पुरापाषाण युग (Paleolithic Age)
jp Singh
2025-05-19 11:06:22
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पुरापाषाण युग (Paleolithic Age)
पुरापाषाण युग (Paleolithic Age) : - प्रागैतिहासिक काल का सबसे प्रारंभिक और सबसे लंबा चरण है, जो मानव इतिहास के उस समय को दर्शाता है जब मानव ने पहली बार पत्थर के औजारों का उपयोग शुरू किया। यह युग लगभग 2.5 मिलियन वर्ष पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व तक फैला हुआ है। इस काल में मानव पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर था और शिकार-संग्रह (Hunter-Gatherer) जीवनशैली अपनाए हुए था। पुरापाषाण युग को तीन उप-चरणों में बांटा जा सकता है: निम्न पुरापाषाण (Lower Paleolithic), मध्य पुरापाषाण (Middle Paleolithic), और उच्च पुरापाषाण (Upper Paleolithic)। नीचे इस युग का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:
पुरापाषाण युग की अवधि और पृष्ठभूमि
समयावधि: लगभग 25 लाख वर्ष पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व तक।
जलवायु और पर्यावरण: इस युग में पृथ्वी पर हिमयुग (Ice Ages) और गर्म अवधियों का चक्र चल रहा था। ठंडे और शुष्क मौसम के कारण बड़े-बड़े हिमनद (Glaciers) बनते और पिघलते थे। मानव को जंगलों, घास के मैदानों, और नदियों के किनारे रहना पड़ता था, जहां भोजन और पानी उपलब्ध था।
मानव प्रजातियां: इस युग में विभिन्न मानव प्रजातियां विकसित हुईं, जैसे होमो हैबिलिस (औजार बनाने वाला मानव), होमो इरेक्टस (सीधा खड़ा होने वाला मानव), और बाद में होमो सेपियन्स (आधुनिक मानव)। भारत में होमो इरेक्टस और होमो सेपियन्स के अवशेष मिले हैं।
भारत में स्थिति: भारत में पुरापाषाण युग के प्रमाण नर्मदा घाटी, सोन नदी क्षेत्र, और दक्षिण भारत के कई स्थलों पर मिलते हैं।
पुरापाषाण युग की विशेषताएं
पुरापाषाण युग मानव विकास का प्रारंभिक चरण था, जिसमें कई महत्वपूर्ण सामाजिक, तकनीकी, और सांस्कृतिक प्रगतियां हुईं। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1. जीवनशैली और आर्थिक गतिविधियां
शिकार और संग्रह: मानव इस युग में शिकारी-संग्रहकर्ता था। वह जंगली जानवरों (जैसे हिरण, जंगली सुअर, और मैमथ) का शिकार करता और जंगली फल, जड़ें, बीज, और पत्तियां इकट्ठा करता था। शिकार के लिए समूह में काम करना आम था।
खानाबदोश जीवन: मानव खानाबदोश था और भोजन की उपलब्धता के आधार पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता था। वह गुफाओं, चट्टानों के नीचे, या अस्थायी झोपड़ियों में रहता था।
समूह आधारित जीवन: मानव छोटे-छोटे समूहों (10-30 लोग) में रहता था, जो परिवार या कबीले पर आधारित थे। ये समूह भोजन और सुरक्षा के लिए एक-दूसरे पर निर्भर थे।
भारत में उदाहरण: नर्मदा घाटी में मानव द्वारा शिकार किए गए जानवरों के जीवाश्म और हड्डियां मिली हैं, जो शिकार आधारित जीवनशैली को दर्शाती हैं।
2. औजार और तकनीक
पत्थर के औजार: पुरापाषाण युग की सबसे बड़ी उपलब्धि पत्थर के औजारों का निर्माण था। ये औजार मुख्य रूप से चकमक पत्थर (Flint), क्वार्टजाइट, या बेसाल्ट से बनाए जाते थे।
निम्न पुरापाषाण: इस चरण में हैंड-एक्स (Hand-Axes), क्लीवर (Cleavers), और चॉपर्स (Choppers) जैसे बड़े और असभ्य औजार बनाए गए। ये औजार शिकार, मांस काटने, और लकड़ी तोड़ने के लिए उपयोगी थे। भारत में सोहन घाटी (पंजाब) में ऐसे औजार मिले हैं।
