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Seventh of the Schedule e Indian Constitution
jp Singh 2025-07-08 13:28:55
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भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची
भारतीय संविधान की चतुर्थ अनुसूची (Fourth Schedule) में राज्यसभा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित सीटों की संख्या से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह अनुसूची अनुच्छेद 4(1) और 80(2) के तहत संदर्भित है और भारत के संघीय ढांचे में राज्यसभा की संरचना को परिभाषित करती है। यह अनुसूची यह सुनिश्चित करती है कि संसद के ऊपरी सदन (राज्यसभा) में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व उचित रूप से हो। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा (Division of Powers) परिभाषित किया गया है। यह अनुसूची अनुच्छेद 246 के तहत संदर्भित है और भारत के संघीय ढांचे का आधार बनाती है। यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी शक्तियों को तीन सूचियों—संघ सूची (Union List), राज्य सूची (State List), और समवर्ती सूची (Concurrent List)—में विभाजित करती है। इसका उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट जिम्मेदारियों का निर्धारण करना और शासन में संतुलन बनाए रखना है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
1. सातवीं अनुसूची की संरचना सातवीं अनुसूची तीन सूचियों में विभाजित है, प्रत्येक सूची में विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर केंद्र या राज्य विधायी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं
1. संघ सूची (Union List): इसमें 100 विषय (मूल रूप से 97 थे, लेकिन संशोधनों के बाद 100) शामिल हैं, जिन पर केवल केंद्र सरकार (संसद) को कानून बनाने का अधिकार है। उदाहरण: रक्षा, विदेश नीति, रेलवे, बैंकिंग, परमाणु ऊर्जा, डाक और तार, मुद्रा, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार। यह सूची केंद्र की सर्वोच्चता को दर्शाती है।
2. राज्य सूची (State List): इसमें 61 विषय (मूल रूप से 66 थे) शामिल हैं, जिन पर राज्य सरकारों (राज्य विधानमंडलों) को कानून बनाने का अधिकार है। उदाहरण: पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, स्थानीय स्वशासन, और राज्य कर (जैसे भूमि राजस्व, शराब पर कर)। यह सूची राज्यों को स्थानीय और क्षेत्रीय मामलों में स्वायत्तता प्रदान करती है।
3. समवर्ती सूची (Concurrent List): इसमें 52 विषय (मूल रूप से 47 थे) शामिल हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। उदाहरण: शिक्षा, विवाह और तलाक, आपराधिक कानून, श्रम कल्याण, और पर्यावरण संरक्षण। यदि केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्र का कानून प्राथमिकता लेता है।
2. वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक)
(क) संघ सूची के प्रमुख विषय रक्षा: सेना, नौसेना, वायुसेना, और युद्ध से संबंधित मामले। विदेश नीति: अंतरराष्ट्रीय संबंध, संधियाँ, और विदेशी क्षेत्र। परिवहन और संचार: रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग, डाक, टेलीफोन, और विमानन। आर्थिक मामले: बैंकिंग, मुद्रा, स्टॉक एक्सचेंज, और आयकर। विज्ञान और प्रौद्योगिकी: परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान, और वैज्ञानिक अनुसंधान। अन्य: नागरिकता, जनगणना, और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)।
(ख) राज्य सूची के प्रमुख विषय कानून और व्यवस्था: पुलिस, जेल, और सार्वजनिक व्यवस्था। स्वास्थ्य और स्वच्छता: अस्पताल, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और जल आपूर्ति। कृषि और संबंधित: कृषि, सिंचाई, और भूमि सुधार। स्थानीय प्रशासन: पंचायत, नगरपालिका, और ग्राम प्रशासन। कर: भूमि राजस्व, स्टांप शुल्क, और शराब/मादक पदार्थों पर कर। अन्य: मत्स्य पालन, सट्टेबाजी, और जुआ।
(ग) समवर्ती सूची के प्रमुख विषय न्याय: आपराधिक कानून, दीवानी प्रक्रिया, और न्याय प्रशासन। सामाजिक कल्याण: शिक्षा, श्रम कल्याण, और सामाजिक सुरक्षा। पारिवारिक मामले: विवाह, तलाक, और उत्तराधिकार। पर्यावरण: वन, वन्यजीव संरक्षण, और पर्यावरण संरक्षण। अन्य: आर्थिक और सामाजिक नियोजन, और ट्रेड यूनियन।
(घ) टकराव का समाधान यदि समवर्ती सूची के किसी विषय पर केंद्र और राज्य के कानूनों में विरोध होता है, तो केंद्र का कानून प्रबल होता है (अनुच्छेद 254)। आपातकाल की स्थिति में, केंद्र को राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार होता है (अनुच्छेद 356 और 250)।
3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन सातवीं अनुसूची भारत की संघीय संरचना का आधार है और इसे औपनिवेशिक काल से प्रेरणा मिली है। प्रमुख बिंदु
