भारतीय संविधान का अनुच्छेद 4
jp Singh
2025-05-09 10:56:08
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 4
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 4: अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानूनों का प्रभाव और संवैधानिक संशोधन से संबंधित है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 4 यह स्पष्ट करता है कि
1. अनुच्छेद 2 (नए राज्यों का प्रवेश) और अनुच्छेद 3 (राज्यों के पुनर्गठन, सीमाओं या नामों में बदलाव) के तहत बनाए गए कानून:
संवैधानिक संशोधन नहीं माने जाएंगे, भले ही वे संविधान की प्रथम अनुसूची (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची) या चतुर्थ अनुसूची (राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व) में बदलाव करें।
2. ऐसे कानून संसद में साधारण बहुमत से पारित किए जा सकते हैं, और इसके लिए संविधान संशोधन की विशेष प्रक्रिया (अनुच्छेद 368) की आवश्यकता नहीं होती।
मुख्य बिंदु
यह अनुच्छेद संसद को राज्यों के गठन, पुनर्गठन, या सीमा परिवर्तन में लचीलापन प्रदान करता है।
यह सुनिश्चित करता है कि प्रथम और चतुर्थ अनुसूची में आवश्यक बदलाव आसानी से किए जा सकें।
यह केंद्र की प्रभुता को मजबूत करता है, क्योंकि राज्यों की संरचना में बदलाव के लिए जटिल प्रक्रिया की जरूरत नहीं होती।
उदाहरण
तेलंगाना का गठन (2014): आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत तेलंगाना बनाया गया, और प्रथम अनुसूची में संशोधन हुआ। यह अनुच्छेद 4 के तहत साधारण कानून द्वारा संभव हुआ।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (2019): जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के लिए प्रथम अनुसूची में बदलाव किया गया, जो अनुच्छेद 4 के तहत हुआ।
सिक्किम का विलय (1975): सिक्किम को राज्य बनाने के लिए प्रथम और चतुर्थ अनुसूची में संशोधन हुआ, जो अनुच्छेद 4 के प्रावधानों के तहत था।
संबंधित जानकारी
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2 और 3 के साथ मिलकर, अनुच्छेद 4 भारत के क्षेत्रीय ढांचे को गतिशील और अनुकूल बनाता है।
यह प्रावधान भारत जैसे विविध और बड़े देश में प्रशासनिक और राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुसार बदलाव को सुगम बनाता है।
Conclusion
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jp Singh
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