Cooperative federalism: myth or reality सहकारी संघवाद: मिथक या वास्तविकता
jp Singh
2025-05-08 17:59:38
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Cooperative federalism: myth or reality सहकारी संघवाद: मिथक या वास्तविकता
सहकारी संघवाद भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह संघीय ढांचे की मूलधारा को बनाने वाली धारणा है, जो राज्यों और केंद्र के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की अवधारणा पर आधारित है। भारतीय संघवाद की जड़ें ब्रिटिश काल से जुड़ी हुई हैं, जब भारत में दोहरी सरकार (Central and Provincial) का ढांचा अस्तित्व में आया था। संविधान निर्माताओं ने भारतीय संघ के संचालन के लिए सहकारी संघवाद की अवधारणा को अपनाया था, ताकि एक सशक्त और स्थिर शासन व्यवस्था बनाई जा सके।
यह सिद्धांत केंद्र और राज्यों के बीच साझी जिम्मेदारी और शक्ति के समन्वय की बात करता है। सहकारी संघवाद का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग की भावना उत्पन्न करना है। लेकिन, भारतीय राजनीति में सहकारी संघवाद के सिद्धांत को लेकर कई बार विवाद उठते रहे हैं। क्या यह केवल एक मिथक है, या वास्तव में इसे लागू किया गया है, यह प्रश्न आज भी प्रासंगिक है। इस निबंध में हम सहकारी संघवाद के सिद्धांत, उसकी अवधारणा, और भारतीय राजनीति में इसके वास्तविकता या मिथक होने का विश्लेषण करेंगे।
सहकारी संघवाद की परिभाषा और सिद्धांत
सहकारी संघवाद की अवधारणा का अर्थ है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे के साथ मिलकर काम करेंगी, और दोनों के अधिकारों का सम्मान किया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच सत्ता का संतुलन बनाए रखना और दोनों के बीच सहयोग और सामंजस्य सुनिश्चित करना है। इसे एक साथ मिलकर निर्णय लेने की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने अधिकारों का निर्वहन करते हुए एक सामान्य उद्देश्य की ओर बढ़ते हैं।
भारतीय संघवाद में सहकारी संघवाद का विचार तब ज्यादा प्रासंगिक होता है, जब केंद्र सरकार किसी राज्य की समस्याओं में हस्तक्षेप करती है। इसका उद्देश्य राज्य सरकारों को उनका अधिकार देने के साथ-साथ, केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का अवसर भी देता है कि राज्य सरकारें राष्ट्रीय हित में काम करें। इस प्रकार, सहकारी संघवाद दोनों सरकारों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है।
भारतीय संविधान और सहकारी संघवाद
भारतीय संविधान में संघवाद का ढांचा दो प्रमुख भागों में बांटा गया है: केंद्र (Union) और राज्य (State)। संविधान के अनुच्छेद 1 से लेकर अनुच्छेद 245 तक भारतीय संघ की संरचना और राज्य के अधिकारों की स्थापना की गई है। संघीय ढांचे में केंद्र और राज्य के बीच शक्ति का वितरण एक महत्वपूर्ण पहलू है। हालांकि, भारतीय संविधान में शक्ति के वितरण के संदर्भ में सहकारी संघवाद की अवधारणा पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन यह धारणा संविधान के विभिन्न प्रावधानों में निहित है। विशेष रूप से, संविधान में केंद्र और राज्य के बीच के संबंधों को नियंत्रित करने वाले अनुच्छेदों में सहकारी दृष्टिकोण की आवश्यकता को महसूस किया गया है।
सहकारी संघवाद का अभ्यास और वास्तविकता
भारत में सहकारी संघवाद की स्थिति हमेशा समान नहीं रही है। कई बार केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के अधिकारों पर अतिक्रमण किया, जबकि अन्य समय में राज्यों ने केंद्र से अधिक स्वतंत्रता की मांग की। इस प्रकार, सहकारी संघवाद का अभ्यास एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र रहा है, जहां कभी-कभी समझौते और सहमति की कमी रही है।
1. संसदीय प्रणाली का प्रभाव
भारत में संसदीय प्रणाली है, जो एक पार्टी या गठबंधन को केंद्र में शक्ति दिलाने के लिए मतदान द्वारा स्थापित करती है। जब केंद्र में एक पार्टी का शासन होता है, जो राज्यों में भी शासन करती है, तो सहकारी संघवाद का स्वरूप अधिक प्रभावी होता है। इससे राज्यों और केंद्र के बीच की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्थाएं सहज और सामंजस्यपूर्ण बन सकती हैं। हालांकि, जब केंद्र में कोई पार्टी और राज्यों में अलग-अलग पार्टियां सत्ता में होती हैं, तो यह सहकारी संघवाद की अवधारणा को चुनौती देता है।