1. औपनिवेशिक काल: Government of India Act, 1935 में केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का बँटवारा तीन सूचियों (Federal List, Provincial List, Concurrent List) में किया गया था, जो सातवीं अनुसूची का आधार बना। यह व्यवस्था भारत की विविधता और एकता को संतुलित करने के लिए बनाई गई थी।
2. 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: संविधान लागू होने पर, सातवीं अनुसूची में 97 (संघ), 66 (राज्य), और 47 (समवर्ती) विषय शामिल थे। इसका उद्देश्य केंद्र को राष्ट्रीय महत्व के मामलों में प्रबलता देना और राज्यों को स्थानीय स्वायत्तता प्रदान करना था।
3. संशोधन: 42वाँ संशोधन (1976): कई महत्वपूर्ण विषय, जैसे शिक्षा, वन, न्याय प्रशासन, और जनसंख्या नियंत्रण, को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया। इससे केंद्र की शक्तियाँ बढ़ीं। अन्य संशोधन: समय-समय पर विषयों की संख्या और प्रकृति में बदलाव हुए, जैसे कराधान और पर्यावरण से संबंधित नए विषय जोड़े गए। 2019: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन के बाद, केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कुछ विषयों पर केंद्र की शक्तियाँ बढ़ीं।
4. सातवीं अनुसूची का महत्व
1. संघीय ढांचा: यह भारत के संघीय ढांचे का आधार है, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बँटवारा करता है। यह भारत को एक संघ (Union) के रूप में स्थापित करता है, जहाँ केंद्र की प्रबलता के साथ राज्यों को स्वायत्तता दी गई है।
2. शासन में स्पष्टता: तीन सूचियों के माध्यम से यह सुनिश्चित होता है कि केंद्र और राज्य अपने-अपने क्षेत्रों में बिना टकराव के काम करें।
3. लचीलापन: समवर्ती सूची केंद्र और राज्यों को सहयोगात्मक शासन की अनुमति देती है, विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक विकास के मामलों में।
4. राष्ट्रीय एकता: रक्षा, विदेश नीति, और आर्थिक नियोजन जैसे विषयों पर केंद्र की प्रबलता राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करती है।
5. स्थानीय स्वायत्तता: राज्य सूची के विषय राज्यों को स्थानीय जरूरतों के अनुसार नीतियाँ बनाने की स्वतंत्रता देती है।
6. संशोधन की प्रक्रिया संवैधानिक संशोधन: सातवीं अनुसूची में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और कुछ मामलों में राज्यों की सहमति से होता है (अनुच्छेद 368)। संसदीय शक्ति: संसद को अनुच्छेद 246 के तहत सूचियों में विषयों को जोड़ने, हटाने, या स्थानांतरित करने का अधिकार है। आपातकाल: आपातकाल के दौरान केंद्र को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिलता है, जो सातवीं अनुसूची की लचीलापन को दर्शाता है।
7. रोचक तथ्य
1. केंद्र की प्रबलता: संघ सूची में सबसे अधिक विषय (100) हैं, जो भारत के "केंद्रीकृत संघ" (Centralized Union) की प्रकृति को दर्शाता है।
2. 42वाँ संशोधन: इसने समवर्ती सूची को मजबूत किया, जिसे कुछ लोग राज्यों की स्वायत्तता पर अतिक्रमण मानते हैं।
3. अवशिष्ट शक्तियाँ: सातवीं अनुसूची में शामिल न होने वाले विषय (जैसे डिजिटल मुद्रा, साइबर सुरक्षा) पर केंद्र को कानून बनाने का अधिकार है (अनुच्छेद 248)।
4. विवाद: कुछ विषयों, जैसे शिक्षा और पर्यावरण, के समवर्ती सूची में स्थानांतरण से केंद्र और राज्यों के बीच तनाव रहा है।
8. सातवीं अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध प्रथम अनुसूची: यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची देती है, जिनके लिए सातवीं अनुसूची शक्तियों का बँटवारा करती है। पंचम और छठी अनुसूची: ये अनुसूचियाँ जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष प्रशासनिक प्रावधान देती हैं, जो सातवीं अनुसूची के विषयों से प्रभावित हो सकते हैं। नौवीं अनुसूची: यह कुछ कानूनों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण देती है, जो सातवीं अनुसूची के विषयों से संबंधित हो सकते हैं।
9. समकालीन प्रासंगिकता केंद्र-राज्य संबंध: सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच तनाव का एक प्रमुख स्रोत रही है, विशेष रूप से GST, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर। GST का प्रभाव: वस्तु और सेवा कर (GST) ने कराधान से संबंधित कई विषयों को समवर्ती सूची के तहत ला दिया, जिसने केंद्र की शक्तियों को बढ़ाया। नए विषय: डिजिटल अर्थव्यवस्था, साइबर सुरक्षा, और डेटा संरक्षण जैसे नए विषयों को सातवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग उठ रही है। आपातकालीन शक्तियाँ: कोविड-19 जैसे संकटों में केंद्र ने समवर्ती सूची के विषयों (जैसे स्वास्थ्य) पर नीतियाँ बनाईं, जो सातवीं अनुसूची की प्रासंगिकता को दर्शाता है।
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