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Article 376 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 15:51:44
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 376

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 376
अनुच्छेद 376 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह कतिपय न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों की निरंतरता (Provisions as to Judges of High Courts and certain other judicial officers) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के समय कार्यरत उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक अधिकारियों के न्यायाधीश अपने पद पर बने रहें।
(2) कुछ अन्य न्यायिक अधिकारी, जैसे मजिस्ट्रेट, जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत नियुक्त थे, अपने कार्यों को संविधान के अधीन जारी रखेंगे।
उद्देश्य: अनुच्छेद 376 का उद्देश्य संविधान लागू होने के समय कार्यरत उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और अन्य न्यायिक अधिकारियों (जैसे मजिस्ट्रेट) की निरंतरता सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद न्यायिक व्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने के लिए बनाया गया। इसका लक्ष्य न्यायिक निरंतरता, प्रशासनिक स्थिरता, और संवैधानिक ढांचे में एकीकरण सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 376 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। स्वतंत्रता से पहले, उच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक अधिकारी भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत कार्यरत थे। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, उच्च न्यायालयों (जैसे, बंबई, कलकत्ता, मद्रास) और अन्य न्यायिक अधिकारियों को बंद करने से न्यायिक व्यवस्था में रुकावट हो सकती थी। उदाहरण: कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की निरंतरता। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान अब ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि वर्तमान न्यायाधीश और अधिकारी संविधान के तहत नियुक्त होते हैं।
अनुच्छेद 376 के प्रमुख तत्व
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश: संविधान लागू होने के समय उच्च न्यायालयों में कार्यरत न्यायाधीश अपने पद पर बने रहेंगे। वे संविधान के प्रावधानों के अधीन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। उदाहरण: बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश।
अन्य न्यायिक अधिकारी: मजिस्ट्रेट और अन्य न्यायिक अधिकारी, जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत नियुक्त थे, अपने कार्य संविधान के अधीन जारी रखेंगे। उदाहरण: स्थानीय मजिस्ट्रेट।
संविधान के अधीन: सभी न्यायाधीश और अधिकारी संविधान के प्रावधानों के अधीन कार्य करेंगे। यदि कोई कार्यवाही या शक्ति संविधान के विपरीत है, तो उसे अनुच्छेद 13 के तहत शून्य माना जाएगा।
न्यायिक समीक्षा: इन न्यायाधीशों या अधिकारियों के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: न्यायिक निरंतरता: स्वतंत्रता के बाद न्यायिक व्यवस्था। प्रशासनिक स्थिरता: अधिकारियों का संचालन। संवैधानिक अनुपालन: संविधान के साथ सामंजस्य। राष्ट्रीय एकीकरण: एकीकृत न्यायिक ढांचा।
प्रमुख विशेषताएँ: निरंतरता: न्यायाधीश और अधिकारी। अधीनता: संविधान के प्रावधान। शक्तियाँ: कार्यों का निष्पादन। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की निरंतरता। 1950-56: नए राज्यों में उच्च न्यायालयों का गठन। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 214: उच्च न्यायालयों की स्थापना। अनुच्छेद 374: संघीय न्यायालय। अनुच्छेद 375: अन्य प्राधिकरण।
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