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Eleventh of the Schedule e Indian Constitution
jp Singh 2025-07-08 13:49:29
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भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची

भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची
भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची (Eleventh Schedule) में पंचायती राज संस्थाओं (Panchayati Raj Institutions) की शक्तियों, अधिकारों, और जिम्मेदारियों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह अनुसूची अनुच्छेद 243G के तहत संदर्भित है और 73वें संशोधन (1992) के माध्यम से संविधान में जोड़ी गई। इसका उद्देश्य पंचायतों को स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में सशक्त बनाना और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
1. ग्यारहवीं अनुसूची की संरचना ग्यारहवीं अनुसूची में 29 विषय शामिल हैं, जिन पर पंचायती राज संस्थाएँ (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, और जिला परिषद) अपनी योजनाएँ बना सकती हैं और कार्यान्वयन कर सकती हैं। ये विषय ग्रामीण विकास, सामाजिक कल्याण, और स्थानीय प्रशासन से संबंधित हैं। अनुच्छेद 243G के तहत, राज्य विधानमंडल इन विषयों को पंचायतों को सौंपने के लिए कानून बना सकते हैं।
2. वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक)
(क) ग्यारहवीं अनुसूची के 29 विषय ग्यारहवीं अनुसूची में शामिल विषय निम्नलिखित हैं
1. कृषि: कृषि विस्तार सहित।
2. भूमि सुधार: भूमि सुधारों का कार्यान्वयन, भूमि समेकन, और मृदा संरक्षण।
3. लघु सिंचाई: जल प्रबंधन और जल संरक्षण।
4. पशुपालन, डेयरी, और कुक्कुट पालन।
5. मत्स्य पालन।
6. सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी।
7. लघु उद्योग: खादी, ग्राम, और कुटीर उद्योग।
8. ग्रामीण आवास।
9. पेयजल।
10. ईंधन और चारा।
11. सड़कें: ग्रामीण सड़कें, पुल, और नहरें।
12. ग्रामीण विद्युतीकरण।
13. गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत।
14. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।
15. शिक्षा: प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा।
16. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।
17. वयस्क और अनौपचारिक शिक्षा।
18. पुस्तकालय।
19. सांस्कृतिक गतिविधियाँ।
21. स्वास्थ्य और स्वच्छता: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और अस्पताल।
22. परिवार कल्याण।
23. महिला और बाल विकास।
24. सामाजिक कल्याण: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और अन्य कमजोर वर्गों का कल्याण।
25. कल्याणकारी योजनाएँ: सामाजिक सुरक्षा और पेंशन।
26. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
27. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी निवारण और आजीविका के अवसर।
28. सामुदायिक संपत्तियों का रखरखाव।
29. अन्य: ग्रामीण विकास से संबंधित अन्य कार्य।
(ख) कार्यान्वयन राज्य सरकार की भूमिका: अनुच्छेद 243G के तहत, राज्य विधानमंडल इन विषयों को पंचायतों को सौंपने के लिए कानून बनाते हैं। प्रत्येक राज्य का पंचायती राज अधिनियम इन विषयों के आधार पर पंचायतों को शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है।
वित्तीय शक्तियाँ: पंचायतें कर वसूल सकती हैं, शुल्क लगा सकती हैं, और केंद्र/राज्य सरकारों से अनुदान प्राप्त कर सकती हैं।
जिला योजना समिति: अनुच्छेद 243ZD के तहत, जिला स्तर पर योजनाएँ बनाने के लिए जिला योजना समितियाँ गठित की जाती हैं, जो ग्यारहवीं अनुसूची के विषयों को लागू करती हैं।
3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन ग्यारहवीं अनुसूची का उद्भव भारत में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने की आवश्यकता से जुड़ा है। प्रमुख बिंदु
1. औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन में स्थानीय स्वशासन सीमित था, लेकिन रिपन सुधार (1882) ने ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों को प्रोत्साहन दिया। स्वतंत्रता से पहले, गाँधीजी ने ग्राम स्वराज के विचार को बढ़ावा दिया।
