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Fourth Schedule of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 16:42:00
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भारतीय संविधान की चतुर्थ अनुसूची

भारतीय संविधान की चतुर्थ अनुसूची
भारतीय संविधान की चतुर्थ अनुसूची (Fourth Schedule) में राज्यसभा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित सीटों की संख्या से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह अनुसूची अनुच्छेद 4(1) और 80(2) के तहत संदर्भित है और भारत के संघीय ढांचे में राज्यसभा की संरचना को परिभाषित करती है। यह अनुसूची यह सुनिश्चित करती है कि संसद के ऊपरी सदन (राज्यसभा) में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व उचित रूप से हो। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
चतुर्थ अनुसूची की संरचना:- चतुर्थ अनुसूची में भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को राज्यसभा में आवंटित सीटों की संख्या का उल्लेख है। यह अनुसूची एक तालिका के रूप में व्यवस्थित है, जिसमें प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए निर्धारित सीटों की संख्या दी गई है।
कुल सीटें: राज्यसभा की कुल सदस्य संख्या 245 है, जिसमें: 233 सीटें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों के लिए। 12 सीटें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्यों के लिए (कला, साहित्य, विज्ञान, सामाजिक सेवा आदि क्षेत्रों से)। आवंटन का आधार: सीटों का आवंटन मुख्य रूप से जनसंख्या और संघीय संतुलन के आधार पर किया जाता है, ताकि बड़े और छोटे राज्यों के बीच संतुलन बना रहे।
वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक) चतुर्थ अनुसूची में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित सीटों की संख्या निम्नलिखित है (यह सूची नवीनतम संशोधनों, जैसे जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन, 2019 को ध्यान में रखती है):
राज की सीटें
आंध्र प्रदेश - 11
अरुणाचल प्रदेश - 1
असम - 7
बिहार - 16
छत्तीसगढ़ -
गोवा - 1
गुजरात - 11
हरियाणा - 5
हिमाचल प्रदेश - 3
झारखंड - 6
कर्नाटक - 12
केरल - 9
मध्य प्रदेश - 11
महाराष्ट्र - 19
मणिपुर - 1
मेघालय - 1
मिजोरम - 1
नगालैंड - 1
ओडिशा - 10
पंजाब - 7
राजस्थान - 10
सिक्किम - 1
तमिलनाडु - 18
तेलंगाना - 7
त्रिपुरा - 1
उत्तर प्रदेश- 31
उत्तराखंड - 3
पश्चिम बंगाल - 16
के शासित प्रदेशों की सीटें केंद्र शासित प्रदेश - सीटों की संख्या
दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) - 3 जम्मू और कश्मीर - 4 पुदुचेरी - 1 नोट: अन्य केंद्र शासित प्रदेश (अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव, लद्दाख, लक्षद्वीप) को राज्यसभा में सीटें आवंटित नहीं हैं। |
योग राज्यों की सीटें: 228 केंद्र शासित प्रदेशों की सीटें: 5 कुल निर्वाचित सीटें: 233 मनोनीत सीटें: 12 कुल: 245
सीटों के आवंटन का आधार जनसंख्या: बड़े राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र) को अधिक सीटें दी गई हैं, क्योंकि उनकी जनसंख्या अधिक है। संघीय संतुलन: छोटे राज्यों (जैसे सिक्किम, मणिपुर) को भी कम से कम एक सीट दी गई है, ताकि उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो। केंद्र शासित प्रदेश: केवल दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, और पुदुचेरी को सीटें दी गई हैं, क्योंकि इनके पास सीमित विधायी शक्तियाँ हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन चतुर्थ अनुसूची में समय-समय पर संशोधन हुए हैं, जो मुख्य रूप से राज्यों के पुनर्गठन, नए राज्यों के गठन, या केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति में बदलाव के कारण हुए हैं। प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित हैं
1. 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: संविधान लागू होने पर चतुर्थ अनुसूची में उस समय के 29 राज्यों और क्षेत्रों (भाग A, B, C, और D) के लिए सीटें आवंटित थीं। कुल सीटें 216 थीं (204 निर्वाचित + 12 मनोनीत)।
2. 1956: राज्य पुनर्गठन अधिनियम: भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ, जिसके कारण चतुर्थ अनुसूची में सीटों का पुनरावंटन किया गया। नए राज्यों (जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल) को सीटें दी गईं।
