भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22
jp Singh
2025-05-09 13:10:42
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22
भारत के संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तारी और निरोध के मामलों में व्यक्तियों (नागरिकों और गैर-नागरिकों) को संरक्षण प्रदान करता है। यह दो प्रकार की स्थितियों को कवर करता है: सामान्य गिरफ्तारी और निवारक निरोध (Preventive Detention)। इसके प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. सामान्य गिरफ्तारी में संरक्षण (अनुच्छेद 22(1) और 22(2)):
गिरफ्तारी का आधार
किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार और कारण बताए बिना हिरासत में नहीं रखा जाएगा।
वकील से परामर्श का अधिकार
गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के वकील से परामर्श करने और बचाव का अधिकार है।
नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी
गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर (यात्रा के समय को छोड़कर) नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा, और मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना उसे आगे हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
2. निवारक निरोध में संरक्षण (अनुच्छेद 22(4) से 22(7)):
निवारक निरोध का अर्थ
यह वह स्थिति है जब किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए, भविष्य में अपराध रोकने के लिए हिरासत में लिया जाता है।
संरक्षण
निवारक निरोध में व्यक्ति को यथाशीघ्र (आमतौर पर 3 महीने के भीतर) निरोध के कारण बताए जाएंगे।
व्यक्ति को सलाहकार बोर्ड (Advisory Board) के समक्ष अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा।
बिना सलाहकार बोर्ड की सहमति के 3 महीने से अधिक निरोध नहीं हो सकता।
संसद का अधिकार: संसद कानून बनाकर निवारक निरोध की अवधि और प्रक्रिया को निर्धारित कर सकती है।
महत्वपूर्ण बिंदु
लागू होने का दायरा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22(1) और 22(2) सभी व्यक्तियों (नागरिक और गैर-नागरिक) पर लागू होते हैं, जबकि निवारक निरोध के प्रावधान मुख्य रूप से नागरिकों पर लागू होते हैं।
संबंधित कानून
निवारक निरोध से संबंधित कानूनों में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980, और UAPA (असाधारण गतिविधि निवारण अधिनियम) शामिल हैं।
महत्वपूर्ण मामले
ए.के. रॉय बनाम भारत संघ (1982)
निवारक निरोध की संवैधानिकता और सलाहकार बोर्ड की भूमिका पर चर्चा।
डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल (1997):
गिरफ्तारी के दौरान पुलिस की मनमानी रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए।
सीमाएँ
निवारक निरोध के तहत कुछ संरक्षण सीमित हैं, और यह अनुच्छेद आपातकाल में निलंबित हो सकता है।
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jp Singh
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