मध्य पुरापाषाण: औजार अधिक परिष्कृत हुए। फ्लेक्स (Flakes) और ब्लेड्स (Blades) बनाए गए, जिन्हें लकड़ी या हड्डी के हत्थों में लगाया जाता था। मौस्टरियन तकनीक इस चरण की विशेषता थी।
उच्च पुरापाषाण: औजार छोटे, तेज, और अधिक सटीक बने। माइक्रोलिथ्स (Microliths) और ब्लेडलेट्स (Bladelets) का उपयोग शुरू हुआ, जो तीर, भाले, और हार्पून में लगाए जाते थे।
अन्य सामग्री: लकड़ी, हड्डी, और सींग से बने औजार भी उपयोग में थे, लेकिन ये कम टिकाऊ होने के कारण कम मिलते हैं।
अग्नि की खोज: पुरापाषाण युग की सबसे क्रांतिकारी उपलब्धि थी। मानव ने चकमक पत्थरों को रगड़कर या लकड़ी को घर्षण से आग जलाना सीखा। अग्नि ने निम्नलिखित लाभ प्रदान किए:
भोजन पकाने से पाचन आसान हुआ और पोषण बढ़ा।
ठंड से सुरक्षा मिली, जिससे मानव ठंडे क्षेत्रों में भी रह सका।
रात में प्रकाश और शिकारियों से सुरक्षा प्रदान की।
सामाजिक गतिविधियों के लिए केंद्र बिंदु बना।
3. कला और संस्कृति
गुफा चित्र: पुरापाषाण युग में कला का प्रारंभ हुआ। गुफाओं की दीवारों पर जानवरों, शिकार के दृश्य, और मानव आकृतियों के चित्र बनाए गए। भारत में भीमबेटका (मध्य प्रदेश) की गुफाएं इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये चित्र लाल, सफेद, और पीले रंगों से बनाए गए, जो प्राकृतिक रंगों (जैसे ओखर और चारकोल) से प्राप्त किए जाते थे।
प्रतीकात्मक व्यवहार: मानव ने प्रतीकों और चिन्हों का उपयोग शुरू किया, जो धार्मिक या सामाजिक विश्वासों को दर्शाते थे। उदाहरण के लिए, कुछ स्थलों पर पत्थरों पर नक्काशी मिली है।
आभूषण और सजावट: उच्च पुरापाषाण युग में मानव ने सीपियों, हड्डियों, और पत्थरों से बने आभूषण पहनना शुरू किया। यह आत्म-अभिव्यक्ति और सामाजिक स्थिति का प्रतीक था।
भारत में उदाहरण: भीमबेटका के चित्रों में शिकार, नृत्य, और सामूहिक गतिविधियों के दृश्य हैं, जो सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को दर्शाते हैं।
4. धार्मिक और सामाजिक विश्वास
प्रारंभिक धार्मिक विश्वास: पुरापाषाण युग में प्रकृति पूजा और आत्मा विश्वास (Animism) का प्रारंभ हुआ। मानव प्राकृतिक शक्तियों (जैसे सूर्य, चंद्र, और पेड़) को पूजता था।
मृतक संस्कार: कुछ स्थलों पर मृतकों को दफनाने के प्रमाण मिले हैं। मृतकों के साथ औजार, भोजन, या आभूषण दफनाए जाते थे, जो मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाता है।
सामाजिक संगठन: मानव छोटे समूहों में रहता था, जो परिवार या कबीले पर आधारित थे। नेतृत्व संभवतः उम्र, अनुभव, या शारीरिक शक्ति पर आधारित था।
5. शारीरिक और मानसिक विकास
होमो सेपियन्स का उदय: उच्च पुरापाषाण युग में आधुनिक मानव (होमो सेपियन्स) प्रमुख प्रजाति बन गया। इनका मस्तिष्क अधिक विकसित था, जिससे भाषा, योजना, और जटिल सामाजिक व्यवहार संभव हुआ।
भाषा का प्रारंभ: यद्यपि लिखित भाषा का विकास नहीं हुआ, मानव ने ध्वनियों, इशारों, और चिन्हों के माध्यम से संवाद करना शुरू किया।
सहयोग और सामाजिकता: शिकार और भोजन संग्रह के लिए समूह में काम करने से सामाजिक बंधन मजबूत हुए।
पुरापाषाण युग के उप-चरण
पुरापाषाण युग को तीन उप-चरणों में बांटा गया है, जो तकनीकी और सांस्कृतिक प्रगति को दर्शाते हैं:
1. निम्न पुरापाषाण युग (Lower Paleolithic)
समय: 2.5 मिलियन वर्ष पूर्व से 2,50,000 वर्ष पूर्व तक।