3. 1960-2000: नए राज्यों का गठन: 1960: बंबई के विभाजन से गुजरात और महाराष्ट्र को नई सीटें आवंटित की गईं। 1975: सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर उसे 1 सीट दी गई। 2000: छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, और झारखंड के गठन के साथ सीटों का पुनरावंटन हुआ: छत्तीसगढ़: 5 सीटें (मध्य प्रदेश से समायोजित)। उत्तराखंड: 3 सीटें (उत्तर प्रदेश से समायोजित)। झारखंड: 6 सीटें (बिहार से समायोजित)।
4. 2014: तेलंगाना का गठन: आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग होने पर आंध्र प्रदेश की सीटें (18) विभाजित की गईं: तेलंगाना: 7 सीटें। आंध्र प्रदेश: 11 सीटें।
5. 2019: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन: जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, लेकिन इसे 4 सीटें बरकरार रहीं, क्योंकि इसमें विधानसभा है। लद्दाख को कोई सीट नहीं दी गई, क्योंकि यह बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है।
चतुर्थ अनुसूची का महत्व
1. संघीय प्रतिनिधित्व: चतुर्थ अनुसूची यह सुनिश्चित करती है कि राज्यसभा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का उचित प्रतिनिधित्व हो, जो भारत के संघीय ढांचे का आधार है। यह केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखता है।
2. लोकतांत्रिक संतुलन: राज्यसभा में सीटों का आवंटन जनसंख्या के साथ-साथ छोटे राज्यों को भी प्रतिनिधित्व देता है, जिससे सभी क्षेत्रों की आवाज सुनी जाती है।
3. स्थायी सदन: चूंकि राज्यसभा एक स्थायी सदन है (जो कभी भंग नहीं होता), चतुर्थ अनुसूची इसकी संरचना को स्थिरता प्रदान करती है।
4. संवैधानिक लचीलापन: यह अनुसूची संसद को नए राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के गठन के साथ सीटों के पुनरावंटन की अनुमति देती है।
संशोधन की प्रक्रिया
संवैधानिक संशोधन: चतुर्थ अनुसूची में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए (अनुच्छेद 368)।
अनुच्छेद 4 और 80: नए राज्यों के गठन या सीमाओं में बदलाव के लिए अनुच्छेद 4 के तहत संसद को शक्ति दी गई है, जो चतुर्थ अनुसूची को प्रभावित करता है।
संसदीय कानून: राज्य पुनर्गठन अधिनियम या अन्य कानूनों के माध्यम से सीटों का पुनरावंटन किया जाता है।
राज्यों की सहमति: यदि किसी राज्य की सीटें प्रभावित होती हैं, तो संबंधित राज्य विधानसभाओं की राय ली जा सकती है, लेकिन उनकी सहमति अनिवार्य नहीं है।
रोचक तथ्य
1. असमान प्रतिनिधित्व: उत्तर प्रदेश (31 सीटें) जैसे बड़े राज्यों की तुलना में सिक्किम (1 सीट) जैसे छोटे राज्यों को कम सीटें मिलती हैं, लेकिन यह संघीय संतुलन को दर्शाता है।
2. केंद्र शासित प्रदेशों का सीमित प्रतिनिधित्व: केवल तीन केंद्र शासित प्रदेशों को सीटें दी गई हैं, जो उनकी विधायी शक्तियों को दर्शाता है।
3. मनोनीत सदस्य: चतुर्थ अनुसूची में मनोनीत सदस्यों (12) का उल्लेख नहीं है, क्योंकि वे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं।
4. चुनाव प्रक्रिया: राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से राज्य विधानमंडलों द्वारा एकल हस्तांतरणीय मत (Single Transferable Vote) प्रणाली के माध्यम से होता है, लेकिन चतुर्थ अनुसूची केवल सीटों की संख्या पर केंद्रित है।
चतुर्थ अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध प्रथम अनुसूची: यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची देती है, जबकि चतुर्थ अनुसूची इन्हीं क्षेत्रों को राज्यसभा में सीटें आवंटित करती है। द्वितीय अनुसूची: यह राज्यसभा के सभापति और उपसभापति के वेतन को परिभाषित करती है, जो चतुर्थ अनुसूची से जुड़े हैं। तृतीय अनुसूची: यह राज्यसभा के सदस्यों की शपथ को परिभाषित करती है, जो चतुर्थ अनुसूची के तहत चुने जाते हैं।
समकालीन प्रासंगिकता
नए राज्यों की माँग: विदर्भ, गोरखालैंड, या सौराष्ट्र जैसे नए राज्यों की माँग चतुर्थ अनुसूची में संशोधन की आवश्यकता पैदा कर सकती है।
जनसंख्या आधारित पुनरावंटन: जनसंख्या में बदलाव के कारण भविष्य में सीटों का पुनरावंटन हो सकता है, विशेष रूप से 2026 के बाद परिसीमन (Delimitation) के दौरान।
जम्मू और कश्मीर: 2019 के पुनर्गठन के बाद जम्मू और कश्मीर की सीटें (4) बरकरार रहीं, जो केंद्र शासित प्रदेशों में एक विशेष स्थिति को दर्शाता है।
संघीय संतुलन: चतुर्थ अनुसूची यह सुनिश्चित करती है कि छोटे और बड़े राज्यों के बीच संतुलन बना रहे, जो भारत के संघीय ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है।
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