Article 368 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 15:22:58
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368
अनुच्छेद 368 भारतीय संविधान के भाग XX (संशोधन) में आता है। यह संविधान में संशोधन की प्रक्रिया (Power of Parliament to amend the Constitution and procedure therefor) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति और इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया प्रदान करता है।
"(1) संसद अपनी संविधान-प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत संविधान में संशोधन कर सकती है, जिसमें संशोधन विधेयक को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा।
(2) कुछ विशेष प्रावधानों (जैसे, संघीय ढांचा, अनुसूचियाँ) के संशोधन के लिए, कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं का अनुमोदन आवश्यक है।
(3) संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करना होगा, और वह इसे अस्वीकार नहीं कर सकता।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 368 का उद्देश्य संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देना है, ताकि यह समय और समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप बना रहे। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि संशोधन लोकतांत्रिक, पारदर्शी, और संघीय ढांचे के अनुरूप हों। इसका लक्ष्य संवैधानिक लचीलापन, लोकतांत्रिक शासन, और संघीय संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 368 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह संविधान को एक जीवंत दस्तावेज के रूप में स्थापित करता है, जो संशोधन के माध्यम से विकसित हो सकता है। संशोधन: 24वां संशोधन (1971): संसद की संशोधन शक्ति को स्पष्ट किया। 42वां संशोधन (1976): संशोधन प्रक्रिया को और मजबूत किया। 44वां संशोधन (1978): कुछ प्रावधानों को संतुलित किया।
भारतीय संदर्भ: अब तक 100 से अधिक संवैधानिक संशोधन हो चुके हैं, जैसे 101वां संशोधन (2016) जो GST लागू करता है। उदाहरण: 1वां संशोधन (1951): मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध। 42वां संशोधन (1976): व्यापक संशोधन (विवादास्पद)। प्रासंगिकता (2025): डिजिटल युग, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, और वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में संविधान को अपडेट करने की आवश्यकता।
अनुच्छेद 368 के प्रमुख तत्व
संसद की शक्ति: संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने की शक्ति है। संशोधन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा। उदाहरण: 101वां संशोधन (GST)।
विशेष प्रावधानों के लिए अनुमोदन: कुछ प्रावधानों (जैसे, संघीय ढांचा, अनुसूचियाँ, अनुच्छेद 368 स्वयं) के संशोधन के लिए कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं का अनुमोदन आवसंसद की शक्ति: संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने की शक्ति है। संशोधन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा। उदाहरण: 101वां संशोधन (GST)। श्यक है। उदाहरण: 7वां संशोधन (1956): राज्यों का पुनर्गठन।
राष्ट्रपति की स्वीकृति: संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करना होगा। राष्ट्रपति इसे अस्वीकार नहीं कर सकता। उदाहरण: सभी संशोधन विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति।
मूल ढांचा सिद्धांत: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संसद संविधान के मूल ढांचे (जैसे, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढांचा) को नष्ट नहीं कर सकती। यह संसद की संशोधन शक्ति पर एक महत्वपूर्ण सीमा है। उदाहरण: मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)।
न्यायिक समीक्षा: संशोधन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वह मूल ढांचे का उल्लंघन करता हो। उदाहरण: 42वां संशोधन के कुछ हिस्सों को रद्द करना।
महत्व: संवैधानिक लचीलापन: समय के साथ संशोधन। लोकतांत्रिक शासन: संसद की शक्ति। संघीय संतुलन: राज्यों की सहमति। न्यायिक निगरानी: मूल ढांचे की रक्षा।
प्रमुख विशेषताएँ: शक्ति: संसद का संशोधन। प्रक्रिया: दो-तिहाई बहुमत। सहमति: राज्यों का अनुमोदन। सीमा: मूल ढांचा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1951: 1वां संशोधन (मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध)। 1971: 24वां संशोधन (संसद की शक्ति स्पष्ट)। 1973: केशवानंद भारती मामले में मूल ढांचा सिद्धांत। 2016: 101वां संशोधन (GST)। 2025 स्थिति: कोई नया संशोधन नहीं, लेकिन संभावनाएँ बरकरार।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 13: कानूनों की वैधता। अनुच्छेद 245: संसद की विधायी शक्ति। अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन।
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jp Singh
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