Article 378 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 15:54:52
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 378
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 378
अनुच्छेद 378 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों की निरंतरता (Provisions as to Public Service Commissions) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के समय कार्यरत लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य अपने पद पर बने रहें और संविधान के अधीन कार्य करें।
उद्देश्य: अनुच्छेद 378 का उद्देश्य संविधान लागू होने के समय कार्यरत लोक सेवा आयोगों (जैसे, संघ लोक सेवा आयोग और प्रांतीय लोक सेवा आयोग) के अध्यक्ष और सदस्यों की निरंतरता सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक और भर्ती प्रक्रिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए बनाया गया। इसका लक्ष्य प्रशासनिक निरंतरता, संवैधानिक अनुपालन, और लोक सेवा में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 378 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। स्वतंत्रता से पहले, भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत संघीय लोक सेवा आयोग और प्रांतीय लोक सेवा आयोग कार्यरत थे। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, इन आयोगों को बंद करने से सरकारी भर्ती और प्रशासनिक प्रक्रिया में रुकावट हो सकती थी। उदाहरण: संघीय लोक सेवा आयोग का संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) में परिवर्तन। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान अब ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि वर्तमान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य संविधान के तहत नियुक्त होते हैं।
अनुच्छेद 378 के प्रमुख तत्व
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य: संविधान लागू होने के समय भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत नियुक्त लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य अपने पद पर बने रहेंगे। वे संविधान के प्रावधानों (जैसे, अनुच्छेद 316 और 317) के अधीन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। उदाहरण: UPSC के तत्कालीन अध्यक्ष की निरंतरता।
संविधान के अधीन कार्य: इन आयोगों की शक्तियाँ और कार्य संविधान के प्रावधानों के अधीन होंगे। उदाहरण: UPSC की भर्ती प्रक्रिया।
न्यायिक समीक्षा: लोक सेवा आयोगों के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: प्रशासनिक निरंतरता: भर्ती प्रक्रिया में स्थिरता। संवैधानिक अनुपालन: संविधान के साथ सामंजस्य। पारदर्शिता: लोक सेवा में निष्पक्षता। राष्ट्रीय एकीकरण: एकीकृत प्रशासनिक ढांचा।
प्रमुख विशेषताएँ: निरंतरता: अध्यक्ष और सदस्य। अधीनता: संविधान के प्रावधान। शक्तियाँ: भर्ती और प्रशासन। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: संघीय लोक सेवा आयोग का UPSC में परिवर्तन। 1950-56: नए राज्यों में लोक सेवा आयोगों का गठन। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोगों की स्थापना। अनुच्छेद 316: नियुक्ति और कार्यकाल। अनुच्छेद 317: हटाने की प्रक्रिया।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781