2. राजनीतिक हस्तक्षेप और केंद्र का नियंत्रण
भारतीय राजनीति में केंद्र सरकार का प्रभाव कभी-कभी राज्य सरकारों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करने के रूप में देखा गया है। विशेष रूप से, अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का उपयोग जब राज्य सरकारें केंद्र से असहमत होती हैं, तब यह केंद्र और राज्य के बीच असहमति को बढ़ावा देता है। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकारों की स्वायत्तता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है, और सहकारी संघवाद का सिद्धांत कमजोर हो जाता है।
3. वित्तीय संघवाद और योजना आयोग
सहकारी संघवाद के एक महत्वपूर्ण आयाम के रूप में वित्तीय सहयोग का भी योगदान है। भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। योजना आयोग (अब नीति आयोग) के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय सहायता का वितरण किया जाता है। हालांकि, इस प्रणाली में केंद्र का प्रभाव हमेशा अधिक रहा है, जिससे राज्यों को अपने स्वायत्त निर्णय लेने में कठिनाई होती है।
4. केंद्र-राज्य विवाद और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
कई बार केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कानून, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में टकराव हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में केंद्र और राज्यों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए, जल विवाद, राज्य अधिकारों की रक्षा, और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका अहम रही है।
सहकारी संघवाद की चुनौतियाँ
सहकारी संघवाद की अवधारणा को व्यावहारिक रूप से लागू करना आसान नहीं है, क्योंकि विभिन्न राज्य अलग-अलग परिस्थितियों और राजनीतिक दृष्टिकोणों से प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार का प्रभावशाली और कभी-कभी प्राधिकृत दृष्टिकोण भी सहकारी संघवाद की वास्तविकता को प्रभावित करता है।
1. राज्य असंतोष और संघर्ष
जब राज्य सरकारें केंद्र से असहमत होती हैं या उन्हें लगता है कि उनकी आवाज़ को महत्व नहीं दिया जा रहा है, तो वे विरोध प्रकट करती हैं। यह राज्य और केंद्र के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करता है, जिससे सहकारी संघवाद की अवधारणा कमजोर हो सकती है।
2. विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोण
राज्य सरकारों के राजनीतिक दृष्टिकोण अक्सर केंद्र सरकार से भिन्न होते हैं, जिसके कारण केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग की भावना कम हो सकती है। यह सहकारी संघवाद के सिद्धांत को चुनौती देता है, क्योंकि सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में मतभेद आ सकते हैं।
3. संसाधनों का असमान वितरण
देश के विभिन्न राज्यों के पास संसाधनों की असमान उपलब्धता है। केंद्र द्वारा राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता का वितरण भी कभी-कभी राज्यों के विकास को प्रभावित करता है।
Conclusion
सहकारी संघवाद भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो केंद्र और राज्य के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की दिशा में मार्गदर्शन करता है। हालांकि, वास्तविकता में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संघर्ष, राजनीतिक असहमति और संसाधनों के वितरण में असमानता सहकारी संघवाद के सिद्धांत की अवधारणा को चुनौती देती है। इसे मिथक या वास्तविकता के रूप में देखना शायद स्थिति पर निर्भर करता है, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय संघवाद में सहकारी संघवाद की अवधारणा को एक आदर्श के रूप में अपनाने की आवश्यकता है।
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