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Article 356 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 14:40:29
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356
अनुच्छेद 356 भारतीय संविधान के भाग XVIII (आपात उपबंध) में आता है। यह राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता (Provisions in case of failure of constitutional machinery in States) से संबंधित है, जिसे आमतौर पर राष्ट्रपति शासन के रूप में जाना जाता है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर वहाँ की सरकार को बर्खास्त करने और राज्य के प्रशासन को केंद्र के नियंत्रण में लेने की शक्ति देता है।
"(1) यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार शासन नहीं चलाया जा सकता, तो वह उद्घोषणा कर सकता है।
(2) ऐसी उद्घोषणा के परिणामस्वरूप, राष्ट्रपति राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्तियों को अपने नियंत्रण में ले सकता है।
(3) उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा दो महीने के भीतर अनुमोदित करना होगा।
(4) उद्घोषणा की अवधि छह महीने होगी, जिसे संसद द्वारा अधिकतम तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 356 का उद्देश्य उन परिस्थितियों में केंद्र को हस्तक्षेप करने की शक्ति देना है, जब किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है। यह केंद्र को राज्य सरकार को बर्खास्त करने, विधानसभा को निलंबित करने, और प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य संवैधानिक शासन, राष्ट्रीय एकता, और संघीय ढांचे में स्थिरता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 356 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक अस्थिरता, जैसे साम्प्रदायिक दंगे और क्षेत्रीय अशांति, को ध्यान में रखकर बनाया गया। 44वां संवैधानिक संशोधन (1978): 1975 के आपातकाल और अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के बाद, इस संशोधन ने राष्ट्रपति शासन की अवधि को सीमित किया और संसदीय निगरानी को मजबूत किया। भारतीय संदर्भ: अनुच्छेद 356 का उपयोग 1950 से अब तक 100 से अधिक बार हो चुका है, जिसमें कई बार राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप लगे। उदाहरण: 1959 में केरल में पहली बार राष्ट्रपति शासन। 1992 में उत्तर प्रदेश में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद।
प्रासंगिकता (2025): डिजिटल युग और भू-राजनीतिक तनावों में यह प्रावधान स्थिरता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरती जाती है।
अनुच्छेद 356 के प्रमुख तत्व
राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति को राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्य स्रोतों के आधार पर यह तय करने का अधिकार है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है। वह उद्घोषणा कर सकता है, जिसके तहत राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्तियाँ केंद्र के नियंत्रण में आ जाती हैं। उदाहरण: 1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद के दौरान राष्ट्रपति शासन।
संसदीय अनुमोदन: उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) द्वारा दो महीने के भीतर अनुमोदित करना आवश्यक है। उदाहरण: 1992 में उत्तर प्रदेश में संसद द्वारा अनुमोदन।
अवधि: राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने होती है, जिसे संसद द्वारा अधिकतम तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। प्रत्येक विस्तार के लिए संसदीय अनुमोदन आवश्यक है। 44वां संशोधन ने अवधि को सीमित किया।
न्यायिक समीक्षा: राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि यह मनमानी, असंवैधानिक, या राजनीति से प्रेरित हो। बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) ने दुरुपयोग पर नियंत्रण स्थापित किया।
महत्व: संवैधानिक शासन: राज्यों में स्थिरता और संवैधानिक व्यवस्था। राष्ट्रीय एकता: केंद्र द्वारा संकट प्रबंधन। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय। लोकतांत्रिक संतुलन: संसदीय और न्यायिक निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: उद्घोषणा: संवैधानिक तंत्र की विफलता। शक्ति: केंद्र का नियंत्रण। अवधि: छह महीने, विस्तार योग्य। निगरानी: संसद और कोर्ट।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1959: केरल में पहली बार राष्ट्रपति शासन। 1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में। 2016: अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में (न्यायिक समीक्षा द्वारा रद्द)। 2025 स्थिति: कोई राष्ट्रपति शासन लागू नहीं, लेकिन सतर्कता।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 355: संघ का कर्तव्य। अनुच्छेद 357: राष्ट्रपति शासन के दौरान विधायी शक्तियाँ। अनुच्छेद 352: राष्ट्रीय आपातकाल।
Conclusion
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