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Article 380 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 16:01:30
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 380

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 380
अनुच्छेद 380 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में शामिल था। यह अस्थायी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चयन और उनके कार्यकाल से संबंधित था। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के बाद एक अस्थायी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की नियुक्ति सुनिश्चित करना था, जो तब तक कार्य करेंगे जब तक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत निर्वाचित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेते।
(2) अस्थायी उपराष्ट्रपति भी संविधान सभा द्वारा चुना जाएगा और वह उपराष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग करेगा।
(3) अस्थायी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति तब तक कार्य करेंगे, जब तक संवैधानिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेते।
उद्देश्य: अनुच्छेद 380 का उद्देश्य संविधान लागू होने के बाद अस्थायी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की नियुक्ति सुनिश्चित करना था, ताकि स्वतंत्रता के बाद के संक्रमणकाल में शासन की निरंतरता बनी रहे। यह प्रावधान नए गणतंत्र में कार्यकारी नेतृत्व की स्थापना के लिए बनाया गया था। इसका लक्ष्य संवैधानिक निरंतरता, प्रशासनिक स्थिरता, और संस्थागत ढांचे का सुचारु संचालन सुनिश्चित करना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 380 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा था और 26 नवंबर 1949 को लागू हुआ। स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा को अस्थायी शासन व्यवस्था स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। भारतीय संदर्भ: 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद, संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव होने तक अस्थायी व्यवस्था की आवश्यकता थी। उदाहरण: डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 26 जनवरी 1950 को अस्थायी राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया, और बाद में वे औपचारिक रूप से पहले राष्ट्रपति चुने गए।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1952 में पहले उपराष्ट्रपति चुने गए। प्रासंगिकता (2025): यह अनुच्छेद अब ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि अस्थायी व्यवस्था की आवश्यकता 1952 में समाप्त हो गई थी।
अनुच्छेद 380 के प्रमुख तत्व
अस्थायी राष्ट्रपति: संविधान सभा द्वारा चुना गया व्यक्ति अस्थायी राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता था। वह अनुच्छेद 62 के तहत राष्ट्रपति की सभी शक्तियों का प्रयोग करता था। उदाहरण: डॉ. राजेंद्र प्रसाद का अस्थायी राष्ट्रपति के रूप में कार्य।
अस्थायी उपराष्ट्रपति: संविधान सभा द्वारा चुना गया व्यक्ति अस्थायी उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य करता था। वह अनुच्छेद 66 के तहत उपराष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग करता था।
अवधि: अस्थायी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति तब तक कार्य करते थे, जब तक संवैधानिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेते। उदाहरण: 1950-52 तक अस्थायी व्यवस्था।
न्यायिक समीक्षा: अस्थायी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती थी, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: संवैधानिक निरंतरता: कार्यकारी नेतृत्व में रिक्तता को रोका। प्रशासनिक स्थिरता: शासन की सुचारु शुरुआत। संस्थागत ढांचा: नए गणतंत्र की नींव। ऐतिहासिक भूमिका: स्वतंत्रता के बाद का संक्रमणकाल।
प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: संविधान सभा द्वारा। शक्तियाँ: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के समान। अवधि: 1950-1952। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1949: संविधान सभा द्वारा अस्थायी राष्ट्रपति का चयन। 1950: डॉ. राजेंद्र प्रसाद का अस्थायी राष्ट्रपति के रूप में कार्य। 1952: पहली निर्वाचित संसद और राष्ट्रपति का गठन। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 59: राष्ट्रपति का कार्यकाल। अनुच्छेद 65: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल। अनुच्छेद 394: संविधान का प्रारंभ। अनुच्छेद 395: निरसन।
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