भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20
jp Singh
2025-05-09 12:44:37
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
भारत के संविधान का अनुच्छेद 20 आपराधिक मामलों में नागरिकों (और कुछ मामलों में गैर-नागरिकों) को कुछ मौलिक संरक्षण प्रदान करता है। यह अनुच्छेद आपराधिक न्याय प्रणाली में मनमाने ढंग से कार्रवाई से बचाने के लिए है। इसके प्रावधान निम्नलिखित हैं
1. पूर्व प्रभावी कानून से सजा नहीं (Ex Post Facto Law):
किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जो अपराध के समय कानून द्वारा अपराध नहीं था।
अपराध के समय लागू कानून से अधिक कठोर सजा नहीं दी जा सकती।
यह केवल आपराधिक कानूनों पर लागू होता है, दीवानी कानूनों पर नहीं।
2. दोहरे दंड से संरक्षण (Double Jeopardy):
किसी व्यक्ति को एक ही अपर² अपराध के लिए दो बार मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।
यह सिद्धांत केवल एक ही अपराध के लिए लागू होता है, न कि अलग-अलग अपराधों के लिए।
3. स्वयं को दोषी ठहराने के लिए बाध्य नहीं (Protection Against Self-Incrimination):
किसी व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति अपने बयान या साक्ष्य से खुद को अपराधी साबित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
महत्वपूर्ण बिंदु
लागू होने का दायरा: यह अनुच्छेद नागरिकों और गैर-नागरिकों (जैसे विदेशियों) दोनों पर लागू होता है। - महत्वपूर्ण मामले
केदार नाथ बनाम बिहार राज्य (1962): देशद्रोह कानून को अनुच्छेद 20 के तहत वैध माना गया।
नंदिनी सत्पथी बनाम पी.एल. दानी (1978): स्वयं को दोषी ठहराने से संरक्षण की व्याख्या, जिसमें पुलिस पूछताछ में चुप रहने का अधिकार शामिल है।
मोहन लाल बनाम भारत संघ (1957): पूर्व प्रभावी कानून के सिद्धांत को स्पष्ट किया गया।
सीमाएँ: यह संरक्षण केवल आपराधिक कार्यवाहियों पर लागू होता है, प्रशासनिक या दीवानी मामलों पर नहीं।
Conclusion
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jp Singh
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