरचना अधिक जटिल हुई, जिसमें कृषक, शिल्पकार, और नेता जैसे भूमिकाएं उभरीं।
भारत में उदाहरण: मेहरगढ़, बुर्जहोम, चिरांद (बिहार), और कोल्डिहवा।
4. औजार और तकनीक
पॉलिश किए गए पत्थर के औजार: नवपाषाण युग में पत्थर के औजारों को पॉलिश करके अधिक मजबूत और तेज बनाया गया। प्रमुख औजार:
कुल्हाड़ी: पेड़ काटने और खेती के लिए।
हंसिया: फसल कटाई के लिए।
चक्की: अनाज पीसने के लिए।
माइक्रोलिथ्स का उपयोग: मध्यपाषाण युग से चले आ रहे माइक्रोलिथ्स का उपयोग शिकार और मछली पकड़ने में जारी रहा।
हड्डी और लकड़ी के औजार: सुई, हुक, और हल के लिए हड्डी और लकड़ी का उपयोग।
मिट्टी के बर्तन: मिट्टी से बने बर्तनों का निर्माण शुरू हुआ, जो भोजन संग्रह, पकाने, और पानी रखने के लिए उपयोगी थे। ये बर्तन प्रारंभ में हस्तनिर्मित थे और बाद में चाक पर बनाए गए।
भारत में उदाहरण: मेहरगढ़ में साधारण मिट्टी के बर्तन, कुछ पर सजावट।
कपड़ा निर्माण: कपास और ऊन से कपड़े बनाए गए। चरखा और करघा जैसे उपकरण विकसित हुए। मेहरगढ़ में कपास के धागे के प्रमाण मिले हैं।
5. कला और संस्कृति
मिट्टी की मूर्तियां: मानव और जानवरों की छोटी मूर्तियां बनाई गईं, जो धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व की थीं। मेहरगढ़ में मिट्टी की स्त्री मूर्तियां मिली हैं, जो उर्वरता पूजा से संबंधित हो सकती हैं।
शैल चित्र: भीमबेटका जैसी साइटों पर नवपाषाण युग के चित्र कम मिलते हैं, लेकिन कुछ चित्र कृषि और सामुदायिक जीवन को दर्शाते हैं।
आभूषण: सीपियों, हड्डियों, और पत्थरों से बने मनके, कंगन, और हार। ये सामाजिक स्थिति और सौंदर्य का प्रतीक थे।
सामुदायिक गतिविधियां: नृत्य, संगीत, और सामूहिक उत्सवों के संकेत मिलते हैं, जो सामाजिक एकता को दर्शाते हैं।
6. सामाजिक और धार्मिक संगठन
सामाजिक संरचना: स्थायी बस्तियों और कृषि ने सामाजिक असमानता को जन्म दिया। अमीर और गरीब के बीच अंतर उभरा। कुछ लोग अनाज भंडारण और व्यापार को नियंत्रित करने लगे।
श्रम विभाजन: विभिन्न कार्यों (कृषि, शिल्प, व्यापार) के लिए विशेषज्ञता विकसित हुई। उदाहरण के लिए, बर्तन बनाने वाले, कपड़ा बुनने वाले, और औजार निर्माता।
धार्मिक विश्वास: प्रकृति पूजा और उर्वरता पूजा प्रचलित थी। मिट्टी की मूर्तियां और प्रतीक उर्वरता देवी या प्रकृति की पूजा से जुड़े थे। कुछ स्थलों पर यज्ञ या बलिदान के प्रमाण मिले हैं।
मृतक संस्कार: मृतकों को दफनाने की प्रथा आम थी। मृतक के साथ बर्तन, औजार, या आभूषण रखे जाते थे, जो मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाता है। बुर्जहोम में कुत्तों को मानव के साथ दफनाने की अनोखी प्रथा मिली है।
7. व्यापार और वाणिज्य
