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आरक्षण का आर्थिक आधार: इसके मूल विचार से सुसंगतता
jp Singh 2025-05-01 00:00:00
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आरक्षण का आर्थिक आधार: इसके मूल विचार से सुसंगतता

भारत में आरक्षण व्यवस्था का इतिहास बहुत पुराना है, और यह भारतीय समाज की जटिल जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। यह व्यवस्था समाज के विशेष वर्गों को—जैसे अनुसूचित जातियाँ (SC), अनुसूचित जनजातियाँ (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)—को शिक्षा, रोजगार, और अन्य क्षेत्रों में विशेष अधिकार और अवसर प्रदान करती है। हालांकि, आरक्षण की शुरुआत समाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित थी, लेकिन समय के साथ इस व्यवस्था में आर्थिक आधार का तत्व भी जुड़ गया है। हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि आरक्षण का आर्थिक आधार इसके मूल विचार से कितना सुसंगत है।
1. आरक्षण की मूल धारणा और समाजिक उद्देश्य:
आरक्षण का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में जातिवाद और असमानताओं को समाप्त करना था। यह व्यवस्था उन वर्गों के लिए बनाई गई थी, जो ऐतिहासिक रूप से शोषित, उपेक्षित और बहिष्कृत रहे हैं। भारतीय संविधान ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में इस व्यवस्था को लागू किया, ताकि समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
2. आरक्षण और आर्थिक आधार का तात्पर्य:
आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव विशेष रूप से उस समय सामने आया जब भारतीय सरकार ने महसूस किया कि सामाजिक पिछड़ेपन के साथ-साथ आर्थिक पिछड़ापन भी आरक्षण के लाभ से वंचित वर्गों को निवारण देने में एक बड़ी चुनौती है। सरकार ने यह समझा कि सिर्फ जातिगत आधार पर आरक्षण देना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि आज के समय में कई जातियाँ और समुदायों के लोग आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो गए हैं।
इसी कारण से, आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की बात उठी, जिसका उद्देश्य उन गरीब और पिछड़े वर्गों को समर्थन देना है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, भले ही उनका जाति के दृष्टिकोण से कोई विशेष पिछड़ापन न हो।
3. आर्थिक आधार पर आरक्षण के लाभ:
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देने से समाज में एक समान अवसरों का वितरण संभव हो सकता है। यह आर्थिक असमानताओं को कम करने में सहायक हो सकता है, क्योंकि जो व्यक्ति अपने गरीब हालात के कारण शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित रहते हैं, उन्हें इस प्रकार का आरक्षण उनके अधिकारों को प्राप्त करने का मौका देता है।
4. सामाजिक असमानताओं के खिलाफ आर्थिक आधार का विचार:
भारत में जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का इतिहास बहुत लंबा है। अगर सिर्फ आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है, तो इससे कई बार यह समस्या उत्पन्न हो सकती है कि जो जातियाँ और समुदाय ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का शिकार नहीं रहे, वे भी आर्थिक रूप से कमजोर हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, सच्चे शोषित वर्ग को लाभ नहीं मिल पाएगा।
5. आरक्षण का मूल विचार और आर्थिक आधार में असंगति:
आरक्षण का मूल विचार जाति आधारित असमानताओं को समाप्त करना था, जबकि आर्थिक आधार पर आरक्षण केवल उस व्यक्ति के आर्थिक स्थिति पर आधारित है, ना कि उसकी जाति या सामाजिक स्थिति पर। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो आर्थिक आधार पर आरक्षण का सिद्धांत मूल विचार से कुछ हद तक असंगत लगता है, क्योंकि यह उन समुदायों के लिए आरक्षण के उद्देश्य को कमजोर कर सकता है, जो जातिगत भेदभाव के शिकार रहे हैं।
6. आरक्षण की आवश्यकता और सामाजिक न्याय:
भारत में आरक्षण का उद्देश्य शुरू से ही सामाजिक न्याय था। भारतीय समाज में जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का गहरा इतिहास रहा है, जिसने विभिन्न समुदायों को लंबे समय तक शिक्षा, रोजगार, और अन्य अवसरों से वंचित रखा। इस परिप्रेक्ष्य में, आरक्षण का मुख्य उद्देश्य इन समुदायों को अवसर प्रदान करना और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना था।
हालांकि, समय के साथ यह महसूस किया गया कि केवल जाति आधारित आरक्षण से ही इन समुदायों का समग्र उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि कई बार जाति के आधार पर शोषित होने के बावजूद कुछ वर्ग आर्थिक रूप से संपन्न हो चुके हैं। इसके परिणामस्वरूप, आरक्षण में आर्थिक आधार को भी शामिल किया गया ताकि उन वर्गों तक लाभ पहुंचाया जा सके, जिनकी आर्थिक स्थिति खराब है, चाहे उनका जाति का क्या भी हो।
7. जाति और आर्थिक स्थिति का आपसी संबंध:
जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य था कि उन वर्गों को मुख्यधारा में लाया जाए जो वर्षों से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में समय के साथ यह बदलाव आया कि कई जातियाँ, जैसे OBC, अब आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुकी हैं और वे आरक्षण के लाभ का सही तरीके से उपयोग नहीं कर रही हैं। दूसरी ओर, कुछ अनुसूचित जातियाँ और जनजातियाँ अब भी गरीब और हाशिये पर हैं, जो जातिवाद के साथ-साथ आर्थिक पिछड़ेपन से भी जूझ रही हैं।
इसलिए, अगर हम केवल जाति को आरक्षण का आधार मानें, तो कुछ जातियाँ जो आर्थिक दृष्टि से विकसित हो चुकी हैं, वे इस सुविधा का गलत तरीके से लाभ उठा सकती हैं। वहीं, अन्य जातियाँ जो असल में आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं, वे आरक्षण से वंचित रह सकती हैं। इस वजह से, आरक्षण में आर्थिक आधार को जोड़ने की बात उठी, ताकि असल में जरूरतमंद लोगों तक सरकारी सुविधाएँ पहुँच सकें।
8. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण:
सरकार ने 103वें संविधान संशोधन के तहत, 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया। यह आरक्षण आर्थिक स्थिति के आधार पर उन लोगों को दिया गया जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम थी। यह प्रावधान एक नए कदम के रूप में देखा गया, जो जातिवाद से बाहर जाकर केवल आर्थिक स्थिति पर आधारित था। हालांकि, इसे लेकर आलोचनाएँ भी हुईं, क्योंकि इससे जातिगत भेदभाव की समस्या पूरी तरह से हल नहीं हो पा रही थी और समाज में असमानताएँ बनी हुई थीं।
9. वैधता और न्यायिक दृष्टिकोण:
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में आर्थिक आधार पर आरक्षण की वैधता को चुनौती दी थी। 1992 के Indra Sawhney v. Union of India मामले में, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरक्षण की व्यवस्था जाति और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर होनी चाहिए, न कि सिर्फ आर्थिक स्थिति के आधार पर। हालांकि, 2019 के बाद, जब EWS आरक्षण का प्रावधान आया, तब इस पर भी न्यायिक परीक्षण हुआ और अदालत ने इसे संविधान के तहत वैध माना, क्योंकि यह समाज के पिछड़े वर्गों को अवसर देने के उद्देश्य से था।
यह तात्पर्य है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की वैधता पर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं, लेकिन जब यह समाज के असली लाभार्थियों तक पहुंचे, तो इसे स्वीकार भी किया गया। हालांकि, यह हमेशा यह चुनौती बनी रहती है कि सही लाभार्थी को ढूंढना कितना कठिन हो सकता है।
10. जातिवाद और आर्थिक विकास का मिलाजुला प्रभाव:
कई बार यह माना जाता है कि आरक्षण के आर्थिक आधार से जातिवाद की समस्या का हल नहीं होगा। इसके बजाय, सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार में सुधार, को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि सरकार इन क्षेत्रों में व्यापक सुधार करती है, तो जातिवाद और आर्थिक असमानताओं को समाप्त करना संभव हो सकता है।
