Second Schedule of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 16:31:09
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भारतीय संविधान की द्वितीय अनुसूची
भारतीय संविधान की द्वितीय अनुसूची
भारतीय संविधान की द्वितीय अनुसूची (Second Schedule) में विभिन्न संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के वेतन, भत्ते, और विशेषाधिकार (Salaries, Allowances, and Privileges) से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह अनुसूची भारत के प्रमुख संवैधानिक और प्रशासनिक पदाधिकारियों, जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, संसद और विधानसभाओं के सदस्य, और न्यायाधीशों के वेतन और भत्तों को निर्धारित करती है। यह संविधान के अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(6), 158(3), 164(5), 186, और 221 के तहत संदर्भित है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रावधान, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्व, और संशोधन प्रक्रिया शामिल है।
द्वितीय अनुसूची की संरचना द्वितीय अनुसूची पाँच भागों में विभाजित है, प्रत्येक भाग विभिन्न संवैधानिक पदों से संबंधित है
1. भाग A: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के वेतन और भत्ते।
2. भाग B: राज्यपालों के वेतन और भत्ते।
3. भाग C: लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और उपसभापति, राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, और राज्य विधान परिषदों के सभापति और उपसभापति के वेतन और भत्ते।
4. भाग D: उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, और विशेषाधिकार।
5. भाग E: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के वेतन, भत्ते, और विशेषाधिकार।
वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक) द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित वेतन और भत्ते समय-समय पर संसद द्वारा पारित कानूनों के माध्यम से संशोधित किए जाते हैं। नीचे प्रत्येक भाग के तहत प्रमुख प्रावधान दिए गए हैं
वर्तमान प्रावधान (7 जुलाई 2025 तक) द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित वेतन और भत्ते समय-समय पर संसद द्वारा पारित कानूनों के माध्यम से संशोधित किए जाते हैं। नीचे प्रत्येक भाग के तहत प्रमुख प्रावधान दिए गए हैं
उपराष्ट्रपति: वेतन: प्रति माह ₹4,00,000 (लगभग)। भत्ते और विशेषाधिकार: आधिकारिक आवास, चिकित्सा सुविधाएँ, यात्रा भत्ते, और अन्य सुविधाएँ। नोट: उपराष्ट्रपति, जो राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, को दोनों भूमिकाओं के लिए अलग-अलग वेतन नहीं मिलता; केवल उच्चतर वेतन लागू होता है।
भाग B: राज्यपाल वेतन: प्रति माह ₹3,50,000 (लगभग)। भत्ते और विशेषाधिकार: राजभवन में मुफ्त आवास, चिकित्सा सुविधाएँ, यात्रा भत्ते, और अन्य सुविधाएँ। नोट: यदि एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यों का प्रभारी है, तो उसे अतिरिक्त भत्ते मिल सकते हैं।
भाग C: संसद और विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारी लोकसभा के अध्यक्ष: प्रति माह ₹4,00,000 (लगभग)। लोकसभा के उपाध्यक्ष: प्रति माह ₹1,25,000 (लगभग)। राज्यसभा के सभापति (उपराष्ट्रपति): जैसा कि भाग A में उल्लिखित। राज्यसभा के उपसभापति: प्रति माह ₹1,25,000 (लगभग)। राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष: प्रति माह ₹1,25,000 से ₹1,50,000 (राज्य के आधार पर भिन्न)। राज्य विधान परिषदों के सभापति और उपसभापति: प्रति माह ₹1,00,000 से ₹1,25,000 (राज्य के आधार पर भिन्न)। भत्ते: मुफ्त आवास, चिकित्सा सुविधाएँ, यात्रा भत्ते, और अन्य सुविधाएँ।
भाग D: उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय: मुख्य न्यायाधीश: प्रति माह ₹2,80,000 (लगभग)। अन्य न्यायाधीश: प्रति माह ₹2,50,000 (लगभग)। उच्च न्यायालय: मुख्य न्यायाधीश: प्रति माह ₹2,50,000 (लगभग)। अन्य न्यायाधीश: प्रति माह ₹2,25,000 (लगभग)। भत्ते और विशेषाधिकार: मुफ्त आवास, चिकित्सा सुविधाएँ, पेंशन, और अवकाश यात्रा भत्ते।
भाग E: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) वेतन:₹2,50,000。 भत्ते और विशेषाधिकार: मुफ्त आवास, चिकित्सा सुविधाएँ, पेंशन, और अन्य सुविधाएँ। नोट: CAG की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए उनका वेतन भी संघ की संचित निधि से दिया जाता है।
महत्वपूर्ण नोट: उपरोक्त वेतन और भत्ते समय-समय पर संसद द्वारा संशोधित किए जाते हैं। नवीनतम आँकड़े वेतन और भत्ते अधिनियम (जैसे, High Court and Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Amendment Act) और संबंधित नियमों के आधार पर अपडेट किए जाते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संशोधन द्वितीय अनुसूची में वेतन और भत्ते संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के समय से कई बार संशोधित हुए हैं। प्रमुख परिवर्तन और उनके कारण निम्नलिखित हैं
