अधिकार बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारी भी बढ़ती है
jp Singh
2025-05-01 00:00:00
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अधिकार बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारी भी बढ़ती है
अधिकार और जिम्मेदारी—ये दोनों शब्द किसी भी समाज, संगठन या राष्ट्र की नींव होते हैं। अधिकार वह शक्ति या सुविधा है जो किसी व्यक्ति या समूह को समाज, संस्था या राज्य द्वारा प्रदान की जाती है। वहीं जिम्मेदारी वह उत्तरदायित्व है जिसे निभाने की अपेक्षा उस व्यक्ति या समूह से की जाती है। जब किसी व्यक्ति के अधिकारों में वृद्धि होती है, तो उसी अनुपात में उसकी जिम्मेदारियों में भी इजाफा होना स्वाभाविक है। यदि अधिकार बिना जिम्मेदारी के प्रयोग किए जाएँ, तो वे अराजकता और अन्याय को जन्म दे सकते हैं।
1. अधिकार का अर्थ और महत्व
अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता, सुरक्षा और विकास के लिए आवश्यक हैं। वे किसी भी लोकतांत्रिक समाज की आत्मा होते हैं। जैसे—जीवन का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, समानता का अधिकार आदि। ये अधिकार व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाते हैं।
अधिकारों का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और समानता को सुनिश्चित करना होता है। जब हर व्यक्ति अपने अधिकारों का उपयोग कर समाज में अपना योगदान देता है, तभी एक संतुलित और सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव होता है।
2. जिम्मेदारी का अर्थ और आवश्यकता
जिम्मेदारी का तात्पर्य है- अपने कार्यों, कर्तव्यों और निर्णयों के प्रति उत्तरदायी होना। यदि किसी व्यक्ति को अधिकार मिले हैं, तो यह भी अपेक्षित है कि वह उनके उचित उपयोग के लिए जिम्मेदार हो। उदाहरणस्वरूप, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं कि हम किसी की भावनाओं को आहत करें या झूठी जानकारी फैलाएँ।
जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करती है कि अधिकारों का उपयोग व्यक्तिगत स्वार्थ के बजाय समाज के हित में किया जाए। जब व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है, तो समाज में अनुशासन, नैतिकता और सहयोग की भावना का विकास होता है।
3. अधिकार और जिम्मेदारी का परस्पर संबंध
अधिकार और जिम्मेदारी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि व्यक्ति को केवल अधिकार मिले और जिम्मेदारियों की अनदेखी हो, तो वह स्वेच्छाचारी और आत्मकेंद्रित हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी नेता को निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है, तो यह उसकी जिम्मेदारी भी है कि वह जनहित में सही निर्णय ले।
इसी प्रकार, यदि किसी नागरिक को मतदान का अधिकार मिला है, तो उसकी जिम्मेदारी भी है कि वह सोच-समझकर योग्य प्रतिनिधि का चुनाव करे। यदि वह वोट नहीं देता या जाति-धर्म के आधार पर देता है, तो वह अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।
4. अधिकारों के दुरुपयोग से उत्पन्न समस्याएँ
जब अधिकारों का प्रयोग बिना जिम्मेदारी के होता है, तो अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे-
1. सामाजिक असंतुलन: जब लोग अपने अधिकारों के नाम पर दूसरों के अधिकारों का हनन करते हैं, तो समाज में तनाव और असंतुलन उत्पन्न होता है।
2. राजनीतिक अराजकता: नेताओं द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग और जिम्मेदारियों की अनदेखी शासन व्यवस्था को कमजोर बनाती है।
3. नैतिक पतन: जब व्यक्ति अधिकारों का उपयोग केवल अपने स्वार्थ के लिए करता है, तो सामाजिक नैतिकता और मूल्यों में गिरावट आती है।
उदाहरण- सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत उपयोग कर अफवाहें फैलाना, या धार्मिक भावनाओं को आहत करना, न केवल कानूनन अपराध है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी से भी मुंह मोड़ना है।
5.वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रसंगिकता
आज का समय सूचना, संचार और प्रौद्योगिकी का युग है। व्यक्ति को अभूतपूर्व अधिकार और सुविधाएँ प्राप्त हैं। किंतु इसके साथ ही उसकी जिम्मेदारियाँ भी कहीं अधिक बढ़ गई हैं। आज के नागरिक को न केवल अपने देश के संविधान और कानूनों का पालन करना चाहिए, बल्कि सामाजिक सौहार्द, पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता और अन्य आधुनिक जिम्मेदारियों को भी समझना चाहिए।
लोकतंत्र में नागरिकों को अनेक अधिकार मिलते हैं, लेकिन यदि वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं करते, तो लोकतंत्र कमजोर पड़ सकता है। इसलिए जागरूक नागरिक वही है जो न केवल अपने अधिकारों की मांग करता है, बल्कि अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को भी गंभीरता से निभाता है।
6.शिक्षा की भूमिका
शिक्षा व्यक्ति को अधिकारों और जिम्मेदारियों की समझ देती है। एक शिक्षित व्यक्ति जानता है कि अधिकार केवल सुविधाएँ नहीं हैं, बल्कि वे दायित्वों के साथ आते हैं। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शिक्षण संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों को केवल अधिकारों की जानकारी ही नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारियों का भी प्रशिक्षण मिले।
7.प्रेरक उदाहरण
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता का अधिकार पाने के साथ-साथ सत्य, अहिंसा और आत्मानुशासन की जिम्मेदारी को हमेशा महत्व दिया। उन्होंने लोगों को सिखाया कि स्वतंत्रता बिना जिम्मेदारी के केवल भ्रम है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी कहा था, "अगर हम अपने देश को भ्रष्टाचारमुक्त और सुंदर बनाना चाहते हैं, तो हमें पहले एक जिम्मेदार नागरिक बनना होगा।"
Conclusion
अधिकार और जिम्मेदारी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जितना अधिक व्यक्ति को अधिकार प्राप्त होता है, उतनी ही अधिक उसकी जिम्मेदारी होती है कि वह उनका सही उपयोग करे। अधिकारों का प्रयोग तभी सार्थक होता है जब व्यक्ति उन्हें सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों के साथ संतुलित करता है। अतः यह कहना बिल्कुल उचित है कि "अधिकार बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारी भी बढ़ती है।" यदि हम इस सिद्धांत को अपनाएँ, तो न केवल एक आदर्श नागरिक बन सकते हैं, बल्कि एक सशक्त, समृद्ध और समरस राष्ट्र की नींव भी रख सकते है
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