क्या मानकीकृत परीक्षण शैक्षणिक योग्यता या प्रगति का बेहतर मापदंड हैं
jp Singh
2025-05-03 00:00:00
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क्या मानकीकृत परीक्षण शैक्षणिक योग्यता या प्रगति का बेहतर मापदंड हैं
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती है और विद्यार्थियों की योग्यता एवं प्रगति को मापने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं। इन प्रणालियों में "मानकीकृत परीक्षण" (Standardized Testing) एक प्रमुख विधि है, जो पिछले कुछ दशकों में शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। इस परीक्षण पद्धति के माध्यम से विद्यार्थियों के ज्ञान, समझ, विश्लेषण क्षमता और स्मरण शक्ति को एक समान परीक्षा के माध्यम से आँका जाता है। परंतु यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या मानकीकृत परीक्षण वास्तव में शैक्षणिक योग्यता या प्रगति का श्रेष्ठतम मापदंड हैं?
मानकीकृत परीक्षण की परि
मानकीकृत परीक्षण ऐसे मूल्यांकन होते हैं जिनमें सभी परीक्षार्थियों को एक समान प्रश्नपत्र, समय-सीमा, मूल्यांकन पद्धति और स्कोरिंग प्रणाली दी जाती है। उदाहरण स्वरूप SAT, GRE, NEET, JEE, और CBSE बोर्ड परीक्षा जैसे परीक्षण विश्व एवं भारत में मानकीकृत मूल्यांकन की श्रेणी में आते
मानकीकृत परीक्षण के पक्ष में तर्क
1. समान अवसर की अवधारणा
मानकीकृत परीक्षण सभी छात्रों को एक समान परीक्षा देकर एक निष्पक्ष तुलना का अवसर प्रदान करते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी छात्र को विशेष सुविधाएँ या अन्य लाभ न मिलें जो अन्य छात्रों के पास नहीं हैं।
2. मूल्यांकन की दक्षता और वस्तुनिष्ठता
इन परीक्षणों में उत्तरों का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ (objective) ढंग से होता है, जिससे मानवीय त्रुटि की संभावना कम हो जाती है। स्कोर की स्पष्टता और तुलनीयता भी बनी रहती है।
3. प्रदर्शन की राष्ट्रीय या वैश्विक तुल
मानकीकृत परीक्षण के माध्यम से छात्र न केवल अपने विद्यालय स्तर पर, बल्कि राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को जान सकते हैं। इससे नीति-निर्माताओं को शिक्षा की गुणवत्ता को परखने का एक ठोस आधार मिलता है।
4. प्रवेश परीक्षाओं का सरल मार्ग
विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रवेश के लिए मानकीकृत परीक्षण एक सामान्य मापदंड प्रदान करते हैं। इससे संस्थानों को यह निर्णय लेने में सुविधा होती है कि कौन-से छात्र उनके पाठ्यक्रम के लिए उपयुक्त हैं।
मानकीकृत परीक्षण की सीमाएँ
1. समग्र योग्यता का अपूर्ण चित्
शैक्षणिक योग्यता केवल जानकारी के स्तर तक सीमित नहीं होती, बल्कि उसमें रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच, नेतृत्व क्षमता, भावनात्मक बुद्धिमत्ता आदि भी सम्मिलित होती हैं। मानकीकृत परीक्षण इन क्षमताओं को मापने में असफल रहते हैं।
2. रटंत विद्या को बढ़ावा
अक्सर देखा गया है कि छात्र परीक्षा पास करने के लिए पाठ्यक्रम को रटने की प्रवृत्ति अपनाते हैं। इससे सीखने की गहराई और विषय की समझ प्रभावित होती है। यह ज्ञान की वास्तविक प्रगति को नहीं दर्शाता
3. सामाजिक और आर्थिक पक्षपात
वित्तीय रूप से सक्षम छात्र महंगे कोचिंग सेंटर, ट्यूशन और अतिरिक्त संसाधनों का लाभ उठाकर अधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं, जबकि गरीब छात्रों के पास ये सुविधाएँ नहीं होतीं। इससे असमानता बढ़ती है और परीक्षण की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
4. तनाव और मानसिक दबाव
मानकीकृत परीक्षाओं में उच्च स्कोर प्राप्त करने का दबाव छात्रों में तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याओं को जन्म देता है। यह न केवल शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित करता है, बल्कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हो सकता है।
5. शिक्षण प्रक्रिया पर असर
अक्सर शिक्षक केवल उन्हीं विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो परीक्षा में पूछे जाने की संभावना रखते हैं, जिसे "Teaching to the test" कहा जाता है। इससे शिक्षा की व्यापकता और बहुआयामी दृष्टिकोण प्रभावित होता है
वैकल्पिक मूल्यांकन पद्धतियाँ
मानकीकृत परीक्षण के साथ-साथ वैकल्पिक मूल्यांकन प्रणालियाँ अपनाना आवश्यक है, ताकि छात्रों की समग्र क्षमता को मापा जा सके
1. निरंतर और व्यापक मूल्यांकन (CCE)
यह पद्धति छात्रों के सीखने की निरंतर निगरानी करती है और सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों, परियोजनाओं, प्रस्तुति, सहभागिता आदि के माध्यम से उनका मूल्यांकन करती है।
2. पोर्टफोलियो मूल्यांकन:
इसमें छात्र की रचनात्मकता, लेखन, कला, परियोजनाएँ आदि शामिल होती हैं जो उनकी संपूर्ण विकास प्रक्रिया को दर्शाती हैं।
3. खुले पुस्तक परीक्षण:
इससे छात्र की विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक सोच का मूल्यांकन किया जा सकता है न कि सिर्फ याद करने की क्षमता का।
Conclusion
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि मानकीकृत परीक्षणों की अपनी उपयोगिता और भूमिका है, विशेषकर बड़े पैमाने पर तुलना, प्रवेश प्रक्रिया और शिक्षा नीतियों के निर्माण में। किंतु यह प्रणाली शैक्षणिक योग्यता या प्रगति का एकमात्र अथवा श्रेष्ठतम मापदंड नहीं हो सकती। शिक्षा केवल जानकारी अर्जित करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक समग्र विकास की यात्रा है। ऐसे में एक ऐसी मूल्यांकन प्रणाली की आवश्यकता है जो विद्यार्थियों के बहुआयामी कौशलों, रचनात्मकता, सोचने की क्षमता और मानवीय मूल्यों को भी महत्व दे।
अतः निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि मानकीकृत परीक्षणों को पूरी तरह खारिज नहीं किया जाना चाहिए, परंतु इन्हें समावेशी और विविध मूल्यांकन पद्धतियों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए, ताकि शिक्षा प्रणाली अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और प्रभावशाली बन सके।
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jp Singh
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