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Sixth of the Schedule e Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 16:54:09
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भारतीय संविधान की छठी अनुसूची

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त प्रशासनिक व्यवस्था से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह अनुसूची अनुच्छेद 244(2) और 275(1) के तहत संदर्भित है और मुख्य रूप से असम, मेघालय, त्रिपुरा, और मिजोरम के कुछ जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils) और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों (Autonomous Regional Councils) के गठन और कार्यों को परिभाषित करती है। इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को स्वशासन प्रदान करना, उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना, और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
छठी अनुसूची की संरचना छठी अनुसूची में निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान शामिल हैं
1. स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषदों का गठन: अनुसूची चार राज्यों—असम, मेघालय, त्रिपुरा, और मिजोरम—के जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) और क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना का प्रावधान करती है। प्रत्येक जिला या क्षेत्रीय परिषद में अधिकतम 30 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 4 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हो सकते हैं, और शेष का चुनाव होता है।
2. शक्तियाँ और कार्य: स्वायत्त परिषदों को विधायी, कार्यकारी, और न्यायिक शक्तियाँ दी गई हैं, जो स्थानीय स्तर पर जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा करती हैं। ये शक्तियाँ भूमि, वन, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे क्षेत्रों को कवर करती हैं।
3. कानून बनाने की शक्ति: परिषदें स्थानीय जरूरतों के अनुसार कानून बना सकती हैं, जैसे भूमि हस्तांतरण, विवाह, तलाक, और सामाजिक प्रथाओं से संबंधित। ये कानून राज्यपाल की मंजूरी के अधीन होते हैं।
4. न्यायिक शक्तियाँ: परिषदें स्थानीय स्तर पर पारंपरिक न्याय प्रणालियों के माध्यम से विवादों का निपटारा कर सकती हैं। जिला परिषदों के तहत ग्राम न्यायालय स्थापित किए जा सकते हैं।
5. वित्तीय प्रावधान: परिषदों को कर लगाने, शुल्क वसूलने, और केंद्र/राज्य सरकारों से अनुदान प्राप्त करने का अधिकार है। केंद्र सरकार अनुच्छेद 275(1) के तहत इन क्षेत्रों के लिए विशेष वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
6. राज्यपाल की भूमिका: राज्यपाल को परिषदों के प्रशासन, कानूनों की मंजूरी, और क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव करने की शक्तियाँ दी गई हैं। वे परिषदों को भंग या निलंबित भी कर सकते हैं।
वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक)
स्वायत्त जिला परिषदें छठी अनुसूची के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदें कार्यरत हैं
1. असम: बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (Bodoland Territorial Council) धीमाजी जिला परिषद (Dima Hasao Autonomous District Council) कार्बी आंग्लांग जिला परिषद (Karbi Anglong Autonomous District Council)
2. मेघालय: खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (Khasi Hills Autonomous District Council) गारो हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (Garo Hills Autonomous District Council) जयंतिया हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (Jaintia Hills Autonomous District Council)
3. त्रिपुरा: त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (Tripura Tribal Areas Autonomous District Council)
4. मिजोरम: चकमा स्वायत्त जिला परिषद (Chakma Autonomous District Council) लाई स्वायत्त जिला परिषद (Lai Autonomous District Council) मारा स्वायत्त जिला परिषद (Mara Autonomous District Council)
शक्तियाँ और कार्य विधायी शक्तियाँ: परिषदें भूमि, वन, जल संसाधन, ग्राम प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, और स्थानीय रीति-रिवाजों से संबंधित कानून बना सकती हैं। कार्यकारी शक्तियाँ: स्थानीय विकास परियोजनाओं, जैसे स्कूल, अस्पताल, और सड़कों का निर्माण। न्यायिक शक्तियाँ: परंपरागत कानूनों के आधार पर छोटे-मोटे विवादों का निपटारा। वित्तीय शक्तियाँ: कर वसूली, शुल्क, और केंद्र/राज्य सरकारों से अनुदान।
राज्यपाल की शक्तियाँ परिषदों के गठन, भंग करने, या उनके क्षेत्र में बदलाव करने का अधिकार। परिषदों द्वारा बनाए गए कानूनों को मंजूरी देना या अस्वीकार करना। परिषदों की गतिविधियों पर निगरानी और वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन छठी अनुसूची का विकास पूर्वोत्तर भारत की अनूठी सामाजिक-सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से प्रभावित है। प्रमुख बिंदु
1. औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन के दौरान, पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों को "Excluded Areas" या "Partially Excluded Areas" के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिनका प्रशासन स्थानीय रीति-रिवाजों के आधार पर होता था। Government of India Act, 1935 में इन क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान थे, जो छठी अनुसूची का आधार बने।
2. 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: संविधान लागू होने पर, छठी अनुसूची को असम के जनजातीय क्षेत्रों (जो उस समय मेघालय, मिजोरम, और त्रिपुरा को भी शामिल करता था) के लिए लागू किया गया। इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करना और उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना था।
3. संशोधन और परिवर्तन: 1969: मेघालय को असम से अलग कर पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया, और इसके जनजातीय क्षेत्रों को छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदें दी गईं। 1971: मिजोरम को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, और बाद में 1986 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिला, लेकिन इसकी कुछ परिषदें छठी अनुसूची के तहत बनी रहीं। 2003: बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (Bodo Territorial Council) का गठन असम में बोडो आंदोलन के बाद हुआ, जो छठी अनुसूची के तहत एक महत्वपूर्ण संशोधन था। 2020: बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद को और शक्तियाँ दी गईं, जिसके तहत इसे अधिक स्वायत्तता और वित्तीय अधिकार प्राप्त हुए।
छठी अनुसूची का महत्व
1. जनजातीय स्वायत्तता: छठी अनुसूची जनजातीय समुदायों को स्वशासन का अधिकार देती है, जिससे वे अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों, और संसाधनों को नियंत्रित कर सकते हैं।
2. सांस्कृतिक संरक्षण: यह अनुसूची जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को बाहरी प्रभावों से बचाती है।
3. विकास और कल्याण: स्वायत्त परिषदें स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देती हैं।
4. संघीय ढांचे में संतुलन: यह केंद्र, राज्य, और स्थानीय जनजातीय प्रशासन के बीच शक्तियों का संतुलन बनाए रखती है।
5. शांति और एकीकरण: पूर्वोत्तर में अलगाववादी आंदोलनों को कम करने में छठी अनुसूची ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे बोडो और मिजो समझौते।
संशोधन की प्रक्रिया संसदीय शक्ति: छठी अनुसूची में संशोधन के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए (अनुच्छेद 368)। राज्यपाल की भूमिका: राज्यपाल परिषदों के गठन, कार्यों, और कानूनों की मंजूरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। केंद्र सरकार: केंद्र सरकार अनुच्छेद 275(1) के तहत वित्तीय सहायता और नीतिगत दिशानिर्देश प्रदान करती है। स्थानीय परामर्श: परिषदों के गठन या संशोधन में स्थानीय जनजातीय नेताओं और समुदायों की राय ली जाती है।
रोचक तथ्य
1. पंचम बनाम छठी अनुसूची: पंचम अनुसूची सामान्य अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होती है, जबकि छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों के लिए अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है।
2. स्वायत्त परिषदों की शक्तियाँ: ये परिषदें छोटे स्तर पर "मिनी-लेजिस्लेचर" की तरह कार्य करती हैं।
3. बोडोलैंड मॉडल: बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद छठी अनुसूची का एक सफल उदाहरण है, जो क्षेत्रीय शांति और विकास को बढ़ावा देता है।
4. सीमित दायरा: छठी अनुसूची केवल चार राज्यों तक सीमित है, जबकि अन्य जनजातीय क्षेत्र पंचम अनुसूची के तहत आते हैं।
छठी अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध पंचम अनुसूची: यह अन्य अनुसूचित क्षेत्रों के लिए सामान्य प्रशासनिक प्रावधान देती है, जबकि छठी अनुसूची पूर्वोत्तर में अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है। प्रथम अनुसूची: यह राज्यों की सूची देती है, जिनमें से कुछ में छठी अनुसूची लागू होती है। द्वितीय अनुसूची: यह परिषदों के अधिकारियों के वेतन से संबंधित हो सकती है, यदि वे संवैधानिक पदों पर हैं।
समकालीन प्रासंगिकता जनजातीय अधिकार: छठी अनुसूची जनजातीय समुदायों के भूमि और संसाधन अधिकारों की रक्षा करती है, खासकर खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के संदर्भ में। शांति समझौते: बोडो, मिजो, और अन्य जनजातीय समुदायों के साथ शांति समझौतों में छठी अनुसूची की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। विकास की चुनौतियाँ: परिषदों को वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों से अधिक सहायता की माँग है। विवाद: कुछ परिषदों और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के बँटवारे को लेकर तनाव रहता है।
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