औजार: बड़े और असभ्य औजार जैसे हैंड-एक्स, चॉपर्स, और क्लीवर। ओल्डोवान और एशूलियन तकनीकें प्रचलित थीं।
मानव प्रजाति: होमो हैबिलिस और होमो इरेक्टस।
भारत में स्थल: सोहन घाटी (पंजाब), नर्मदा घाटी (मध्य प्रदेश), और अत्तिरमपक्कम (तमिलनाडु)।
विशेषताएं: प्रारंभिक औजार निर्माण, अग्नि का सीमित उपयोग, और खानाबदोश जीवन।
2. मध्य पुरापाषाण युग (Middle Paleolithic)
समय: 2,50,000 वर्ष पूर्व से 40,000 वर्ष पूर्व तक।
औजार: अधिक परिष्कृत फ्लेक्स और ब्लेड्स। मौस्टरियन तकनीक का उपयोग।
मानव प्रजाति: होमो सेपियन्स और निएंडरथल (हालांकि भारत में निएंडरथल के प्रमाण नहीं मिले)।
भारत में स्थल: हथनोरा (मध्य प्रदेश) में होमो इरेक्टस की खोपड़ी मिली है।
विशेषताएं: औजारों में सुधार, अग्नि का नियमित उपयोग, और प्रारंभिक कला।
3. उच्च पुरापाषाण युग (Upper Paleolithic)
समय: 40,000 वर्ष पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व तक।
औजार: छोटे और तेज माइक्रोलिथ्स, ब्लेडलेट्स, और हड्डी के औजार।
मानव प्रजाति: होमो सेपियन्स।
भारत में स्थल: भीमबेटका, रेणिगुंटा (आंध्र प्रदेश), और पटने (महाराष्ट्र)।
विशेषताएं: कला और आभूषणों का विकास, जटिल सामाजिक व्यवहार, और भाषा का प्रारंभ।
भारत में पुरापाषाण युग के प्रमुख स्थल
भारत में पुरापाषाण युग के कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल हैं, जो इस काल की जीवनशैली और संस्कृति को समझने में मदद करते हैं:
1. भीमबेटका (मध्य प्रदेश)
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।
गुफाओं में पुरापाषाण युग के चित्र, जो शिकार, नृत्य, और जानवरों को दर्शाते हैं।, औजार और मानव गतिविधियों के प्रमाण।
2. नर्मदा घाटी (मध्य प्रदेश)
होमो इरेक्टस की खोपड़ी (हथनोरा) और जीवाश्म।
हैंड-एक्स और चॉपर्स जैसे औजार।
3. सोहन घाटी (पंजाब)
एशूलियन औजारों के प्रमाण।
शिकार और संग्रह आधारित जीवनशैली के अवशेष।
4. अत्तिरमपक्कम (तमिलनाडु)
निम्न पुरापाषाण युग के औजार।
भारत में सबसे पुराने मानव गतिविधियों के प्रमाण (लगभग 1.5 मिलियन वर्ष पुराने)।
5. हथनोरा (मध्य प्रदेश)
होमो इरेक्टस की खोपड़ी, जिसे
6. कर्नूल गुफाएं (आंध्र प्रदेश)
अग्नि उपयोग और हड्डी के औजारों के प्रमाण।
पुरापाषाण युग का महत्व
मानव विकास: इस युग में मानव प्रजातियों का शारीरिक और मानसिक विकास हुआ, जिसने होमो सेपियन्स को प्रमुख प्रजाति बनाया।
तकनीकी नींव: पत्थर के औजारों और अग्नि की खोज ने मानव को प्रकृति पर नियंत्रण करने में सक्षम बनाया।
सांस्कृतिक प्रारंभ: कला, आभूषण, और धार्मिक विश्वासों ने मानव की सृजनात्मकता और सामाजिकता को दर्शाया।
भारत में योगदान: भारत में पुरापाषाण युग के अवशेष दर्शाते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप मानव विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
पुरापाषाण युग की चुनौतियां
प्रकृति पर निर्भरता: मानव को भोजन और आश्रय के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता था।
खतरनाक पर्यावरण: जंगली जानवरों, हिमयुग की ठंड, और प्राकृतिक आपदाओं से खतरा।
सीमित तकनीक: औजार प्रारंभिक और सीमित थे, जिससे शिकार और भोजन संग्रह कठिन था।
सामाजिक जोखिम: छोटे समूहों में रहने के कारण बीमारियां और संघर्ष आम थे।
Conclusion
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