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Article 361 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 14:50:01
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361
अनुच्छेद 361 भारतीय संविधान के भाग XIX (विविध) में आता है। यह राष्ट्रपति, राज्यपाल, और राजप्रमुखों को संरक्षण (Protection of President and Governors and Rajpramukhs) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए कानूनी और आपराधिक कार्यवाहियों से संरक्षण प्रदान करता है।
"(1) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल अपने कार्यकाल के दौरान किसी न्यायालय में अपने कृत्यों के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।
(2) उनके कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी और न ही उन्हें गिरफ्तार या कारावास किया जाएगा।
(3) उनके खिलाफ कोई दीवानी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी, सिवाय इसके कि 60 दिन की पूर्व सूचना दी जाए।
(4) यह संरक्षण उनके निजी कृत्यों तक विस्तारित नहीं होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 361 का उद्देश्य राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान कानूनी और आपराधिक कार्यवाहियों से संरक्षण प्रदान करना है। यह सुनिश्चित करता है कि ये उच्च पदाधिकारी बिना किसी कानूनी बाधा के अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन कर सकें। इसका लक्ष्य संवैधानिक शासन, संस्थागत स्वतंत्रता, और लोकतांत्रिक स्थिरता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 361 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह ब्रिटिश संवैधानिक परंपराओं से प्रेरित है, जहाँ राष्ट्राध्यक्ष को कुछ विशेषाधिकार दिए जाते हैं। भारतीय संदर्भ: यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद की आवश्यकता को दर्शाता है, जब राष्ट्रपति और राज्यपालों को संवैधानिक शासन में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। उदाहरण: राष्ट्रपति और राज्यपालों के कार्यों पर कोर्ट में सीमित चुनौतियाँ। प्रासंगिकता (2025): डिजिटल युग और जटिल शासन प्रणाली में यह प्रावधान उच्च पदाधिकारियों को स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रदान करता है।
अनुच्छेद 361 के प्रमुख तत्व
आधिकारिक कृत्यों का संरक्षण: राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने आधिकारिक कृत्यों के लिए किसी न्यायालय में उत्तरदायी नहीं होंगे। यह संरक्षण उनके संवैधानिक कर्तव्यों (जैसे, विधेयकों पर हस्ताक्षर, उद्घोषणाएँ) पर लागू होता है। उदाहरण: राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उद्घोषणा पर कोई मुकदमा नहीं।
आपराधिक कार्यवाही से संरक्षण: उनके कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती और न ही उन्हें गिरफ्तार या कारावास किया जा सकता है। उदाहरण: राज्यपाल के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं।
दीवानी कार्यवाही: उनके खिलाफ दीवानी कार्यवाही शुरू करने से पहले 60 दिन की पूर्व सूचना देना आवश्यक है। यह आधिकारिक कृत्यों पर लागू होता है।
निजी कृत्य: यह संरक्षण उनके निजी कृत्यों पर लागू नहीं होता। उदाहरण: निजी संपत्ति विवाद में मुकदमा संभव।
न्यायिक समीक्षा: हालांकि अनुच्छेद 361 संरक्षण प्रदान करता है, राष्ट्रपति और राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक समीक्षा संभव है, यदि वे संवैधानिक सीमाओं से बाहर हों। बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
महत्व: संवैधानिक शासन: उच्च पदाधिकारियों की स्वतंत्रता। लोकतांत्रिक स्थिरता: बिना बाधा के कर्तव्य निर्वहन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में समन्वय। न्यायिक संतुलन: सीमित समीक्षा की संभावना।
प्रमुख विशेषताएँ: संरक्षण: आधिकारिक कृत्यों पर। प्रतिबंध: आपराधिक और दीवानी कार्यवाही। अपवाद: निजी कृत्य। निगरानी: सीमित न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1975: आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति के कार्यों पर कोई मुकदमा नहीं। 1994: बोम्मई मामले में राज्यपाल के कार्यों की समीक्षा। 2025 स्थिति: कोई विवादास्पद मामला नहीं।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन। अनुच्छेद 74: राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह। अनुच्छेद 163: राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह।
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