Mesolithic Age
jp Singh
2025-05-19 11:15:52
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मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age)
मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age) :- प्रागैतिहासिक काल का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो पुरापाषाण युग और नवपाषाण युग के बीच का संक्रमण काल माना जाता है। यह युग लगभग 10,000 ईसा पूर्व से 6,000 ईसा पूर्व तक फैला हुआ है। इस काल में पर्यावरणीय परिवर्तनों, खासकर हिमयुग के अंत और गर्म जलवायु के आगमन ने मानव जीवनशैली, तकनीक, और सामाजिक संगठन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। मध्यपाषाण युग में मानव ने शिकार-संग्रह की जीवनशैली को और परिष्कृत किया, छोटे और तेज औजार विकसित किए, और अर्ध-स्थायी बस्तियों की ओर कदम बढ़ाया। भारत में इस युग के कई पुरातात्विक स्थल मिले हैं, जो इसकी प्रगति को दर्शाते हैं। नीचे मध्यपाषाण युग का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:
मध्यपाषाण युग की पृष्ठभूमि
समयावधि: लगभग 10,000 ईसा पूर्व से 6,000 ईसा पूर्व तक।
पर्यावरणीय परिवर्तन: हिमयुग (Pleistocene) के अंत के बाद पृथ्वी का तापमान बढ़ा, जिसे होलोसीन युग (Holocene Epoch) की शुरुआत माना जाता है। हिमनद पिघलने से नदियों और झीलों का विस्तार हुआ, जंगल और घास के मैदान फैले, और नए खाद्य स्रोत उपलब्ध हुए। इस गर्म और नम जलवायु ने मानव को छोटे जानवरों, मछलियों, और जंगली पौधों पर निर्भरता बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
मानव प्रजाति: इस युग में होमो सेपियन्स (आधुनिक मानव) ही प्रमुख प्रजाति थी। मानव का मस्तिष्क और सामाजिक व्यवहार पहले से अधिक विकसित था।
भारत में स्थिति: भारत में मध्यपाषाण युग के प्रमाण गंगा घाटी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और दक्षिण भारत के कई स्थलों पर मिले हैं। यह युग भारत में कृषि और स्थायी बस्तियों की ओर प्रारंभिक कदमों का गवाह है।
मध्यपाषाण युग की विशेषताएं
मध्यपाषाण युग में मानव ने पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवनशैली, तकनीक, और सामाजिक संरचना में कई बदलाव किए। इस युग की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. जीवनशैली और आर्थिक गतिविधियां
शिकार और संग्रह: मध्यपाषाण युग में मानव अभी भी शिकारी-संग्रहकर्ता था, लेकिन उसने अपनी तकनीकों को परिष्कृत किया। बड़े जानवरों (जैसे मैमथ) की कमी के कारण छोटे और तेज जानवरों (हिरण, खरगोश, पक्षी) का शिकार आम हुआ। भाले, तीर, और जाल का उपयोग बढ़ा।
मछली पकड़ना: नदियों और झीलों के विस्तार के कारण मछली पकड़ना एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि बन गई। मानव ने मछली पकड़ने के लिए हार्पून, जाल, और नावों का उपयोग शुरू किया। भारत में गंगा और नर्मदा नदियों के किनारे मछली पकड़ने के प्रमाण मिले हैं।
जंगली पौधों का संग्रह: मानव ने जंगली अनाज (जैसे जौ और चावल), फल, जड़ें, और बीज इकट्ठा किए। कुछ समूहों ने प्रारंभिक रूप से पौधों की देखभाल शुरू की, जो बाद में कृषि का आधार बना।
