First Schedule of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 16:20:55
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भारतीय संविधान की प्रथम अनुसूची
भारतीय संविधान की प्रथम अनुसूची
भारतीय संविधान की प्रथम अनुसूची (First Schedule) भारतीय संघ के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची और उनके क्षेत्रीय विवरण को परिभाषित करती है। यह अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 1 और 4 के तहत भारत के क्षेत्र को स्पष्ट करती है और देश के संघीय ढांचे का आधार बनाती है। यह भारत की क्षेत्रीय संरचना को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें संरचना, ऐतिहासिक परिवर्तन, महत्व, संशोधन प्रक्रिया, और अन्य प्रासंगिक पहलुओं को शामिल किया गया है।
प्रथम अनुसूची की संरचना
प्रथम अनुसूची दो मुख्य भागों में विभाजित है:
(क) राज्यों की सूची: इसमें भारत के सभी राज्यों के नाम और उनके क्षेत्रीय विवरण शामिल हैं। ये राज्य पूर्ण विधायी और प्रशासनिक शक्तियों वाले क्षेत्र हैं, जिनके पास अपनी विधानसभाएँ और सरकारें होती हैं।
(ख) केंद्र शासित प्रदेशों की सूची: इसमें उन क्षेत्रों की सूची शामिल है जो केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में हैं। कुछ केंद्र शासित प्रदेशों (जैसे दिल्ली और पुदुचेरी) के पास सीमित विधायी शक्तियाँ हैं, जबकि अन्य (जैसे अंडमान और निकोबार, लद्दाख) पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा शासित हैं।
मान राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची (7 जुलाई 2025 तक)
28 राज्य:
1. आंध्र प्रदेश
2. अरुणाचल प्रदेश
3. असम
4. बिहार
5. छत्तीसगढ़
6. गोवा
7. गुजरात
8. हरियाणा
9. हिमाचल प्रदेश
10. झारखंड
11. कर्नाटक
12. केरल
13. मध्य प्रदेश
14. महाराष्ट्र
15. मणिपुर
16. मेघालय
17. मिजोरम
18. नगालैंड
19. ओडिशा
20. पंजाब
21. राजस्थान
22. सिक्किम
23. तमिलनाडु
24. तेलंगाना
25. त्रिपुरा
26. उत्तर प्रदेश
27. उत्तराखंड
28. पश्चिम बंगाल
8 केंद्र शासित प्रदेश:
1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
2. चंडीगढ़
3. दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव
4. दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
5. जम्मू और कश्मीर
6. लद्दाख
7. लक्षद्वीप
8. पुदुचेरी
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और परिवर्तन प्रथम अनुसूची में समय-समय पर संशोधन हुए हैं, जो भारत की बदलती राजनीतिक, सामाजिक, और प्रशासनिक आवश्यकताओं को दर्शाते हैं। यह अनुसूची 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के समय से कई बार बदली है। कुछ प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित हैं
1950 में प्रथम अनुसूची जब संविधान लागू हुआ, प्रथम अनुसूची में भारत को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया था
भाग A: पूर्व ब्रिटिश प्रांत (जैसे बिहार, बंगाल, मद्रास, संयुक्त प्रांत)।
भाग B: पूर्व रियासतें या रियासतों के समूह (जैसे हैदराबाद, मैसूर, जम्मू और कश्मीर)।
भाग C: केंद्र शासित क्षेत्र (जैसे दिल्ली, अजमेर, कूर्ग)।
भाग D: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे विशेष क्षेत्र।
उस समय कुल 29 राज्य और क्षेत्र थे।
1956: राज्य पुनर्गठन अधिनियम राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 ने भाषाई आधार पर राज्यों की सीमाओं को पुनर्गठित किया। इसके परिणामस्वरूप: भाग A, B, C, और D की श्रेणियाँ समाप्त कर दी गईं। नए राज्यों का गठन हुआ, जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, और मध्य प्रदेश। कुछ रियासतें और क्षेत्र नए राज्यों में विलय हो गए। केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या में बदलाव हुआ।
1960-2000: नए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का गठन 1960: बंबई को विभाजित कर गुजरात और महाराष्ट्र बनाए गए। 1962-1975: हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, और सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। 1987: गोवा को केंद्र शासित प्रदेश से अलग कर पूर्ण राज्य बनाया गया। 2000: तीन नए राज्य बने: छत्तीसगढ़ (मध्य प्रदेश से) उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश से) झारखंड (बिहार से)
2014: तेलंगाना का गठन 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश को विभाजित कर तेलंगाना राज्य बनाया गया। यह प्रथम अनुसूची में संशोधन के साथ लागू हुआ।
