वाचिक साहित्य: एक परिचय (Oral Literature)
jp Singh
2025-05-07 00:00:00
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वाचिक साहित्य: एक परिचय (Oral Literature)
वाचिक साहित्य (Oral Literature) वह साहित्य है जो मौखिक रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक समाज से दूसरे समाज में, किसी भाषा के माध्यम से प्रसारित होता है। यह साहित्य किसी विशेष व्यक्ति द्वारा लिखा हुआ नहीं होता, बल्कि यह जनसामान्य के बीच मौखिक रूप से रचनात्मक रूप में उत्पन्न होता है और स्थानांतरित होता है।
वाचिक साहित्य की उत्पत्ति
वाचिक साहित्य की उत्पत्ति प्राचीन समय से मानी जाती है, जब लेखन प्रणाली विकसित नहीं हुई थी। शुरुआती मनुष्य अपने विचारों, ज्ञान, और अनुभवों को अपने आसपास के लोगों के साथ साझा करने के लिए शब्दों का प्रयोग करते थे। यह साहित्य पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया जाता था और मौखिक रूप से पारित होता था। इसका उदाहरण प्राचीन वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, लोककथाओं, गीतों, और कहानियों में पाया जाता है।
वाचिक साहित्य का महत्व
वाचिक साहित्य का महत्व केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी है। यह साहित्य किसी समाज के ऐतिहासिक अनुभवों, परंपराओं, विश्वासों और सांस्कृतिक धरोहरों का जीवित प्रमाण है। इसमें वह सभी तत्व होते हैं जो किसी समाज के विकास और इतिहास को प्रदर्शित करते हैं।
वाचिक साहित्य के प्रकार
1. लोककथाएँ और मिथक -
ये वे कथाएँ होती हैं जो किसी समुदाय या समाज के विश्वासों और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाती हैं। महाभारत, रामायण, और अन्य प्राचीन कथाएँ इस श्रेणी में आती हैं।
2. गीत और कविताएँ -
लोकगीत और कविताएँ जो समाज के विभिन्न पहलुओं, जैसे प्रेम, युद्ध, दुःख, खुशी आदि को व्यक्त करती हैं। ये गीत आमतौर पर गाए जाते हैं और व्यक्तिगत या सामूहिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त करते हैं।
3. कहानियाँ और परीकथाएँ -
यह वाचिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिनमें प्रेरक और शिक्षाप्रद कथाएँ होती हैं। ये कथाएँ आमतौर पर बच्चों को सुनाई जाती हैं, लेकिन इनमें गहरे जीवन दर्शन भी होते हैं।
4. लोकनृत्य और संगीत -
नृत्य और संगीत के माध्यम से भी वाचिक साहित्य को व्यक्त किया जाता है। इनमें कोई कहानी, ऐतिहासिक घटना या लोककथा को दर्शाने के लिए संगीत और नृत्य का सहारा लिया जाता है।
भारतीय वाचिक साहित्य
भारत में वाचिक साहित्य का एक विशाल और विविध इतिहास है। भारत के प्रत्येक राज्य और समुदाय के पास अपनी-अपनी वाचिक परंपराएँ हैं। हिंदी, बंगाली, पंजाबी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में वाचिक साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है।
1. वेद -
वेदों का मौखिक रूप में अध्ययन और उनके गायन का एक लंबा इतिहास है। वेदों में जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है और ये जनसामान्य के लिए एक सजीव रूप में प्रस्तुत होते थे।
2. महाकाव्य और पुराण -
महाभारत और रामायण जैसी महान रचनाएँ प्रारंभ में वाचिक रूप में प्रचलित थीं। ये काव्य और पुराण संकलन मौखिक परंपराओं का हिस्सा थे।
3. भक्ति और सूफी काव्य -