समाज के विकास और समृद्धि में कई कारक शामिल हैं-जैसे शिक्षा, कौशल विकास, सरकारी योजनाओं का सही उपयोग, और सामाजिक-संस्कृतिक समावेश। आर्थिक आधार पर आरक्षण इन पहलुओं को सिर्फ एक हिस्सा बनाता है, लेकिन यह पूरी तस्वीर नहीं है। इसलिए, जातिवाद और आर्थिक असमानताओं को समाप्त करने के लिए यह जरूरी है कि सरकार ऐसे कदम उठाए जो सिर्फ आरक्षण तक सीमित न हों, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य बुनियादी सेवाओं में सुधार भी करें।
11. आरक्षण की समस्याएँ और चुनौतियाँ:
आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था, चाहे वह जाति के आधार पर हो या फिर सिर्फ आर्थिक स्थिति के आधार पर, कुछ समस्याएँ और चुनौतियाँ भी उत्पन्न करती है। इसके कई पहलू हैं जिन्हें समझने की आवश्यकता है:
A) वर्गीकरण की कठिनाई: जब आरक्षण की व्यवस्था केवल आर्थिक आधार पर लागू की जाती है, तो यह समस्या उत्पन्न होती है कि किन लोगों को इसके तहत लाभ मिलेगा। विशेषकर भारत जैसे विशाल और विविध देश में, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की पहचान करना और उन्हें सही तरीके से चिन्हित करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। कई बार व्यक्ति की आर्थिक स्थिति तो खराब होती है, लेकिन वह जातिगत दृष्टि से संपन्न वर्ग से आता है। इसके विपरीत, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो जातिगत दृष्टि से कमजोर होते हैं,
B) जातिवाद की निरंतरता: यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो यह सम्भव है कि जातिवाद का मुद्दा पूरी तरह से हल न हो सके। भारतीय समाज में जातिवाद केवल आर्थिक स्थिति से परे एक गहरी सामाजिक समस्या है। जातिवाद का असर शिक्षा, नौकरी, विवाह, और यहां तक कि सामाजिक परिवेश में भी देखा जाता है। अगर आरक्षण केवल आर्थिक आधार पर दिया जाता है, तो कुछ समुदायों को भले ही लाभ मिल सकता है, लेकिन यह जातिवाद की गहरी सामाजिक जड़ों को खत्म नहीं कर पाएगा।
C) राजनीतिक लाभ और भ्रष्टाचार: आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे में राजनीतिक दलों द्वारा इसका इस्तेमाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए करने की संभावना रहती है। खासकर चुनावों के समय, इसे एक साधन के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, ताकि वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा मिले। इस कारण, आरक्षण के वास्तविक उद्देश्य में भ्रष्टाचार और अपव्यय भी घुस सकता है, और इसका फायदा सही लोगों तक नहीं पहुँच पाता।
D) उच्च वर्गों का विरोध: आर्थिक आधार पर आरक्षण के कारण कुछ उच्च जाति के लोगों का विरोध भी सामने आया है। उनका कहना है कि जब वे जातिगत दृष्टिकोण से आर्थिक रूप से संपन्न हैं, तो उन्हें आरक्षण का लाभ क्यों मिले? यही विरोध अक्सर आरक्षण की राजनीतिक वैधता को चुनौती देता है और समाज में नकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करता है।
12. आरक्षण का प्रभाव:
A) शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि: आरक्षण व्यवस्था के तहत, खासकर शिक्षा और सरकारी नौकरी के क्षेत्र में पिछड़े वर्गों को अवसर मिलते हैं। इससे समाज में एक नया बदलाव आया है, क्योंकि पहले इन वर्गों के लिए ये अवसर सुलभ नहीं थे। आज कई प्रमुख सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियाँ, जनजातियाँ, और अन्य पिछड़ा वर्गों के लोग शामिल हैं, जो आरक्षण के कारण संभव हुआ।
B) सामाजिक समरसता: आरक्षण का उद्देश्य समाज में समानता और समरसता स्थापित करना है। हालांकि यह व्यवस्था कभी-कभी समाज में विभाजन का कारण बन सकती है, लेकिन इसके सकारात्मक प्रभावों को भी नकारा नहीं किया जा सकता। आरक्षण ने समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने में मदद की है, जिससे समाज में एकजुटता बढ़ी है।
C) सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार: आरक्षण की वजह से कई पिछड़े वर्गों ने बेहतर शिक्षा प्राप्त की और विभिन्न क्षेत्रों में अपनी स्थिति को मजबूत किया। इससे उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर में सुधार हुआ है, और वे अब पहले से बेहतर जीवन स्तर का अनुभव कर रहे हैं। इसका प्रभाव न केवल उन व्यक्तियों पर पड़ा है, बल्कि उनके परिवारों और समाज पर भी सकारात्मक असर पड़ा है।
13. आरक्षण का भविष्य:
A) समग्र सामाजिक सुधार: आर्थिक आधार पर आरक्षण की सफलता तब होगी जब इसे समग्र सामाजिक सुधार के रूप में लागू किया जाएगा। इसका मतलब है कि केवल शिक्षा या सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के बजाय, सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार के अन्य क्षेत्रों में भी सुधार करने की आवश्यकता है। साथ ही, एकीकृत समाज की दिशा में काम करना होगा ताकि कोई भी वर्ग, जाति या समुदाय सामाजिक भेदभाव से बाहर आ सके।
B) नीतिगत बदलाव और सुधार: आरक्षण के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए, सरकार को न केवल आर्थिक आधार बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए भी नीतियाँ बनानी होंगी। इसके अंतर्गत, गरीबों के लिए स्वास्थ्य, आवास, और शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि आरक्षण केवल एक अस्थायी उपाय न हो, बल्कि एक स्थायी बदलाव का हिस्सा बने।
C) प्रौद्योगिकी और कौशल विकास: आर्थिक आधार पर आरक्षण के साथ-साथ, प्रौद्योगिकी और कौशल विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। रोजगार की दुनिया में आजकल तकनीकी कौशल की अहमियत बढ़ी है। अगर सरकारी और निजी क्षेत्रों में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने वाले वर्गों को समग्र कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, तो यह उनके आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मदद करेगा और उन्हें रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे।
14. आर्थिक आधार पर आरक्षण की परिप्रेक्ष्य में सुधार:
आर्थिक आधार पर आरक्षण की अवधारणा को और बेहतर बनाने के लिए कुछ सुधारों की आवश्यकता महसूस हो सकती है। इसका उद्देश्य केवल जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं को दूर करना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक समग्र दृष्टिकोण से लागू किया जाना चाहिए, जो समाज के हर वर्ग को समान अवसर प्रदान करे। निम्नलिखित कुछ सुधार सुझाव दिए जा रहे हैं जो इस प्रक्रिया को प्रभावी बना सकते हैं:
A) आरक्षण का चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता: आरक्षण के लाभार्थियों का चयन पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो व्यक्ति वास्तव में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, वही इसका लाभ उठा सकें। इसके लिए एक मजबूत और सटीक आंकड़े प्रणाली और क्राइटेरिया होना चाहिए, ताकि भ्रष्टाचार और गलत तरीके से लाभ उठाने की संभावना को कम किया जा सके। इसके साथ ही, आवेदन और चयन प्रक्रिया को सरल और खुला रखना चाहिए, ताकि हर व्यक्ति को यह अवसर मिल सके।
B) एकीकृत विकास की नीति: आरक्षण का असली उद्देश्य तब पूरा होगा जब यह केवल सरकारी नौकरियों या शिक्षा तक सीमित न रहे। सरकार को एकीकृत विकास की नीति अपनानी चाहिए, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए न केवल आरक्षण, बल्कि रोजगार के अवसरों, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की गुणवत्ता में भी सुधार किया जाए। अगर इन क्षेत्रों में समग्र सुधार होते हैं, तो केवल आरक्षण से ज्यादा प्रभावशाली और स्थायी परिवर्तन आ सकता है।
C) जातिवाद के खिलाफ समग्र समाजिक जागरूकता: हालांकि आर्थिक आधार पर आरक्षण का उद्देश्य मुख्य रूप से आर्थिक असमानताओं को दूर करना है, लेकिन जातिवाद का प्रभाव अब भी भारतीय समाज में गहरे रूप से मौजूद है। जातिवाद की समस्याओं को हल करने के लिए केवल आरक्षण पर्याप्त नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में जागरूकता लाने की जरूरत है, ताकि जातिवाद के खिलाफ लड़ाई एक सामूहिक प्रयास बने। विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, और सार्वजनिक मंचों पर जातिवाद के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए
