(Fifth of thSchedule e Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 16:49:34
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भारतीय संविधान की पंचम अनुसूची
भारतीय संविधान की पंचम अनुसूची
भारतीय संविधान की पंचम अनुसूची (Fifth Schedule) में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह अनुसूची अनुच्छेद 244(1) के तहत संदर्भित है और मुख्य रूप से उन क्षेत्रों पर लागू होती है, जहाँ अनुसूचित जनजातियाँ (Scheduled Tribes) बहुसंख्यक हैं। इसका उद्देश्य इन क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा करना, उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित करना, और उनके विकास को सुनिश्चित करना है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
पंचम अनुसूची की संरचना पंचम अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान दिए गए हैं। यह अनुसूची निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं को कवर करती है
1. अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा: राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वह किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Area) घोषित कर सकते हैं। यह क्षेत्र मुख्य रूप से वे हैं, जहाँ अनुसूचित जनजातियाँ निवास करती हैं।
2. प्रशासन: प्रत्येक अनुसूचित क्षेत्र में एक जनजातीय सलाहकार परिषद (Tribes Advisory Council) का गठन किया जाता है। यह परिषद राज्य सरकार को जनजातीय हितों और विकास से संबंधित मामलों में सलाह देती है।
3. कानूनों का अनुप्रयोग: राज्यपाल को विशेष शक्तियाँ दी गई हैं, जिसके तहत वे संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानूनों को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने से रोक सकते हैं या उनमें संशोधन कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि कानून जनजातीय समुदायों की आवश्यकताओं और परंपराओं के अनुरूप हों।
4. रिपोर्टिंग: राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करनी होती है।
5. संशोधन: संसद को अनुसूचित क्षेत्रों की सीमाओं या उनके प्रशासन से संबंधित नियमों में संशोधन करने की शक्ति है।
वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक)
अनुसूचित क्षेत्र पंचम अनुसूची के तहत निम्नलिखित राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए हैं
1. आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित)
2. छत्तीसगढ़
3. गुजरात
4. हिमाचल प्रदेश
5. झारखंड
6. मध्य प्रदेश
7. महाराष्ट्र
8. ओडिशा
9. राजस्थान
जनजातीय सलाहकार परिषद गठन: प्रत्येक राज्य में, जहाँ अनुसूचित क्षेत्र हैं, एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है। इसमें अधिकतम 20 सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन-चौथाई अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होते हैं, जो राज्य विधानसभा के सदस्य हैं। कार्य: यह परिषद अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और विकास से संबंधित मामलों में सलाह देती है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि अधिकार, और सांस्कृतिक संरक्षण।
राज्यपाल की शक्तियाँ कानूनों का नियमन: राज्यपाल यह तय कर सकते हैं कि कोई विशेष कानून अनुसूचित क्षेत्रों में लागू होगा या नहीं। वे कानूनों में संशोधन या छूट भी दे सकते हैं।
विनियम (Regulations): राज्यपाल जनजातीय सलाहकार परिषद की सलाह पर अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विशेष विनियम बना सकते हैं। ये विनियम भूमि हस्तांतरण, शराब की बिक्री, और अन्य सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को नियंत्रित करते हैं।
रिपोर्ट: राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों की प्रशासनिक स्थिति पर वार्षिक या समय-समय पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।
संसद की शक्ति संसद को अनुसूचित क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव करने, नए क्षेत्रों को शामिल करने, या प्रशासनिक नियमों में संशोधन करने की शक्ति है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन पंचम अनुसूची का विकास भारत की औपनिवेशिक और स्वतंत्रता के बाद की नीतियों से प्रभावित है। प्रमुख बिंदु
1. औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन के दौरान, जनजातीय क्षेत्रों को "अनुसूचित जिले" (Scheduled Districts) या "पिछड़े क्षेत्र" (Backward Tracts) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। Government of India Act, 1935 में इन क्षेत्रों के लिए विशेष प्रशासनिक प्रावधान थे, जो पंचम अनुसूची का आधार बने।
