Nine of the Schedule e Indian Constitution
jp Singh
2025-07-08 13:41:29
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भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची
भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची
नौवीं अनुसूची अनुच्छेद 31B के तहत संदर्भित है और इसमें उन कानूनों की सूची शामिल है, जो न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) से कुछ हद तक संरक्षित हैं, विशेष रूप से भूमि सुधार और अन्य सामाजिक-आर्थिक कानूनों के लिए। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
1. नौवीं अनुसूची की संरचना नौवीं अनुसूची में उन कानूनों की सूची शामिल है, जिन्हें अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त है। ये कानून मुख्य रूप से भूमि सुधार, जमींदारी उन्मूलन, और अन्य सामाजिक-आर्थिक सुधारों से संबंधित हैं। अनुसूची का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये कानून संविधान के मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के उल्लंघन के आधार पर न्यायालयों द्वारा रद्द न किए जाएँ।
कानूनों की संख्या: वर्तमान में नौवीं अनुसूची में 284 कानून शामिल हैं (यह संख्या समय-समय पर संशोधन के साथ बदलती रहती है)। प्रकृति: ये कानून केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए हैं और मुख्य रूप से भूमि सुधार, कृषि, और सामाजिक कल्याण से संबंधित हैं।
2. वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक) नौवीं अनुसूची में शामिल कानूनों को अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त है, जो कहता है कि इस अनुसूची में शामिल कोई भी कानून मूल अधिकारों (अनुच्छेद 12 से 35) के उल्लंघन के आधार पर अमान्य नहीं होगा। हालाँकि, 2007 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले (I.R. Coelho v. State of Tamil Nadu) के बाद, नौवीं अनुसूची के कानूनों की न्यायिक समीक्षा संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) के आधार पर हो सकती है।
प्रमुख प्रावधान: संरक्षण का दायरा: नौवीं अनुसूची में शामिल कानूनों को मूल अधिकारों (जैसे संपत्ति का अधिकार, समानता का अधिकार) के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती थी, जब तक कि वे संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन न करें।
कानूनों के प्रकार: भूमि सुधार कानून: जमींदारी उन्मूलन, भूमि पुनर्वितरण, और भूमि स्वामित्व की सीमा से संबंधित। सामाजिक कल्याण: आरक्षण, श्रम कल्याण, और अन्य सामाजिक-आर्थिक सुधार। अन्य: कुछ औद्योगिक और आर्थिक नीतियाँ। उदाहरण: बिहार भूमि सुधार अधिनियम, 1950 तमिलनाडु भूमि सुधार (स्वामित्व की सीमा निर्धारण) अधिनियम, 1961 महाराष्ट्र कृषि भूमि (स्वामित्व की सीमा) अधिनियम, 1961
न्यायिक समीक्षा पर प्रभाव: I.R. Coelho केस (2007): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि 9 अप्रैल 1973 के बाद नौवीं अनुसूची में जोड़े गए कानूनों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है, यदि वे संविधान के मूल ढांचे (जैसे मौलिक अधिकार, धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढांचा) का उल्लंघन करते हैं। यह संरक्षण अब पूर्ण नहीं है, और कानूनों को संवैधानिकता के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन नौवीं अनुसूची का उद्भव स्वतंत्रता के बाद के भूमि सुधारों और सामाजिक न्याय की आवश्यकताओं से जुड़ा है। प्रमुख बिंदु
1. 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: नौवीं अनुसूची को प्रथम संशोधन (1951) के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया। इसका उद्देश्य जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार कानूनों को मूल अधिकारों (विशेष रूप से संपत्ति का अधिकार, अनुच्छेद 31) के आधार पर न्यायिक चुनौतियों से बचाना था। प्रारंभ में, इसमें 13 कानून शामिल थे, मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश के भूमि सुधार कानून।
