Article 377 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 15:52:55
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 377
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 377
अनुच्छेद 377 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और कुछ अन्य व्यक्तियों की निरंतरता (Provisions as to Comptroller and Auditor-General of India and certain other persons) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के समय कार्यरत नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) और कुछ अन्य पदाधिकारी अपने पद पर बने रहें और संविधान के अधीन कार्य करें।
उद्देश्य: अनुच्छेद 377 का उद्देश्य संविधान लागू होने के समय कार्यरत नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) और अन्य पदाधिकारियों की निरंतरता सुनिश्चित करना है, ताकि स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक और वित्तीय व्यवस्था में कोई रुकावट न आए। यह प्रावधान इन पदाधिकारियों को संविधान के अधीन कार्य करने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य वित्तीय और प्रशासनिक निरंतरता, संवैधानिक अनुपालन, और संस्थागत स्थिरता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 377 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। स्वतंत्रता से पहले, भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और अन्य पदाधिकारी कार्यरत थे। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, इन पदाधिकारियों को हटाने या नए सिरे से नियुक्त करने से वित्तीय और प्रशासनिक व्यवस्था में अस्थिरता हो सकती थी। उदाहरण: तत्कालीन CAG की निरंतरता। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान अब ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि वर्तमान CAG और अन्य पदाधिकारी संविधान के तहत नियुक्त होते हैं।
अनुच्छेद 377 के प्रमुख तत्व
नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG): संविधान लागू होने के समय कार्यरत CAG अपने पद पर बने रहेंगे। वे संविधान के प्रावधानों (जैसे, अनुच्छेद 148) के अधीन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। उदाहरण: वित्तीय लेखा-जोखा की निगरानी।
अन्य पदाधिकारी: भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत नियुक्त अन्य पदाधिकारी (जैसे, प्रशासनिक अधिकारी) अपने कार्य संविधान के अधीन जारी रखेंगे। उदाहरण: ब्रिटिश काल के प्रशासनिक अधिकारी।
संविधान के अधीन: सभी कार्यवाहियाँ और शक्तियाँ संविधान के प्रावधानों के अधीन होंगी। यदि कोई कार्यवाही या शक्ति संविधान के विपरीत है, तो उसे अनुच्छेद 13 के तहत शून्य माना जाएगा।
न्यायिक समीक्षा: CAG या अन्य पदाधिकारियों के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: वित्तीय निरंतरता: CAG की भूमिका में स्थिरता। प्रशासनिक स्थिरता: अन्य पदाधिकारियों का संचालन। संवैधानिक अनुपालन: संविधान के साथ सामंजस्य। राष्ट्रीय एकीकरण: एकीकृत प्रशासनिक ढांचा।
प्रमुख विशेषताएँ: निरंतरता: CAG और अन्य पदाधिकारी। अधीनता: संविधान के प्रावधान। शक्तियाँ: कार्यों का निष्पादन। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: तत्कालीन CAG की निरंतरता। 1950-56: नए ढांचे में प्रशासनिक एकीकरण। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 148: CAG की नियुक्ति और शक्तियाँ। अनुच्छेद 375: अन्य प्राधिकरण। अनुच्छेद 376: उच्च न्यायालय के न्यायाधीश।
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