Article 369 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 15:25:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 369
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 369
अनुच्छेद 369 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह कुछ राज्यों में व्यापार और वाणिज्य के लिए अस्थायी उपबंध (Temporary power to Parliament to make laws with respect to certain matters in the State List as if they were matters in the Concurrent List) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को कुछ राज्यों के लिए राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अस्थायी शक्ति देता है, जैसे कि वे समवर्ती सूची के विषय हों।
"संविधान के लागू होने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के लिए, संसद को कुछ राज्यों (विशेष रूप से पंजाब और अन्य पुनर्गठित राज्यों) के लिए राज्य सूची के विषयों, जैसे व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण, पर कानून बनाने की शक्ति होगी, जैसे कि वे समवर्ती सूची के विषय हों।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 369 का उद्देश्य स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में कुछ राज्यों (विशेष रूप से पुनर्गठित राज्यों) में आर्थिक स्थिरता और प्रशासनिक समन्वय सुनिश्चित करने के लिए संसद को अस्थायी रूप से राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति देना था। यह प्रावधान व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति, और वितरण जैसे क्षेत्रों में केंद्र को नियंत्रण प्रदान करता था। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय एकीकरण, आर्थिक स्थिरता, और संघीय ढांचे में समन्वय को बढ़ावा देना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 369 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियों, जैसे रियासतों का विलय और राज्यों का पुनर्गठन (विशेष रूप से 1956 में), को ध्यान में रखकर बनाया गया। भारतीय संदर्भ: यह प्रावधान पंजाब और अन्य पुनर्गठित राज्यों के लिए विशेष रूप से लागू था, जहाँ केंद्र को आर्थिक और प्रशासनिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त शक्तियों की आवश्यकता थी। उदाहरण: 1950-55 के दौरान पंजाब में व्यापार और आपूर्ति पर केंद्र के कानून। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान अब अप्रासंगिक है, क्योंकि इसकी अस्थायी अवधि (1950-1955) समाप्त हो चुकी है। हालांकि, यह ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 369 के प्रमुख तत्व
अस्थायी शक्ति: संसद को पांच वर्ष (1950-1955) के लिए राज्य सूची के कुछ विषयों (जैसे, व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति, वितरण) पर कानून बनाने की शक्ति दी गई थी। इन विषयों को समवर्ती सूची के रूप में माना गया। उदाहरण: पंजाब में खाद्य आपूर्ति पर केंद्र का नियंत्रण।
लक्षित राज्य: यह प्रावधान विशेष रूप से कुछ राज्यों (जैसे, पंजाब) पर लागू था, जो स्वतंत्रता के बाद पुनर्गठन या विलय की प्रक्रिया में थे।
संघीय ढांचा: यह प्रावधान केंद्र को अस्थायी रूप से राज्य सूची के विषयों पर शक्ति देता था, जो सामान्यतः राज्यों के अधिकार क्षेत्र में होते हैं। यह स्वतंत्रता के बाद के संक्रमणकाल में केंद्र-राज्य समन्वय को दर्शाता है।
न्यायिक समीक्षा: इस प्रावधान के तहत बनाए गए कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती थी, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों।
महत्व: आर्थिक स्थिरता: स्वतंत्रता के बाद शुरुआती वर्षों में नियंत्रण। राष्ट्रीय एकीकरण: पुनर्गठित राज्यों में समन्वय। संघीय ढांचा: केंद्र की अस्थायी शक्ति। ऐतिहासिक प्रासंगिकता: संविधान का अस्थायी उपबंध।
प्रमुख विशेषताएँ: शक्ति: संसद को अस्थायी विधायी अधिकार। अवधि: 1950-1955। विषय: व्यापार, वाणिज्य, आपूर्ति। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-55: पंजाब और अन्य राज्यों में केंद्र के कानून। 1956: राज्यों के पुनर्गठन के बाद प्रावधान अप्रासंगिक। 2025 स्थिति: ऐतिहासिक महत्व, कोई सक्रिय उपयोग नहीं।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियाँ। सातवीं अनुसूची: राज्य और समवर्ती सूची। अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन।
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jp Singh
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