Article 357 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-07 14:42:17
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 357
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 357
अनुच्छेद 357 भारतीय संविधान के भाग XVIII (आपात उपबंध) में आता है। यह राष्ट्रपति शासन के दौरान विधायी शक्तियों का प्रयोग (Exercise of legislative powers under Proclamation issued under Article 356) से संबंधित है। यह प्रावधान अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राज्य की विधायी शक्तियों को संसद या उसके प्राधिकार के अधीन करने की व्यवस्था करता है।
"(1) जब अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में उद्घोषणा लागू हो, तो उस राज्य की विधानसभा की विधायी शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोग की जाएंगी।
(2) संसद द्वारा बनाए गए ऐसे कानून उद्घोषणा समाप्त होने के बाद भी प्रभावी रह सकते हैं, जैसा संसद निर्धारित करे।
(3) राष्ट्रपति राज्यपाल को कार्यपालिका शक्तियाँ सौंप सकता है, जो संसद के निर्देशों के अधीन होंगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 357 का उद्देश्य राष्ट्रपति शासन के दौरान किसी राज्य की विधायी शक्तियों को संसद के नियंत्रण में लाना है, ताकि संवैधानिक तंत्र की विफलता के समय शासन व्यवस्था बनी रहे। यह केंद्र को राज्य के लिए आवश्यक कानून बनाने और प्रशासन चलाने की शक्ति देता है। इसका लक्ष्य संवैधानिक शासन, राष्ट्रीय एकता, और संघीय ढांचे में समन्वय सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 357 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक और प्रशासनिक अस्थिरता को ध्यान में रखकर बनाया गया, जब राज्यों में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो सकते थे। 44वां संवैधानिक संशोधन (1978): 1975 के आपातकाल और अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के बाद, इस संशोधन ने राष्ट्रपति शासन की अवधि और शक्तियों पर नियंत्रण को मजबूत किया, जो अनुच्छेद 357 पर भी लागू होता है। भारतीय संदर्भ: अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद ने कई बार राज्यों के लिए कानून बनाए।
उदाहरण: 1980 के दशक में पंजाब में राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद द्वारा सुरक्षा कानून। प्रासंगिकता (2025): डिजिटल युग और राजनीतिक स्थिरता के संदर्भ में, यह प्रावधान संकटकाल में केंद्र की भूमिका को मजबूत करता है, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरती जाती है।
अनुच्छेद 357 के प्रमुख तत्व
विधायी शक्तियाँ: राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की विधानसभा की शक्तियाँ संसद या उसके द्वारा प्राधिकृत निकाय (जैसे, राष्ट्रपति) के पास चली जाती हैं। संसद राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है। उदाहरण: 1992 में उत्तर प्रदेश में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद संसद द्वारा कानून।
कानूनों की अवधि: संसद द्वारा बनाए गए कानून राष्ट्रपति शासन समाप्त होने के बाद भी प्रभावी रह सकते हैं, जैसा संसद निर्धारित करे। यह सुनिश्चित करता है कि संकटकाल में बनाए गए कानूनों का प्रभाव दीर्घकालिक हो सकता है। उदाहरण: पंजाब में आतंकवाद विरोधी कानून।
कार्यपालिका शक्तियाँ: राष्ट्रपति राज्यपाल को कार्यपालिका शक्तियाँ सौंप सकता है, जो संसद के निर्देशों के अधीन होती हैं। उदाहरण: राज्यपाल द्वारा केंद्र के निर्देश पर प्रशासन।
न्यायिक समीक्षा: संसद के कानूनों और राष्ट्रपति के आदेशों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे मनमानी या असंवैधानिक हों। बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)।
महत्व: संवैधानिक शासन: संकटकाल में शासन व्यवस्था। राष्ट्रीय एकता: केंद्र द्वारा समन्वित प्रशासन। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय। लोकतांत्रिक संतुलन: संसदीय और न्यायिक निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: शक्ति: संसद की विधायी। अवधि: कानूनों की निरंतरता। प्रशासन: राज्यपाल के माध्यम से। निगरानी: संसद और कोर्ट।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1959: केरल में संसद द्वारा कानून। 1992: उत्तर प्रदेश में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद। 2016: अरुणाचल प्रदेश में (न्यायिक समीक्षा द्वारा रद्द)। 2025 स्थिति: कोई राष्ट्रपति शासन लागू नहीं।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन। अनुच्छेद 355: संघ का कर्तव्य। अनुच्छेद 352: राष्ट्रीय आपातकाल।
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jp Singh
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