अर्ध-स्थायी बस्तियां: पर्यावरणीय स्थिरता और भोजन की उपलब्धता के कारण मानव ने अर्ध-स्थायी बस्तियां बनानी शुरू कीं। ये बस्तियां नदियों, झीलों, या जंगलों के पास थीं, जहां भोजन और पानी आसानी से मिलता था। कुछ समूह मौसमी रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे।
भारत में उदाहरण: बागोर (राजस्थान) में अर्ध-स्थायी बस्तियों के प्रमाण मिले हैं, जहां मानव ने मछली पकड़ने और शिकार के साथ-साथ पशुपालन की शुरुआत की थी।
2. औजार और तकनीक
माइक्रोलिथ्स (Microliths): मध्यपाषाण युग की सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि छोटे और तेज पत्थर के औजारों, जिन्हें माइक्रोलिथ्स कहा जाता है, का विकास था। ये औजार (आमतौर पर 1-5 सेमी लंबे) चकमक पत्थर, क्वार्टज, या ओब्सिडियन से बनाए जाते थे।
माइक्रोलिथ्स को लकड़ी, हड्डी, या बांस के हत्थों में लगाकर तीर, भाले, हार्पून, और हंसिया बनाई जाती थी।
ये औजार शिकार, मछली पकड़ने, और पौधों की कटाई में उपयोगी थे।
भारत में लंघनाज (गुजरात) और आदमगढ़ (मध्य प्रदेश) में माइक्रोलिथ्स के बड़े भंडार मिले हैं।
समग्र औजार (Composite Tools): माइक्रोलिथ्स को कई टुकड़ों में जोड़कर जटिल औजार बनाए जाते थे, जैसे मछली पकड़ने के लिए हार्पून या शिकार के लिए भाले।
हड्डी और लकड़ी के औजार: पत्थर के अलावा हड्डी, सींग, और लकड़ी से बने औजार भी उपयोग में थे। उदाहरण के लिए, मछली पकड़ने के लिए हड्डी की सुइयां और हुक।
नाव और जाल: मछली पकड़ने के लिए प्रारंभिक नावों (लकड़ी या छाल से बनी) और जाल का उपयोग शुरू हुआ। यह जल परिवहन और मछली पकड़ने की प्रगति को दर्शाता है।
अग्नि का उपयोग: पुरापाषाण युग से चली आ रही अग्नि की तकनीक को और परिष्कृत किया गया। अग्नि का उपयोग भोजन पकाने, औजार बनाने, और ठंड से बचने के लिए होता था।
3. कला और संस्कृति
गुफा चित्र और शैल चित्र: मध्यपाषाण युग में कला का और विकास हुआ। गुफाओं और चट्टानों पर बने चित्र अधिक जटिल और विविध हुए। इन चित्रों में शिकार, नृत्य, सामूहिक गतिविधियां, और जानवरों (हिरण, पक्षी, मछली) के दृश्य प्रमुख थे।
भारत में भीमबेटका (मध्य प्रदेश) की गुफाओं में मध्यपाषाण युग के चित्र मिले हैं, जो सामाजिक जीवन और शिकार को दर्शाते हैं। ये चित्र लाल, सफेद, और हरे रंगों से बनाए गए, जो प्राकृतिक रंगद्रव्यों (जैसे ओखर और खनिज) से प्राप्त होते थे।
आभूषण और सजावट: मानव ने सीपियों, हड्डियों, और पत्थरों से बने आभूषण पहनना जारी रखा। कुछ स्थलों पर मनके और कंगन मिले हैं, जो आत्म-अभिव्यक्ति और सामाजिक स्थिति को दर्शाते हैं।
प्रतीकात्मक व्यवहार: चट्टानों पर नक्काशी और प्रतीकों का उपयोग बढ़ा, जो संभवतः धार्मिक या सामाजिक संदेशों को व्यक्त करते थे।
4. सामाजिक और धार्मिक संगठन
सामाजिक संरचना: मध्यपाषाण युग में सामाजिक संगठन अधिक जटिल हुआ। छोटे कबीले (20-50 लोग) बनने लगे, जो शिकार, मछली पकड़ने, और भोजन संग्रह के लिए सहयोग करते थे। नेतृत्व अनुभव या कौशल पर आधारित था।
अर्ध-स्थायी बस्तियां: कुछ समूहों ने मौसमी बस्तियां बनाईं, जहां वे कुछ महीनों तक रहते थे। ये बस्तियां मिट्टी, लकड़ी, या पत्थर से बनी होती थीं।