2. 1950 में संविधान: मूल संविधान में पंचायती राज को केवल निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 40) में शामिल किया गया, लेकिन इसे बाध्यकारी नहीं बनाया गया। कई राज्यों ने अपने स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था लागू की, लेकिन यह असमान थी।
3. 73वाँ संशोधन (1992): 1992 में ग्यारहवीं अनुसूची को संविधान में जोड़ा गया, जिसने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया। इसका उद्देश्य पंचायतों को सशक्त बनाना और ग्रामीण विकास को गति देना था। इसने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद) को अनिवार्य किया।
4. संशोधन: ग्यारहवीं अनुसूची में कोई बड़ा संशोधन नहीं हुआ है, क्योंकि इसमें शामिल विषय सामान्य और व्यापक हैं। हालाँकि, राज्यों ने अपने पंचायती राज अधिनियमों में संशोधन करके इन विषयों के कार्यान्वयन को मजबूत किया है।
4. ग्यारहवीं अनुसूची का महत्व 1. स्थानीय स्वशासन: यह पंचायतों को स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की शक्ति देता है, जिससे ग्राम स्वराज का विचार मजबूत होता है।
2. ग्रामीण विकास: 29 विषय ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देते हैं।
3. सामाजिक समावेशन: महिलाओं, अनुसूचित जातियों, और जनजातियों के लिए आरक्षण (अनुच्छed 243D) के साथ, यह सामाजिक समावेश को सुनिश्चित करता है।
4. जवाबदेही: ग्राम सभाओं के माध्यम से, पंचायतें स्थानीय समुदायों के प्रति जवाबदेह रहती हैं।
5. संघीय ढांचा: यह केंद्र, राज्य, और स्थानीय सरकारों के बीच शक्तियों का विकेंद्रीकरण करता है, जो भारत के संघीय ढांचे को मजबूत करता है।
5. संशोधन की प्रक्रिया संवैधानिक संशोधन: ग्यारहवीं अनुसूची में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए (अनुच्छेद 368)। राज्य सरकारों की शक्ति: राज्य विधानमंडल इन विषयों को पंचायतों को सौंपने के लिए कानून बना सकते हैं और उनके कार्यान्वयन को अनुकूलित कर सकते हैं। केंद्र की भूमिका: केंद्र सरकार राष्ट्रीय योजनाओं (जैसे मनरेगा, PMGSY) के माध्यम से इन विषयों के कार्यान्वयन में सहायता करती है।
6. रोचक तथ्य
1. 73वाँ संशोधन: इसने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया और भारत में स्थानीय स्वशासन को क्रांतिकारी बनाया।
2. महिला सशक्तिकरण: पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% (कई राज्यों में 50%) आरक्षण ने ग्रामीण नेतृत्व में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई।
3. ग्राम सभा: ग्यारहवीं अनुसूची के विषयों को लागू करने में ग्राम सभा की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो लोकतंत्र की आधारशिला है।
4. विषयों की व्यापकता: 29 विषय ग्रामीण जीवन के लगभग सभी पहलुओं को कवर करते हैं।
7. ग्यारहवीं अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध सातवीं अनुसूची: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा करती है, और ग्यारहवीं अनुसूची राज्य सूची के कई विषयों (जैसे कृषि, स्वास्थ्य) को पंचायतों को सौंपती है। पंचम और छठी अनुसूची: ये जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान देती हैं, जबकि ग्यारहवीं अनुसूची सामान्य ग्रामीण क्षेत्रों पर लागू होती है। बारहवीं अनुसूची: यह नगरपालिकाओं के लिए समान प्रावधान देती है, जो ग्यारहवीं अनुसूची के ग्रामीण समकक्ष है।
8. समकालीन प्रासंगिकता विकास योजनाएँ: ग्यारहवीं अनुसूची के विषय मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन, और PMGSY जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण हैं। वित्तीय चुनौतियाँ: पंचायतों को अक्सर पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे इन विषयों का पूर्ण कार्यान्वयन मुश्किल होता है। सुधार की माँग: पंचायतों को और अधिक वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियाँ देने की माँग उठ रही है। डिजिटल युग: पंचायतों में डिजिटल प्रशासन (जैसे ई-ग्राम स्वराज पोर्टल) ने इन विषयों के कार्यान्वयन को पारदर्शी बनाया है।
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