Article 379 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 15:59:06
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 379
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 379
अनुच्छेद 379 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में शामिल था। यह अस्थायी संसद (Provisional Parliament) के गठन और कार्य से संबंधित था। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के बाद एक अस्थायी संसद की स्थापना करना था, जो तब तक कार्य करेगी जब तक पूर्ण रूप से निर्वाचित संसद का गठन नहीं हो जाता।
"(1) संविधान लागू होने के समय, संविधान सभा, जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत गठित थी, भारत की अस्थायी संसद के रूप में कार्य करेगी और लोकसभा की सभी शक्तियाँ प्राप्त करेगी।
(2) अस्थायी संसद के सदस्यों की संख्या और संरचना संविधान के प्रावधानों के अधीन होगी।
(3) अस्थायी संसद तब तक कार्य करेगी, जब तक पहली निर्वाचित संसद का गठन नहीं हो जाता।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 379 का उद्देश्य संविधान लागू होने के बाद एक अस्थायी संसद की स्थापना करना था, जो स्वतंत्रता के बाद के संक्रमणकाल में विधायी कार्यों को संभाले। यह सुनिश्चित करता था कि संविधान के लागू होने और पहली निर्वाचित संसद (1952 में गठित) के बीच कोई विधायी रिक्तता न हो। इसका लक्ष्य प्रशासनिक निरंतरता, संवैधानिक स्थिरता, और संस्थागत ढांचे का सुचारु संचालन सुनिश्चित करना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 379 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा था और 26 नवंबर 1949 को लागू हुआ। स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा (जो 1946 में भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत गठित हुई थी) को संविधान निर्माण के साथ-साथ अस्थायी संसद के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी दी गई। भारतीय संदर्भ: 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद, पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ। तब तक, संविधान सभा ने अस्थायी संसद के रूप में कार्य किया।
उदाहरण: अस्थायी संसद ने 1950-52 के बीच कई महत्वपूर्ण कानून पारित किए, जैसे नागरिकता अधिनियम, 1955 की नींव। प्रासंगिकता (2025): यह अनुच्छेद अब ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि अस्थायी संसद की आवश्यकता 1952 में समाप्त हो गई थी।
अनुच्छेद 379 के प्रमुख तत्व
अस्थायी संसद का गठन: संविधान सभा को अस्थायी संसद के रूप में कार्य करने का अधिकार दिया गया। यह संसद लोकसभा की सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकती थी। उदाहरण: संविधान सभा के सदस्यों ने विधायी कार्य किए।
संरचना और सदस्यता: अस्थायी संसद की संरचना भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत गठित संविधान सभा पर आधारित थी। इसमें रियासतों और प्रांतों के प्रतिनिधि शामिल थे।
अवधि: अस्थायी संसद 26 जनवरी 1950 से 1952 तक कार्यरत रही, जब तक पहली निर्वाचित संसद का गठन नहीं हुआ। उदाहरण: 1951-52 में पहला आम चुनाव।
न्यायिक समीक्षा: अस्थायी संसद के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती थी, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: प्रशासनिक निरंतरता: विधायी रिक्तता को रोका। संवैधानिक स्थिरता: संविधान के कार्यान्वयन में सहायता। संस्थागत ढांचा: अस्थायी संसद ने नए गणतंत्र की नींव रखी। ऐतिहासिक भूमिका: स्वतंत्रता के बाद का संक्रमणकाल।
प्रमुख विशेषताएँ: गठन: संविधान सभा के रूप में अस्थायी संसद। शक्तियाँ: लोकसभा के समान। अवधि: 1950-1952। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1946-50: संविधान सभा ने संविधान निर्माण और विधायी कार्य किए। 1950-52: अस्थायी संसद के रूप में कार्य। 1952: पहली निर्वाचित संसद का गठन। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 394: संविधान का प्रारंभ। अनुच्छेद 395: निरसन। अनुच्छेद 372: मौजूदा कानूनों की निरंतरता।
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