019: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत: जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया: जम्मू और कश्मीर (सीमित विधायी शक्तियों के साथ) और लद्दाख (बिना विधानसभा)। यह संशोधन प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया। दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव को 2020 में एक केंद्र शासित प्रदेश में मिला दिया गया।
अन्य परिवर्तन छोटे-मोटे क्षेत्रीय समायोजन, जैसे जिले या तहसील स्तर पर सीमाओं का पुनर्निर्धारण, प्रथम अनुसूची में परिलक्षित नहीं होते, क्योंकि यह केवल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के व्यापक क्षेत्रों को परिभाषित करता है।
प्रथम अनुसूची का महत्व प्रथम अनुसूची भारतीय संविधान का एक आधारभूत हिस्सा है, और इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है
1. संघीय ढांचे की नींव: यह भारत के संघीय ढांचे को परिभाषित करता है, जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति और उनके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र स्पष्ट होते हैं। यह भारत को एक संघ (Union of States) के रूप में स्थापित करता है, जैसा कि अनुच्छेद 1 में उल्लिखित है।
2. क्षेत्रीय अखंडता: प्रथम अनुसूची भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता को परिभाषित करती है। यह भारत के भौगोलिक क्षेत्र को एकीकृत रूप में प्रस्तुत करती है।
3. प्रशासनिक स्पष्टता: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के बँटवारे को स्पष्ट करने में मदद करता है, जो संविधान की सातवीं अनुसूची (संघ, राज्य, और समवर्ती सूची) के साथ मिलकर काम करता है।
4. संवैधानिक लचीलापन: प्रथम अनुसूची में संशोधन की प्रक्रिया संविधान के तहत लचीली है, जिससे संसद नए राज्यों का गठन या सीमाओं में बदलाव कर सकती है।
संशोधन की प्रक्रिया संवैधानिक प्रक्रिया: प्रथम अनुसूची में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है, जो संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए।
अनुच्छेद 3 और 4: अनुच्छेद 3 संसद को नए राज्यों के गठन, मौजूदा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन, या उनके नाम बदलने की शक्ति देता है। अनुच्छेद 4 यह सुनिश्चित करता है कि प्रथम और चौथी अनुसूची में संशोधन के लिए विशेष प्रक्रिया लागू हो।
राज्यों की सहमति: यदि किसी राज्य की सीमा या क्षेत्र में बदलाव होता है, तो संबंधित राज्य विधानसभाओं की राय ली जाती है, लेकिन उनकी सहमति अनिवार्य नहीं है।
उदाहरण: तेलंगाना का गठन (2014) और जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन (2019) इस प्रक्रिया के तहत हुए।
प्रथम अनुसूची से संबंधित रोचक तथ्य
1. नामों का महत्व: प्रथम अनुसूची में केवल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नाम और क्षेत्र शामिल हैं, न कि उनकी राजधानियाँ या अन्य प्रशासनिक विवरण।
2. संघ बनाम महासंघ: भारत को संविधान में "संघ" (Union) कहा गया है, न कि "महासंघ" (Federation), जो केंद्र सरकार की मजबूत स्थिति को दर्शाता है।
3. लचीलापन: प्रथम अनुसूची में संशोधन अन्य संवैधानिक प्रावधानों की तुलना में अपेक्षाकृत आसान है, क्योंकि इसके लिए केवल संसदीय बहुमत की आवश्यकता होती है।
4. क्षेत्रीय विवाद: कुछ राज्यों के बीच सीमाओं को लेकर विवाद (जैसे महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच बेलगाम विवाद) प्रथम अनुसूची से संबंधित हैं, लेकिन इनका समाधान संसद या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है।
प्रथम अनुसूची और अन्य अनुसूचियों से संबंध सातवीं अनुसूची: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा करती है, जो प्रथम अनुसूची के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए लागू होता है।
चौथी अनुसूची: यह राज्यसभा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित सीटों को परिभाषित करती है, जो प्रथम अनुसूची से जुड़ा हुआ है।
अनुच्छेद 1: यह भारत को राज्यों का संघ घोषित करता है, और प्रथम अनुसूची इसका आधार प्रदान करती है।
समकालीन प्रासंगिकता जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा: 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने से प्रथम अनुसूची में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ। यह भारत के संघीय ढांचे में केंद्र की मजबूत भूमिका को दर्शाता है।
नए राज्यों की माँग: समय-समय पर विदर्भ, सौराष्ट्र, या गोरखालैंड जैसे नए राज्यों की माँग उठती रहती है, जो प्रथम अनुसूची में संभावित संशोधनों की ओर इशारा करती है।
प्रशासनिक सुधार: केंद्र शासित प्रदेशों जैसे दिल्ली और पुदुचेरी को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग भी प्रथम अनुसूची से जुड़ी है।
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