Recent Blogs

Third Schedule of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 16:36:14
searchkre.com@gmail.com / 8392828781

भारतीय संविधान की तृतीय अनुसूची

भारतीय संविधान की तृतीय अनुसूची
भारतीय संविधान की तृतीय अनुसूची (Third Schedule) में विभिन्न संवैधानिक और महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त व्यक्तियों द्वारा ली जाने वाली शपथ और प्रतिज्ञान (Oaths and Affirmations) के प्रारूप शामिल हैं। यह अनुसूची संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों, जैसे अनुच्छेद 75(4), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 188, और 219, के तहत संदर्भित है। यह अनुसूची सुनिश्चित करती है कि संवैधानिक और प्रशासनिक पदों पर आसीन व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को निष्ठा और संविधान के प्रति वफादारी के साथ निभाएँ। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
तृतीय अनुसूची की संरचना तृतीय अनुसूची में विभिन्न संवैधानिक पदों के लिए शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप दिए गए हैं। ये शपथ या तो ईश्वर के नाम पर (Oath) ली जा सकती हैं या गंभीर प्रतिज्ञान (Affirmation) के रूप में, जो व्यक्ति की धार्मिक या व्यक्तिगत मान्यताओं पर निर्भर करता है। अनुसूची में निम्नलिखित पदों के लिए शपथ/प्रतिज्ञान के प्रारूप शामिल हैं
1. राष्ट्रपति (अनुच्छेद 60)
2. उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 69)
3. केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य (अनुच्छेद 75(4))
4. संसद के सदस्य (लोकसभा और राज्यसभा) (अनुच्छेद 99)
5. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (अनुच्छेद 124(6))
6. भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) (अनुच्छेद 148(2))
7. राज्यपाल (अनुच्छेद 159)
8. राज्य मंत्रिपरिषद के सदस्य (अनुच्छेद 164(3))
9. राज्य विधानमंडल के सदस्य (विधानसभा और विधान परिषद) (अनुच्छेद 188)
10. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (अनुच्छेद 219)
शपथ/प्रतिज्ञान के प्रारूप प्रत्येक शपथ या प्रतिज्ञान का प्रारूप संवैधानिक कर्तव्यों, निष्ठा, और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। नीचे कुछ प्रमुख शपथों के प्रारूप और उनके मुख्य बिंदु दिए गए हैं
राष्ट्रपति की शपथ (अनुच्छेद 60) प्रारूप: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि कानून द्वारा स्थापित है, और मैं अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करूँगा; मैं भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखूँगा और अपने पद की गरिमा को कायम रखूँगा।"
प्रशासक: राष्ट्रपति की शपथ उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है। मुख्य बिंदु: संविधान के प्रति निष्ठा, निष्पक्षता, और भारत की संप्रभुता व अखंडता की रक्षा।
उपराष्ट्रपति की शपथ (अनुच्छेद 69) प्रारूप: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि कानून द्वारा स्थापित है, और मैं अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करूँगा।" प्रशासक: राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है। मुख्य बिंदु: संविधान के प्रति निष्ठा और कर्तव्यों का निष्पक्ष निर्वहन।
केंद्रीय मंत्रियों की शपथ (अनुच्छेद 75(4)) प्रारूप: पद की शपथ: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि कानून द्वारा स्थापित है, और मैं अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करूँगा।"
गोपनीयता की शपथ: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं ऐसी किसी बात को, जो मेरे विचारार्थ लाई जाए या मुझे मालूम हो, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रकट नहीं करूँगा, सिवाय इसके कि मुझे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में ऐसा करने की अनुमति हो।"
प्रशासक: राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है। मुख्य बिंदु: संविधान के प्रति निष्ठा, निष्पक्षता, और गोपनीयता।
संसद के सदस्यों की शपथ (अनुच्छेद 99) प्रारूप: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि कानून द्वारा स्थापित है, और मैं अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करूँगा।"
प्रशासक: लोकसभा अध्यक्ष/उपाध्यक्ष या राज्यसभा सभापति/उपसभापति द्वारा। मुख्य बिंदु: संविधान के प्रति निष्ठा और कर्तव्यों का निष्पक्ष निर्वहन।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ (अनुच्छेद 124(6)) प्रारूप: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि कानून द्वारा स्थापित है, और मैं अपने कर्तव्यों का बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह, या दुर्भावना के निर्वहन करूँगा।" प्रशासक: राष्ट्रपति या उनके द्वारा नामित व्यक्ति। मुख्य बिंदु: संविधान के प्रति निष्ठा, निष्पक्षता, और न्यायिक स्वतंत्रता।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की शपथ (अनुच्छेद 148(2)) प्रारूप: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि कानून द्वारा स्थापित है, और मैं अपने कर्तव्यों का बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह, या दुर्भावना के निर्वहन करूँगा।" प्रशासक: राष्ट्रपति या उनके द्वारा नामित व्यक्ति। मुख्य बिंदु: संविधान के प्रति निष्ठा और निष्पक्षता।
राज्यपाल की शपथ (अनुच्छेद 159) प्रारूप: > "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान और कानून के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, और मैं अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करूँगा।" प्रशासक: संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या वरिष्ठतम न्यायाधीश। मुख्य बिंदु: संविधान और कानून के प्रति निष्ठा।