धार्मिक विश्वास: प्रकृति पूजा और आत्मा विश्वास (Animism) प्रचलित थे। मानव नदियों, पेड़ों, और जानवरों को पूजता था। कुछ स्थलों पर मृतकों को दफनाने की प्रथा मिली है, जिसमें मृतक के साथ औजार या भोजन रखा जाता था, जो मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाता है।
भारत में उदाहरण: बागोर (राजस्थान) में दफन के प्रमाण मिले हैं, जहां मृतकों के साथ माइक्रोलिथ्स और आभूषण रखे गए थे।
5. प्रारंभिक पशुपालन और कृषि
पशुपालन की शुरुआत: मध्यपाषाण युग के अंत में कुछ समूहों ने जंगली जानवरों (जैसे भेड़, बकरी, और गाय) को पालतू बनाना शुरू किया। यह पशुपालन की ओर पहला कदम था।
प्रारंभिक कृषि: कुछ क्षेत्रों में जंगली अनाजों की देखभाल और रोपण शुरू हुआ, जो नवपाषाण युग में पूर्ण कृषि का आधार बना। भारत में मेहरगढ़ (बलूचिस्तान) में मध्यपाषाण युग के अंत में प्रारंभिक कृषि के संकेत मिले हैं।
भारत में उदाहरण: बागोर और आदमगढ़ में पशुपालन और जंगली अनाजों के उपयोग के प्रमाण मिले हैं।
भारत में मध्यपाषाण युग के प्रमुख स्थल
भारत में मध्यपाषाण युग के कई पुरातात्विक स्थल हैं, जो इस काल की जीवनशैली, तकनीक, और संस्कृति को समझने में मदद करते हैं:
1. बागोर (राजस्थान)
मध्यपाषाण युग की सबसे महत्वपूर्ण साइटों में से एक।
अर्ध-स्थायी बस्तियों, माइक्रोलिथ्स, और पशुपालन के प्रारंभिक प्रमाण।
2. लंघनाज (गुजरात)
माइक्रोलिथ्स और शिकार उपकरणों का बड़ा भंडार।
मछली पकड़ने और जंगली पौधों के संग्रह के प्रमाण।
3. आदमगढ़ (मध्य प्रदेश)
माइक्रोलिथ्स और हड्डी के औजारी।
शिकार और पशुपालन की शुरुआत के संकेत।
4. भीमबेटका (मध्य प्रदेश)
मध्यपाषाण युग के शैल चित्र, जो शिकार, नृत्य, और सामाजिक गतिविधियों को दर्शाते हैं।
गुफाओं में औजार और मानव गतिविधियों के अवशेष।
5. चोपनी मांडो (उत्तर प्रदेश)
मध्यपाषाण युग के अंत में प्रारंभिक कृषि और बस्तियों के प्रमाण।
जंगली चावल के उपयोग के संकेत।
6. सरोई नाहर राय (उत्तर प्रदेश)
मानव कंकाल और माइक्रोलिथ्स।
शिकार और मछली पकड़ने की गतिविधियों के प्रमाण।
मध्यपाषाण युग का महत्व
संक्रमण काल: मध्यपाषाण युग पुरापाषाण युग की खानाबदोश जीवनशैली और नवपाषाण युग की स्थायी बस्तियों के बीच का सेतु था। इसने कृषि और पशुपालन की नींव रखी।
तकनीकी प्रगति: माइक्रोलिथ्स और समग्र औजारों ने शिकार, मछली पकड़ने, और भोजन संग्रह को अधिक कुशल बनाया।
सामाजिक विकास: अर्ध-स्थायी बस्तियों और कबीलों के गठन ने सामाजिक संगठन को जटिल बनाया।
सांस्कृतिक प्रगति: शैल चित्रों और आभूषणों ने मानव की सृजनात्मकता और सामाजिक अभिव्यक्ति को दर्शाया।
भारत में योगदान: भारत में मध्यपाषाण युग ने प्रारंभिक पशुपालन और कृषि की शुरुआत की, जो बाद में हड़प्पा सभ्यता जैसे उन्नत समाजों का आधार बनी।
मध्यपाषाण युग की चुनौतियां
पर्यावरणीय अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ क्षेत्रों में भोजन की कमी हो सकती थी।
सीमित संसाधन: माइक्रोलिथ्स बनाने के लिए उपयुक्त पत्थरों की उपलब्धता सीमित थी।
सामाजिक संघर्ष: भोजन और संसाधनों के लिए कबीलों के बीच टकराव संभव था।
प्राकृतिक जोखिम: बाढ़, सूखा, और जंगली जानवरों का खतरा बना रहता था।
Conclusion
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