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Article 371 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 15:29:19
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371
अनुच्छेद 371 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह महाराष्ट्र और गुजरात के लिए विशेष उपबंध (Special provision with respect to the States of Maharashtra and Gujarat) से संबंधित है। यह प्रावधान इन राज्यों के कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से विदर्भ, मराठवाडा, और कच्छ, के विकास और समान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
(2) इन क्षेत्रों के लिए संसाधनों का समान वितरण और तकनीकी, औद्योगिक, और व्यावसायिक शिक्षा में अवसर सुनिश्चित किए जाएँ।
(3) इन क्षेत्रों के निवासियों को राज्य की लोक सेवाओं में समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए।
उद्देश्य: अनुच्छेद 371 का उद्देश्य महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ क्षेत्रों (विशेष रूप से विदर्भ, मराठवाडा, सौराष्ट्र, और कच्छ) में विकास, संसाधनों का समान वितरण, और लोक सेवाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और इन क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया। इसका लक्ष्य क्षेत्रीय समानता, राष्ट्रीय एकीकरण, और संघीय ढांचे में संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 371 को 7वें संवैधानिक संशोधन (1956) के तहत जोड़ा गया, जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ। 1960 में बंबई राज्य को भाषाई आधार पर महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजित किया गया। भारतीय संदर्भ: विदर्भ, मराठवाडा (महाराष्ट्र), और सौराष्ट्र, कच्छ (गुजरात) जैसे क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से रियासतों या कम विकसित क्षेत्रों का हिस्सा थे। इन क्षेत्रों में विकास की कमी और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए विशेष उपबंध की आवश्यकता थी। उदाहरण: विदर्भ में विकास बोर्ड की स्थापना। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान आज भी इन क्षेत्रों में विकास और समानता सुनिश्चित करने के लिए प्रासंगिक है, विशेष रूप से विदर्भ जैसे क्षेत्रों में, जहाँ अलग राज्य की माँग उठती रही है।
अनुच्छेद 371 के प्रमुख तत्व
विकास बोर्ड: राष्ट्रपति के आदेश से महाराष्ट्र और गुजरात में विकास बोर्ड स्थापित किए जा सकते हैं। इन बोर्डों का उद्देश्य विदर्भ, मराठवाडा, सौराष्ट्र, और कच्छ जैसे क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना है। उदाहरण: विदर्भ विकास बोर्ड।
संसाधनों का समान वितरण: इन क्षेत्रों में संसाधनों (जैसे, धन, बुनियादी ढांचा) का समान वितरण सुनिश्चित करना। उदाहरण: मराठवाडा में सिंचाई परियोजनाएँ।
लोक सेवाओं में प्रतिनिधित्व: इन क्षेत्रों के निवासियों को राज्य की लोक सेवाओं (जैसे, सरकारी नौकरियाँ) में समुचित प्रतिनिधित्व देना। उदाहरण: कच्छ के निवासियों के लिए गुजरात में नौकरियों में प्राथमिकता।
न्यायिक समीक्षा: राष्ट्रपति के आदेश और विकास बोर्डों के कार्यों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: क्षेत्रीय समानता: कम विकसित क्षेत्रों का विकास। राष्ट्रीय एकीकरण: क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय। प्रशासनिक सुगमता: विकास बोर्डों के माध्यम से कार्यान्वयन।
प्रमुख विशेषताएँ: विकास बोर्ड: क्षेत्रीय विकास। संसाधन: समान वितरण। प्रतिनिधित्व: लोक सेवाएँ। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1960: बंबई राज्य का विभाजन और विकास बोर्डों की स्थापना। 1994: विदर्भ विकास बोर्ड की स्थापना। 2025 स्थिति: विदर्भ में अलग राज्य की माँग और विकास बोर्ड की भूमिका।
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