भक्ति काल में संतों और सूफियों द्वारा रचित काव्य भी वाचिक साहित्य का हिस्सा हैं। कबीर, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई जैसे संतों ने अपनी रचनाओं को गाकर फैलाया।
4. लोकगीत और परंपराएँ -
भारतीय गाँवों में गाए जाने वाले गीत, जैसे कि होली के गीत, दीपावली के गीत, शादी-ब्याह के गीत आदि, वाचिक साहित्य के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
वाचिक साहित्य का समाज पर प्रभाव
वाचिक साहित्य न केवल समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का कार्य करता है, बल्कि यह समाज के भीतर नीतियों, परंपराओं और धार्मिक विश्वासों को भी बनाए रखता है। यह समाज के मूल्य और मान्यताओं को संरक्षित करता है और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संपर्क और समन्वय बनाए रखने में सहायक होता है।
वाचिक साहित्य का विकास और परिवर्तन
समय के साथ, वाचिक साहित्य में बदलाव आया है। प्रिंट मीडिया के आगमन ने मौखिक साहित्य के स्थान को कुछ हद तक चुनौती दी है, लेकिन इसके बावजूद वाचिक साहित्य का अस्तित्व आज भी कायम है। डिजिटल माध्यमों के आने से वाचिक साहित्य के पुनरुद्धार की प्रक्रिया भी तेज हुई है। अब ये साहित्य किसी समय की तरह मौखिक रूप में नहीं, बल्कि वीडियो, ऑडियो और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रसारित हो रहा है।
वाचिक साहित्य और इसकी संरचना
वाचिक साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता इसकी मौखिकता है। यह लिखित नहीं होता, बल्कि इसे श्रवण और स्मृति के माध्यम से जीवित रखा जाता है। इसकी संरचना सामान्यतः इस प्रकार होती है:
प्रारंभिक सूत्र –
हर कथा, गीत या लोकगीत किसी पारंपरिक सूत्र से शुरू होता है, जैसे "एक समय की बात है..." या "एक था राजा, एक थी रानी..."। ये सूत्र श्रोताओं को मानसिक रूप से तैयार करते हैं।
नाटकीयता –
वाचिक साहित्य में नाटकीयता प्रमुख होती है, ताकि श्रोता जुड़ाव महसूस करें। वक्ता या गायक अपनी आवाज़, हावभाव और लय के माध्यम से कथा को जीवंत बनाता है।
पुनरावृत्ति –
कथानक या गीत की कुछ पंक्तियाँ बार-बार दोहराई जाती हैं, ताकि याद रखने में आसानी हो।
अंतिम सूत्र –
जैसे "…और वे दोनों खुशी-खुशी रहने लगे", जिससे कथा का एक सुखद और पूर्ण समापन हो।
वाचिक साहित्य में भाषा की भूमिका
वाचिक साहित्य की सफलता उस भाषा पर निर्भर करती है, जो श्रोता की मातृभाषा हो। यह भाषा अत्यंत सहज, सरल और स्थानीय बोली में होती है। उदाहरणस्वरूप:
- बुंदेलखंडी क्षेत्र में आल्हा गाया जाता है।
- राजस्थान में पाबूजी की कथा लोकगाथा के रूप में प्रचलित है।
- भोजपुरी में बिरहा गीत प्रसिद्ध हैं।
यह क्षेत्रीयता वाचिक साहित्य को जीवंतता देती है और इसे जन-जन तक पहुँचाती है।
प्रसिद्ध भारतीय वाचिक परंपराएँ
1. आल्हा-ऊदल की गाथा
यह बुंदेलखंड का प्रसिद्ध वीरगाथा काव्य है, जो आल्हा और ऊदल नामक योद्धाओं की वीरता का वर्णन करता है। इसे आज भी गायक मंडलियाँ गाँवों में गाती हैं।
2. पंडवानी (छत्तीसगढ़)
महाभारत की कहानियाँ गाते और अभिनय करते हुए प्रस्तुत की जाती हैं। प्रसिद्ध कलाकार तीजनबाई ने इस विधा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
3. यक्षगान (कर्नाटक)
यह एक रंगमंचीय वाचिक परंपरा है जिसमें गायन, नृत्य, वेशभूषा और संवाद का अनूठा संगम होता है।
4. भवाई (गुजरात)
यह एक प्रकार का नाट्य रूप है जिसमें धार्मिक, सामाजिक और हास्य कथा कहानियों को प्रस्तुत किया जाता है।
