Article 360 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 14:47:59
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360
अनुच्छेद 360 भारतीय संविधान के भाग XVIII (आपात उपबंध) में आता है। यह वित्तीय आपातकाल (Provisions as to financial emergency) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा करने की शक्ति देता है, जब भारत की वित्तीय स्थिरता या साख संकट में हो।
"(1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे भारत या उसके किसी भाग की वित्तीय स्थिरता या साख संकट में है, तो वह इसकी उद्घोषणा कर सकता है।
(2) ऐसी उद्घोषणा के दौरान, केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय मामलों में निर्देश दे सकती है और वित्तीय उपाय लागू कर सकती है।
(3) उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा दो महीने के भीतर अनुमोदित करना होगा।
(4) वित्तीय आपातकाल की अवधि दो महीने होगी, जिसे संसद द्वारा बढ़ाया जा सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 360 का उद्देश्य वित्तीय आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार को असाधारण शक्तियाँ प्रदान करना है, ताकि भारत की वित्तीय स्थिरता और साख को बनाए रखा जा सके। यह केंद्र को राज्यों और सार्वजनिक संस्थानों पर वित्तीय नियंत्रण लागू करने और संसाधनों का पुनर्वितरण करने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य वित्तीय स्थिरता, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, और संघीय ढांचे में समन्वय सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 360 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह स्वतंत्रता के बाद की आर्थिक चुनौतियों (जैसे, युद्ध, वैश्विक मंदी) को ध्यान में रखकर बनाया गया। उपयोग: भारत में अब तक वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा कभी नहीं की गई है। उदाहरण: 1991 की आर्थिक मंदी में इसका उपयोग नहीं हुआ, क्योंकि अन्य उपायों से स्थिति संभाली गई।
44वां संवैधानिक संशोधन (1978): इस संशोधन ने आपातकालीन शक्तियों पर संसदीय और न्यायिक निगरानी को मजबूत किया, जो अनुच्छेद 360 पर भी लागू होता है। प्रासंगिकता (2025): वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और डिजिटल युग में यह प्रावधान केंद्र को संकटकाल में वित्तीय प्रबंधन की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 360 के प्रमुख तत्व
राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह भारत या उसके किसी भाग की वित्तीय स्थिरता या साख के संकट में वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा करे। उदाहरण: गंभीर आर्थिक मंदी या विदेशी मुद्रा भंडार की कमी।
केंद्र की शक्तियाँ: वित्तीय आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार: राज्यों को वित्तीय मामलों में निर्देश दे सकती है। सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कटौती कर सकती है। वित्तीय संसाधनों का पुनर्वितरण कर सकती है। उदाहरण: केंद्र द्वारा राज्यों के बजट पर नियंत्रण।
संसदीय अनुमोदन: उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) द्वारा दो महीने के भीतर अनुमोदित करना आवश्यक है। यदि अनुमोदन नहीं मिलता, तो उद्घोषणा समाप्त हो जाती है।
अवधि: वित्तीय आपातकाल की अवधि दो महीने होती है, जिसे संसद द्वारा विशेष बहुमत से बढ़ाया जा सकता है। न्यायिक समीक्षा: उद्घोषणा और केंद्र के कार्यों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे मनमानी या असंवैधानिक हों। उदाहरण: मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)
महत्व: वित्तीय स्थिरता: आर्थिक संकट में संसाधन प्रबंधन। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था: केंद्र द्वारा समन्वित नीतियाँ। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य वित्तीय समन्वय। लोकतांत्रिक संतुलन: संसदीय और न्यायिक निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: उद्घोषणा: वित्तीय संकट। शक्ति: केंद्र का नियंत्रण। अवधि: दो महीने, विस्तार योग्य। निगरानी: संसद और कोर्ट।
ऐतिहासिक उदाहरण: उपयोग: भारत में वित्तीय आपातकाल कभी लागू नहीं हुआ। 1991: आर्थिक संकट के बावजूद इसका उपयोग नहीं हुआ। 2025 स्थिति: कोई वित्तीय आपातकाल लागू नहीं।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 352: राष्ट्रीय आपातकाल। अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन। अनुच्छेद 268-279: राजस्व वितरण।
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