भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13
jp Singh
2025-05-09 12:10:47
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13: मौलिक अधिकारों के साथ असंगत कानूनों की शून्यता से संबंधित है। यह भारत के संविधान के मौलिक अधिकारों (भाग III, अनुच्छेद 12-35) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और मौलिक अधिकारों की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करता है।
प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 के अनुसार
1. संविधान लागू होने से पहले के कानून:
कोई भी कानून, जो संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के समय मौजूद था और मौलिक अधिकारों के साथ असंगत है, वह उस असंगति की सीमा तक शून्य होगा।
2. संविधान लागू होने के बाद के कानून:
कोई भी नया कानून जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, वह उस उल्लंघन की सीमा तक शून्य होगा।
3.
इसमें संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानून, अध्यादेश, नियम, विनियम, अधिसूचनाएँ, और प्रथागत कानून शामिल हैं।
4. संवैधानिक संशोधन:
संवैधानिक संशोधन (अनुच्छेद 368 के तहत) सामान्यतः अनुच्छेद 13 के दायरे में नहीं आते, जब तक कि वे मौलिक अधिकारों को पूरी तरह नष्ट न करें (यह केशवानंद भारती मामले, 1973 में स्पष्ट हुआ)।
महत्व
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कानून, चाहे वह पुराना हो या नया, इन अधिकारों का उल्लंघन न करे।
यह न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) का आधार प्रदान करता है, जिसके तहत न्यायालय असंवैधानिक कानूनों को रद्द कर सकते हैं।
यह राज्य की शक्ति को सीमित करता है, ताकि वह मौलिक अधिकारों के खिलाफ कानून न बना सके।
यदि कोई कानून अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है, तो सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय उसे अनुच्छेद 13 के तहत शून्य घोषित कर सकता है।
उदाहरण
ब्रिटिश काल के कानून, जैसे कुछ दमनकारी कानून (उदाहरण: रॉलेट एक्ट के अवशेष), जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ थे, संविधान लागू होने पर शून्य हो गए।
आधुनिक उदाहरण: यदि कोई नया कानून अनुच्छेद 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) को अनुचित रूप से सीमित करता है, तो उसे न्यायालय द्वारा रद्द किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु
शून्यता
न्यायिक पुनरावलोकन: अनुच्छेद 13 के तहत, सुप्रीम कोर्ट (अनुच्छेद 32) और उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों पर कानूनों की वैधता की जाँच कर सकते हैं।
केशवानंद भारती मामला (1973): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक संशोधन अनुच्छेद 13 के तहत शून्य नहीं होंगे, जब तक कि वे संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) को नष्ट न करें।
संबंधित जानकारी
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12:
- गोलकनाथ मामला (1967): सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद मौलिक अधिकारों को संशोधित नहीं कर सकती, लेकिन यह बाद में केशवानंद भारती मामले में संशोधित हुआ।
मिनर्वा मिल्स मामला (1980): मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों के बीच संतुलन पर जोर दिया गया।
आधुनिक संदर्भ: अनुच्छेद 13 आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह नए कानूनों (जैसे, डेटा गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, या आरक्षण से संबंधित) की संवैधानिकता की जाँच का आधार है।
प्रासंगिकता
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 संविधान की लोकतांत्रिक और न्यायिक संरचना का आधार है, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों को सर्वोपरि रखता है।
यह नागरिकों को असंवैधानिक कानूनों के खिलाफ न्यायालय में जाने का अधिकार देता है, जिससे सरकार की मनमानी शक्ति पर अंकुश लगता है।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 मौलिक अधिकारों की रक्षा से संबंधित है और यह सुनिश्चित करता है कि राज्य द्वारा बनाए गए कानून मौलिक अधिकारों के साथ असंगत या उनके उल्लंघन में न हों। इसका विवरण निम्नलिखित है:
1. अनुच्छेद 13(1)
स्वतंत्रता से पहले बनाए गए सभी कानून, जो संविधान के भाग III (मौलिक अधिकार) के प्रावधानों के साथ असंगत हैं, असंगति की सीमा तक शून्य होंगे।
2. अनुच्छेद 13(2)
राज्य ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगा जो मौलिक अधिकारों को छीनता हो या उनका उल्लंघन करता हो। यदि ऐसा कोई कानून बनाया जाता है, तो वह असंगति की सीमा तक शून्य होगा।
3. अनुच्छेद 13(3): इस अनुच्छेद में
अध्यादेश, आदेश, उपनियम, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा, जो भारत में कानून के रूप में लागू हो।
इसमें संशोधन शामिल नहीं हैं, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा न हो।
4. अनुच्छेद 13(4)
इस अनुच्छेद का कोई भी प्रावधान अनुच्छेद 368 के तहत किए गए संविधान संशोधन पर लागू नहीं होगा। (यह खंड 24वें संशोधन, 1971 द्वारा जोड़ा गया।)
महत्व
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 न्यायिक समीक्षा का आधार प्रदान करता है, जिसके तहत न्यायालय असंगत कानूनों को रद्द कर सकते हैं। यह मौलिक अधिकारों की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करता है।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781