वस्तु विनिमय: नवपाषाण युग में वस्तुओं का आदान-प्रदान शुरू हुआ। अनाज, बर्तन, और औजारों के बदले अन्य सामग्री (जैसे सीपियां, खनिज) ली जाती थी।
मेहरगढ़ में प्रमाण: समुद्री सीपियां और लैपिस लाजुली जैसे पत्थर मिले हैं, जो लंबी दूरी के व्यापार को दर्शाते हैं।
प्रभाव: व्यापार ने विभिन्न समुदायों के बीच संपर्क बढ़ाया और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया।
भारत में नवपाषाण युग के प्रमुख स्थल
भारत में नवपाषाण युग के कई पुरातात्विक स्थल हैं, जो इस काल की प्रगति को दर्शाते हैं:
1. मेहरगढ़ (बलूचिस्तान, अब पाकिस्तान)
नवपाषाण युग की सबसे महत्वपूर्ण साइट, लगभग 7,000 ईसा पूर्व।
गेहूं, जौ, और कपास की खेती के प्राचीनतम प्रमाण।
मिट्टी के घर, अनाज भंडार, और मिट्टी की मूर्तियां।
2. बुर्जहोम (कश्मीर)
गड्ढों में बने घर, जो ठंड से बचाव के लिए थे।
पॉलिश किए गए पत्थर के औजार और मिट्टी के बर्तन।
मानव और कुत्तों को दफनाने की प्रथा।
3. चिरांद (बिहार)
गंगा घाटी में नवपाषाण बस्ती।
चावल की खेती और पशुपालन के प्रमाण।
हड्डी और पत्थर के औजार।
4. कोल्डिहवा (उत्तर प्रदेश)
जंगली चावल की खेती के प्राचीनतम प्रमाण (लगभग 6,500 ईसा पूर्व)।
मिट्टी के बर्तन और स्थायी बस्तियां।
5. गुफकेरल (आंध्र प्रदेश)
पशुपालन और मिट्टी के बर्तनों के प्रमाण।
पॉलिश किए गए औजार और अर्ध-स्थायी बस्तियां।
6. महागढ़ (उत्तर प्रदेश)
चावल की खेती और पशुपालन।
मिट्टी के बर्तन और दफन प्रथाएं।
नवपाषाण युग का महत्व
कृषि क्रांति: कृषि और पशुपालन ने भोजन की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की, जिससे जनसंख्या वृद्धि और स्थायी बस्तियां संभव हुईं।
सामाजिक जटिलता: स्थायी बस्तियों और श्रम विभाजन ने सामाजिक संरचना को जटिल बनाया, जो बाद में शहरी सभ्यताओं का आधार बनी।
तकनीकी प्रगति: पॉलिश किए गए औजार, मिट्टी के बर्तन, और कपड़ा निर्माण ने मानव जीवन को सरल और समृद्ध बनाया।
सांस्कृतिक विकास: मूर्तियां, आभूषण, और धार्मिक प्रथाओं ने सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत किया।
भारत में योगदान: भारत में नवपाषाण युग ने हड़प्पा सभ्यता जैसे उन्नत समाजों के लिए आधार तैयार किया। मेहरगढ़ जैसे स्थल दक्षिण एशिया में प्रारंभिक शहरीकरण के प्रतीक हैं।
नवपाषाण युग की चुनौतियां
प्राकृतिक जोखिम: बाढ़, सूखा, और कीटों का खतरा खेती को प्रभावित करता था।
संसाधन सीमा: पॉलिश किए गए औजारों के लिए उपयुक्त पत्थरों की कमी।
सामाजिक तनाव: अनाज भंडारण और संसाधनों के नियंत्रण से सामाजिक असमानता और संघर्ष बढ़े।
स्वास्थ्य समस्याएं: स्थायी बस्तियों में भीड़ और पशुओं के साथ रहने से बीमारियां फैलीं।
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