5. बौद्ध जातक कथाएँ
बौद्ध परंपरा में जातक कथाएँ मौखिक परंपरा से ही प्रचलित हुईं। ये कथाएँ बुद्ध के पूर्व जन्मों की नैतिक गाथाएँ हैं।
लोकगीतों की विविधता
भारतीय वाचिक साहित्य में लोकगीतों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ये गीत अवसर विशेष पर गाए जाते हैं:
विवाह गीत – जैसे "बन्ना-बन्नी" गीत
मौसमी गीत – जैसे सावन, होली, दीवाली के गीत
कृषि गीत – जैसे रोपाई और कटाई के समय गाए जाने वाले गीत
धार्मिक गीत – भजन, कीर्तन, अल्हा, कबीरपंथी पद
शोक गीत – मृत्यु या वियोग पर गाए जाने वाले गीत
वाचिक साहित्य और महिलाएँ
भारतीय समाज में महिलाएँ वाचिक साहित्य की प्रमुख संवाहक रही हैं। घर-परिवार की कहानियाँ, लोरियाँ, त्यौहारों पर गाए जाने वाले गीत — इन सभी का संचरण मातृशक्ति के माध्यम से ही हुआ है। लोरी जैसे गीतों से माँ न केवल शिशु को सुलाती है, बल्कि उसके भावनात्मक विकास में भी योगदान देती है।
लोककथाओं में नैतिकता और शिक्षा
लोककथाएँ केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, वे गूढ़ शिक्षाएँ भी प्रदान करती हैं। जैसे:
- सिंह और चूहा की कहानी से यह सिखाया जाता है कि "छोटा व्यक्ति भी बड़े काम आ सकता है।"
- कछुए और खरगोश की कहानी से धैर्य और निरंतरता का महत्व समझाया जाता है।
वाचिक साहित्य और धर्म
भारत के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों का प्रारंभिक स्वरूप मौखिक ही था। वेदों का “श्रुति” कहे जाने का कारण यही है कि उन्हें सुना और याद किया जाता था। भक्ति आंदोलन में संतों ने कीर्तन और भजन के माध्यम से धार्मिक ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाया।
वाचिक साहित्य का वैश्विक परिप्रेक्ष्य
वाचिक साहित्य केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह अफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के आदिवासी समाजों में भी उतना ही प्रचलित रहा है।
- होमर की महाकाव्यात्मक रचनाएँ ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’ मौखिक परंपरा से ही प्रारंभ हुई थीं।
- अमेरिका की नेटिव कहानियाँ ‘स्पिरिट एनिमल्स’ आदि के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाई जाती थीं।
आधुनिक युग में वाचिक साहित्य की स्थिति
आज के डिजिटल युग में वाचिक साहित्य का रूप बदला है:
- ऑडियोबुक और पॉडकास्ट वाचिक साहित्य के आधुनिक रूप हैं।
- यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर लोकगीत, कहानियाँ, और किस्से फिर से लोकप्रिय हो रहे हैं।
- शिक्षण में प्रयोग – शिक्षकों द्वारा नैतिक कहानियों को ऑडियो के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।
वाचिक साहित्य का संरक्षण और भविष्य
वाचिक साहित्य को संरक्षित करना आवश्यक है क्योंकि:
- यह लेखन से पूर्व मानव सभ्यता का दस्तावेज़ है।
- यह स्थानीय भाषाओं और बोलियों को जीवित रखता है।
- यह संस्कृति, परंपरा और मूल्यों का वाहक है।
इसके संरक्षण के लिए निम्न प्रयास किए जा सकते हैं:
- शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में स्थान देना
- क्षेत्रीय भाषाओं में ऑडियो रिकॉर्डिंग का संग्रह
- वृद्धजनों से कहानियाँ संकलित करना
- सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा वाचिक परंपराओं को प्रोत्साहन देना
Conclusion
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