D) आरक्षण के माध्यम से कौशल विकास: आरक्षण के लाभार्थियों को केवल अवसर ही नहीं, बल्कि उन्हें व्यावसायिक कौशल और आधुनिक तकनीकी शिक्षा भी प्रदान की जानी चाहिए। इसके लिए सरकारी योजनाओं में कौशल प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि केवल शिक्षा के साथ-साथ रोजगार की दृष्टि से भी योग्यताएं बढ़ाई जाएं। जब एक व्यक्ति अपनी शिक्षा पूरी करता है और उसे अपने क्षेत्र में व्यावसायिक कौशल प्राप्त होता है, तो उसे नौकरी पाने में कोई कठिनाई नहीं होती।
15. आरक्षण के वैकल्पिक मॉडल:
आर्थिक आधार पर आरक्षण के अलावा, कुछ वैकल्पिक मॉडल भी हो सकते हैं, जो समाज के विभिन्न वर्गों को समान अवसर देने में सहायक हो सकते हैं:
A) सामाजिक न्याय आधारित कार्यक्रम: विभिन्न सरकारी योजनाएँ और सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ, जो किसी भी वर्ग को सीधे लाभ पहुंचाती हैं, उनका एकीकरण करके एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क तैयार किया जा सकता है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और रोजगार के अवसरों को प्राथमिकता दी जा सकती है, ताकि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को जीवनस्तर में सुधार करने का अवसर मिल सके। ये योजनाएँ सीधे आरक्षण से ज्यादा प्रभावी हो सकती हैं, क्योंकि वे उन वर्गों की व्यापक जरूरतों को पूरा करने में मदद करती हैं।
B) गरीबी उन्मूलन योजनाएँ: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए गरीबी उन्मूलन योजनाएँ अधिक प्रभावी हो सकती हैं। अगर सरकार गरीबी की ओर बढ़ते हुए लोगों के लिए विशेष पैकेज तैयार करती है, तो वे केवल शिक्षा और रोजगार तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि समग्र जीवन स्तर को ऊंचा करने के लिए भी सहायक साबित होते हैं। उदाहरण स्वरूप, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना, छोटे व्यापारों के लिए वित्तीय सहायता, और ग्रामीण शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना एक अच्छे विकल्प हो सकते हैं।
16. अंततः सामाजिक-आर्थिक समरसता की दिशा में एकीकृत प्रयास:
आरक्षण केवल एक कदम है, लेकिन यह समाज में व्यापक बदलाव का एक हिस्सा होना चाहिए। इसके साथ ही, सामाजिक-आर्थिक समरसता की दिशा में समाज के हर वर्ग को समान अवसर और अधिकार देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसका अर्थ है, केवल गरीबों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण देना नहीं, बल्कि हर वर्ग के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना। इसके लिए सरकारी योजनाओं का एक समग्र ढांचा तैयार करना आवश्यक है, जिसमें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और सामाजिक न्याय के सभी पहलुओं को शामिल किया जाए।
Conclusion
आर्थिक आधार पर आरक्षण, भारतीय समाज में एक जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। यह सामाजिक असमानताओं और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने का एक कदम हो सकता है, लेकिन इसके साथ-साथ जातिवाद, भ्रष्टाचार, और अन्य मुद्दों पर भी काम करना आवश्यक है। आरक्षण की व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाने के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया, कौशल विकास, और समग्र सामाजिक सुधार की दिशा में काम करना होगा।
आखिरकार, आर्थिक आधार पर आरक्षण का सफलता और समाज में वास्तविक समानता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब यह एक स्थायी समाधान के रूप में लागू किया जाए, जो केवल शिक्षा या रोजगार तक सीमित न हो, बल्कि यह हर व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए व्यापक दृष्टिकोण से काम करे। तभी हम एक समान और समृद्ध समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकेंगे।
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