राज्य मंत्रियों और विधानमंडल के सदस्यों की शपथ (अनुच्छेद 164(3), 188) मंत्रियों के लिए पद और गोपनीयता की शपथ, और विधानमंडल के सदस्यों के लिए संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ। प्रशासक: राज्यपाल या उनके द्वारा नामित व्यक्ति।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ (अनुच्छेद 219) प्रारूप: उच्चतम न्यायालय के समान, जिसमें संविधान के प्रति निष्ठा और निष्पक्षता शामिल है। प्रशासक: राज्यपाल या उनके द्वारा नामित व्यक्ति।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: तृतीय अनुसूची को संविधान लागू होने के समय (26 जनवरी 1950) में अपनाया गया। यह प्रारूप ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की शपथ प्रथाओं और भारतीय संदर्भों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। संशोधन: तृतीय अनुसूची में बड़े संशोधन कम हुए हैं, क्योंकि शपथ के प्रारूप सामान्य और लचीले हैं। हालाँकि, कुछ बदलाव हुए
1973 (16वाँ संशोधन): शपथ में "भारत की संप्रभुता और अखंडता" को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया, ताकि राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया जा सके।
नए पदों का समावेश: नए संवैधानिक पदों के सृजन (जैसे, केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विशेष प्रावधान) के साथ शपथ के प्रारूप जोड़े गए।
भाषा का लचीलापन: शपथ हिंदी, अंग्रेजी, या अन्य अनुसूची-8 की भाषाओं में ली जा सकती है।
तृतीय अनुसूची का महत्व
1. संवैधानिक निष्ठा: यह सुनिश्चित करता है कि सभी संवैधानिक पदाधिकारी संविधान के प्रति निष्ठा और जवाबदेही बनाए रखें। शपथ में "संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा" का उल्लेख भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करता है।
2. निष्पक्षता और स्वतंत्रता: विशेष रूप से न्यायाधीशों और CAG की शपथ में "बिना भय, पक्षपात, स्नेह, या दुर्भावना" का उल्लेख उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है।
3. गोपनीयता: मंत्रियों की गोपनीयता की शपथ राष्ट्रीय हितों और संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है।
4. संघीय ढांचे का समर्थन: केंद्र और राज्यों के पदाधिकारियों के लिए शपथ का प्रारूप एक समान है, जो भारत के संघीय ढांचे में एकरूपता लाता है।
5. कानूनी बाध्यता: शपथ का पालन न करने पर संवैधानिक पदाधिकारी को पद से हटाया जा सकता है। उदाहरण: संसद/विधानमंडल के सदस्य बिना शपथ लिए मतदान या कार्यवाही में भाग नहीं ले सकते।
संशोधन की प्रक्रिया संवैधानिक संशोधन: तृतीय अनुसूची में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए। संसदीय शक्ति: अनुच्छेद 368 के तहत संसद को अनुसूची में संशोधन का अधिकार है। सीमित संशोधन: चूँकि शपथ के प्रारूप सामान्य और व्यापक हैं, इसलिए इसमें बड़े बदलाव की आवश्यकता कम पड़ती है।
रोचक तथ्य
1. शपथ बनाम प्रतिज्ञान: व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर "ईश्वर की शपथ" या "गंभीर प्रतिज्ञान" चुन सकता है।
2. शपथ का अनिवार्य होना: संसद या विधानमंडल के सदस्यों के लिए शपथ लेना अनिवार्य है; बिना शपथ के वे अपनी सीट ग्रहण नहीं कर सकते।
3. भाषा की स्वतंत्रता: शपथ अनुसूची-8 की किसी भी भाषा में ली जा सकती है, जैसे हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, आदि।
4. ऐतिहासिक प्रभाव: शपथ के प्रारूप में "संप्रभुता और अखंडता" का समावेश 1973 में हुआ, जो उस समय की अलगाववादी चुनौतियों का जवाब था।
तृतीय अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध प्रथम अनुसूची: यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को परिभाषित करती है, जबकि तृतीय अनुसूची इन क्षेत्रों के पदाधिकारियों की शपथ को।
द्वितीय अनुसूची: यह वेतन और भत्तों को परिभाषित करती है, जो तृतीय अनुसूची के पदों से संबद्ध है।
सातवीं अनुसूची: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा करती है, और तृतीय अनुसूची इन शक्तियों को निभाने वाले पदों की शपथ को सुनिश्चित करती है।
समकालीन प्रासंगिकता
राष्ट्रीय एकता: शपथ में "संप्रभुता और अखंडता" का उल्लेख भारत की एकता को मजबूत करता है।
न्यायिक स्वतंत्रता: न्यायाधीशों की शपथ उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करती है, जो लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
लोकतांत्रिक जवाबदेही: शपथ संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को जनता और संविधान के प्रति जवाबदेह बनाती है।
विवाद: कुछ मामलों में, जैसे संसद सदस्यों द्वारा शपथ के दौरान नारे लगाना, विवाद उत्पन्न हुआ है, जो शपथ की गरिमा पर सवाल उठाता है।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh searchkre.com@gmail.com 8392828781

Our Services

Scholarship Information

Add Blogging

Course Category

Add Blogs

Coaching Information

Add Blogging

Add Blogging

Add Blogging

Our Course

Add Blogging

Add Blogging

Hindi Preparation

English Preparation

SearchKre Course

SearchKre Services

SearchKre Course

SearchKre Scholarship

SearchKre Coaching

Loan Offer

JP GROUP

Head Office :- A/21 karol bag New Dellhi India 110011
Branch Office :- 1488, adrash nagar, hapur, Uttar Pradesh, India 245101
Contact With Our Seller & Buyer