2. 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: संविधान लागू होने पर, पंचम अनुसूची को जनजातीय समुदायों की रक्षा और उनके स्वायत्त प्रशासन के लिए शामिल किया गया। इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को मुख्यधारा से अलग-थलग होने से बचाना और उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना था।
3. संशोधन: 1960-70: नए राज्यों के गठन (जैसे मध्य प्रदेश, ओडिशा) के साथ अनुसूचित क्षेत्रों की सीमाएँ पुनर्निर्धारित की गईं। 2000: छत्तीसगढ़ और झारखंड के गठन के बाद, इन राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों को शामिल किया गया। 2014: तेलंगाना के गठन के बाद, आंध्र प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों का हिस्सा तेलंगाना को हस्तांतरित किया गया। राष्ट्रपति के आदेश: समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों की सूची में संशोधन किया जाता है।
पंचम अनुसूची का महत्व
1. जनजातीय हितों की रक्षा: यह अनुसूचित जनजातियों के भूमि अधिकार, सांस्कृतिक पहचान, और सामाजिक-आर्थिक विकास की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि बाहरी प्रभाव (जैसे भूमि अतिक्रमण) जनजातीय समुदायों को नुकसान न पहुँचाएँ।
2. स्वायत्तता: जनजातीय सलाहकार परिषद और राज्यपाल की विशेष शक्तियाँ अनुसूचित क्षेत्रों को स्वायत्त प्रशासन प्रदान करती हैं।
3. संघीय ढांचे में संतुलन: पंचम अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन बनाए रखती है, क्योंकि यह केंद्र (राष्ट्रपति) और राज्य (राज्यपाल) दोनों को शामिल करती है।
4. सांस्कृतिक संरक्षण: यह जनजातीय परंपराओं, रीति-रिवाजों, और जीवनशैली को संरक्षित करने में मदद करती है।
5. विकास और कल्याण: जनजातीय सलाहकार परिषद शिक्षा, स्वास्थ्य, और आजीविका जैसे क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देती है।
संशोधन की प्रक्रिया राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा, उनकी सीमाओं में बदलाव, या उनकी सूची में संशोधन कर सकते हैं। संसदीय शक्ति: संसद को पंचम अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार है, जो संविधान संशोधन (अनुच्छेद 368) के तहत दो-तिहाई बहुमत से होता है। राज्यपाल की भूमिका: राज्यपाल विनियम बनाकर और कानूनों को लागू करने में छूट देकर अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन को प्रभावित करते हैं। परामर्श: जनजातीय सलाहकार परिषद की सलाह अनुसूचित क्षेत्रों के लिए नीतियाँ बनाने में महत्वपूर्ण है।
रोचक तथ्य
1. अनुसूचित क्षेत्रों की संख्या: वर्तमान में 10 राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र हैं, लेकिन उनकी सटीक संख्या और सीमाएँ समय-समय पर बदलती रहती हैं।
2. पंचम बनाम छठी अनुसूची: पंचम अनुसूची सामान्य अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होती है, जबकि छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) में विशेष स्वायत्त क्षेत्रों के लिए है।
3. भूमि संरक्षण: पंचम अनुसूची में भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध जनजातीय समुदायों को बाहरी लोगों से उनकी जमीन की रक्षा करता है।
4. राष्ट्रपति की भूमिका: राष्ट्रपति अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा और उनके प्रशासन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
पंचम अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध प्रथम अनुसूची: यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची देती है, जबकि पंचम अनुसूची इनमें से कुछ क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में परिभाषित करती है। छठी अनुसूची: यह पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विशेष स्वायत्त परिषदों को परिभाषित करती है, जो पंचम अनुसूची से अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है। नौवीं अनुसूची: यह भूमि सुधार और अन्य कानूनों को संरक्षण देती है, जो पंचम अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में लागू हो सकते हैं।
समकालीन प्रासंगिकता जनजातीय अधिकार: पंचम अनुसूची जनजातीय समुदायों के भूमि और संसाधन अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के संदर्भ में। विकास और संरक्षण में संतुलन: यह अनुसूची विकास परियोजनाओं और जनजातीय सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की चुनौती का सामना करती है।
विवाद: कई बार अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण या कानूनों के अनुप्रयोग को लेकर विवाद उत्पन्न होते हैं, जैसे छत्तीसगढ़ और झारखंड में खनन परियोजनाएँ।
जागरूकता की कमी: कई जनजातीय समुदायों को पंचम अनुसूची के तहत उनके अधिकारों की पूरी जानकारी नहीं है, जिसके लिए सरकार और NGOs काम कर रहे हैं।
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