1. 1950 में प्रारंभिक प्रावधान: संविधान लागू होने पर, द्वितीय अनुसूची में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, और न्यायाधीशों के लिए नाममात्र वेतन निर्धारित किए गए थे, जैसे: राष्ट्रपति: ₹10,000 प्रति माह। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश: ₹5,000 प्रति माह। ये राशियाँ उस समय की आर्थिक स्थिति के अनुरूप थीं।
2. 1950-1980: प्रारंभिक संशोधन: महँगाई और आर्थिक विकास के कारण वेतन और भत्तों में समय-समय पर वृद्धि की गई। 1956: राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद नए राज्यों के गठन के साथ, राज्यपालों और विधानमंडल के अधिकारियों के लिए प्रावधान जोड़े गए।
3. 1980-2000: नियमित संशोधन: उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्तें) अधिनियम के तहत न्यायाधीशों के वेतन में नियमित वृद्धि की गई। 1990 के दशक: आर्थिक उदारीकरण के बाद वेतन संरचना में बड़े बदलाव हुए।
4. 2000 के बाद: आधुनिक संशोधन: 2018: उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि के लिए High Court and Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Amendment Act, 2018 पारित किया गया। 2019: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन के बाद, नए केंद्र शासित प्रदेशों के लिए संबंधित अधिकारियों के भत्तों में समायोजन किया गया। 2020 और उसके बाद: महँगाई भत्ते (DA) और अन्य सुविधाओं में समय-समय पर वृद्धि।
द्वितीय अनुसूची का महत्व द्वितीय अनुसूची का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है
1. संवैधानिक पदों की गरिमा: यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीश, और CAG जैसे संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को उनकी जिम्मेदारियों के अनुरूप वेतन और सुविधाएँ मिलें। यह इन पदों की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखता है।
2. न्यायिक और प्रशासनिक स्वतंत्रता: न्यायाधीशों और CAG के वेतन को संघ की संचित निधि से भुगतान किया जाता है, ताकि उनकी स्वतंत्रता पर कोई दबाव न हो। यह कार्यपालिका और विधायिका से उनकी स्वायत्तता सुनिश्चित करता है।
3. वित्तीय पारदर्शिता: द्वितीय अनुसूची में प्रावधान पारदर्शी और कानूनी रूप से निर्धारित हैं, जो भ्रष्टाचार या अनुचित प्रभाव को रोकता है।
4. संघीय ढांचे का समर्थन: यह केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक संतुलन को बनाए रखता है, क्योंकि राज्यपालों और राज्य विधानमंडलों के अधिकारियों के वेतन भी इसमें शामिल हैं।
संशोधन की प्रक्रिया संवैधानिक प्रक्रिया: द्वितीय अनुसूची में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए। संसदीय कानून: वेतन और भत्तों में सामान्य वृद्धि के लिए संसद द्वारा अलग-अलग अधिनियम पारित किए जाते हैं, जैसे: Salaries and Allowances of Ministers Act. High Court and Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Act.
संघ की संचित निधि: इन पदों के वेतन और भत्ते संघ की संचित निधि से दिए जाते हैं, जिसके लिए संसद की मंजूरी आवश्यक है। राज्य स्तर पर: राज्य विधानमंडलों के अधिकारियों के वेतन और भत्ते संबंधित राज्य विधानसभाओं द्वारा निर्धारित किए जा सकते हैं, लेकिन मूल ढांचा द्वितीय अनुसूची से संदर्भित होता है।
रोचक तथ्य
1. संघ की संचित निधि: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीश, और CAG के वेतन को संघ की संचित निधि से भुगतान किया जाता है, जो उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
2. वेतन में असमानता: विभिन्न राज्यों में विधानमंडल के अधिकारियों के वेतन में अंतर हो सकता है, जो राज्य की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है।
3. पेंशन और अन्य लाभ: द्वितीय अनुसूची में पेंशन और अवकाश यात्रा भत्ते जैसे दीर्घकालिक लाभ भी शामिल हैं।
4. न्यायिक स्वतंत्रता: न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त होते हैं, जो संविधान के तहत उनकी स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
वितीय अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध प्रथम अनुसूची: यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को परिभाषित करती है, जबकि द्वितीय अनुसूची इन क्षेत्रों के संवैधानिक पदों के लिए वेतन निर्धारित करती है।
सातवीं अनुसूची: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा करती है, और द्वितीय अनुसूची इसका वित्तीय पहलू पूरक बनाती है।
अनुच्छेद 125 और 221: ये अनुच्छेद क्रमशः उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन को संदर्भित करते हैं, जो द्वितीय अनुसूची से जुड़े हैं।
समकालीन प्रासंगिकता वेतन वृद्धि की माँग: समय-समय पर न्यायाधीशों और अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों के वेतन में वृद्धि की माँग उठती है, खासकर महँगाई के कारण। न्यायिक स्वतंत्रता: द्वितीय अनुसूची में प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि न्यायाधीश और CAG जैसे पद कार्यपालिका के दबाव से मुक्त रहें। पारदर्शिता और जवाबदेही: वेतन और भत्तों का कानूनी ढांचा संवैधानिक पदों पर पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
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