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Article 375 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 15:50:23
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 375

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 375
अनुच्छेद 375 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह संविधान लागू होने के बाद उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायालयों की स्थिति (Courts, authorities, and officers to continue to function subject to the provisions of the Constitution) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के बाद भी उच्च न्यायालय और अन्य प्राधिकरण अपने कार्यों को संविधान के अधीन जारी रखें।
उद्देश्य: अनुच्छेद 375 का उद्देश्य संविधान लागू होने के बाद उच्च न्यायालयों, अन्य न्यायालयों, और प्रशासनिक प्राधिकरणों की निरंतरता सुनिश्चित करना है, ताकि स्वतंत्रता के बाद न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था में कोई रुकावट न आए। यह प्रावधान संविधान के अधीन इन संस्थानों को कार्य करने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य न्यायिक निरंतरता, प्रशासनिक स्थिरता, और संवैधानिक ढांचे में एकीकरण सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 375 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। स्वतंत्रता से पहले, भारत में उच्च न्यायालय (ब्रिटिश काल में स्थापित, जैसे बंबई, कलकत्ता, मद्रास) और अन्य प्राधिकरण कार्यरत थे। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, इन संस्थानों को बंद करने से न्यायिक और प्रशासनिक अराजकता हो सकती थी। उदाहरण: कलकत्ता उच्च न्यायालय की निरंतरता। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान अब मुख्य रूप से ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि उच्च न्यायालय और अन्य प्राधिकरण अब संविधान के तहत पूरी तरह कार्यरत हैं।
अनुच्छेद 375 के प्रमुख तत्व
न्यायालयों की निरंतरता: संविधान लागू होने के समय मौजूद उच्च न्यायालय और अन्य न्यायालय अपने कार्य और शक्तियाँ संविधान के अधीन जारी रखेंगे। उदाहरण: बंबई उच्च न्यायालय का संचालन।
प्रशासनिक प्राधिकरण: अन्य प्राधिकरण और अधिकारी (जैसे, प्रशासनिक निकाय) भी अपने कार्य संविधान के अधीन जारी रखेंगे। उदाहरण: ब्रिटिश काल के प्रशासनिक निकाय।
संविधान के अधीन: सभी कार्यवाहियाँ और शक्तियाँ संविधान के प्रावधानों के अधीन होंगी। यदि कोई कार्यवाही या शक्ति संविधान के विपरीत है, तो उसे अनुच्छेद 13 के तहत शून्य माना जाएगा।
न्यायिक समीक्षा: इन न्यायालयों या प्राधिकरणों के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: न्यायिक निरंतरता: स्वतंत्रता के बाद न्यायिक व्यवस्था। प्रशासनिक स्थिरता: प्राधिकरणों का संचालन। संवैधानिक अनुपालन: संविधान के साथ सामंजस्य। राष्ट्रीय एकीकरण: एकीकृत न्यायिक ढांचा।
प्रमुख विशेषताएँ: निरंतरता: न्यायालय और प्राधिकरण। अधीनता: संविधान के प्रावधान। शक्तियाँ: कार्यों का निष्पादन। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: उच्च न्यायालयों की निरंतरता। 1950-56: राज्यों के पुनर्गठन के बाद नए उच्च न्यायालय। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 214: उच्च न्यायालयों की स्थापना। अनुच्छेद 372: मौजूदा कानूनों की निरंतरता। अनुच्छेद 374: संघीय न्यायालय।
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