2. संशोधन और विस्तार: चौथा संशोधन (1955): और अधिक भूमि सुधार कानूनों को शामिल किया गया। 17वाँ संशोधन (1964): 44 और कानून जोड़े गए, जिनमें विभिन्न राज्यों के भूमि सुधार कानून शामिल थे। 34वाँ संशोधन (1974), 39वाँ संशोधन (1975), और अन्य संशोधनों के माध्यम से नौवीं अनुसूची में कानूनों की संख्या बढ़कर 284 हो गई। 42वाँ संशोधन (1976): इसने नौवीं अनुसूची का दायरा बढ़ाया, जिसमें गैर-भूमि सुधार कानून, जैसे औद्योगिक और श्रम कानून, भी शामिल किए गए। 2007 (I.R. Coelho केस): सर्वोच्च न्यायालय ने नौवीं अनुसूची के दुरुपयोग को सीमित किया और मूल ढांचे के सिद्धांत को लागू किया।
3. विवाद: नौवीं अनुसूची को शुरू में सामाजिक न्याय के लिए बनाया गया था, लेकिन बाद में इसका दुरुपयोग गैर-भूमि सुधार कानूनों को संरक्षण देने के लिए हुआ, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सीमित किया।
4. नौवीं अनुसूची का महत्व
1. सामाजिक न्याय: नौवीं अनुसूची ने जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधारों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा मिला। यह गरीब और वंचित वर्गों को भूमि स्वामित्व प्रदान करने में सहायक रहा।
2. न्यायिक समीक्षा से संरक्षण: यह अनुसूची भूमि सुधार कानूनों को संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 31, जो बाद में हटा) के आधार पर चुनौतियों से बचाती थी।
3. संघीय ढांचा: यह केंद्र और राज्यों को सामाजिक-आर्थिक सुधारों के लिए कानून बनाने की स्वतंत्रता देती है, जो संविधान के निर्देशक सिद्धांतों (DPSPs) को लागू करने में मदद करता है।
4. मूल ढांचे का संतुलन: I.R. Coelho केस के बाद, नौवीं अनुसूची का महत्व यह है कि यह सामाजिक सुधार और संवैधानिक मूल ढांचे के बीच संतुलन बनाए रखती है।
5. संशोधन की प्रक्रिया संवैधानिक संशोधन: नौवीं अनुसूची में नए कानून जोड़ने या हटाने के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए (अनुच्छेद 368)। न्यायिक समीक्षा: 2007 के बाद, नए कानूनों को मूल ढांचे के सिद्धांत के आधार पर न्यायिक समीक्षा का सामना करना पड़ सकता है। संसदीय शक्ति: संसद को अनुच्छेद 31B के तहत कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का अधिकार है, लेकिन यह अब पूर्ण संरक्षण प्रदान नहीं करता।
6. रोचक तथ्य
1. प्रथम संशोधन: नौवीं अनुसूची को 1951 में प्रथम संशोधन द्वारा जोड़ा गया, जो स्वतंत्र भारत का पहला संवैधानिक संशोधन था।
2. मूल ढांचा सिद्धांत: 1973 के केशवानंद भारती केस और 2007 के I.R. Coelho केस ने नौवीं अनुसूची के दुरुपयोग को सीमित किया।
3. संपत्ति का अधिकार: नौवीं अनुसूची का निर्माण मुख्य रूप से संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 31) से उत्पन्न चुनौतियों को रोकने के लिए हुआ था, जो बाद में 44वें संशोधन (1978) द्वारा हटा दिया गया।
4. विवादास्पद उपयोग: 1970 के दशक में, गैर-भूमि सुधार कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की प्रवृत्ति ने इसे विवादास्पद बना दिया।
5. नौवीं अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध प्रथम अनुसूची: यह राज्यों की सूची देती है, जिनके भूमि सुधार कानून नौवीं अनुसूची में शामिल हो सकते हैं। सातवीं अनुसूची: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा करती है, और नौवीं अनुसूची में शामिल कानून इन शक्तियों के तहत बनाए जाते हैं। पंचम और छठी अनुसूची: ये जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान देती हैं, और नौवीं अनुसूची में शामिल कुछ कानून इन क्षेत्रों के भूमि सुधारों से संबंधित हो सकते हैं।
6. समकालीन प्रासंगिकता न्यायिक समीक्षा: I.R. Coelho केस के बाद, नौवीं अनुसूची का दुरुपयोग कम हुआ है, क्योंकि नए कानूनों की संवैधानिकता की जाँच हो सकती है। सामाजिक सुधार: यह अनुसूची भूमि सुधार और सामाजिक कल्याण के लिए अभी भी प्रासंगिक है, विशेष रूप से ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में। विवाद: कुछ कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग (जैसे आरक्षण से संबंधित) समय-समय पर उठती रहती है, जो राजनीतिक बहस का विषय है। मूल ढांचा: नौवीं अनुसूची अब संवैधानिक संतुलन का हिस्सा है, जो सामाजिक सुधार और मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखती है।
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