Article 348 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 18:22:04
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 348
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 348
न्यायालयों, और संसद द्वारा पारित अधिनियमों और विधेयकों के लिए भाषा के उपयोग को नियंत्रित करता है।
"(1) जब तक संसद अन्यथा कानून द्वारा उपबंध न करे, तब तक—
(क) उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी में होंगी;
(ख) संसद के अधिनियमों, विधेयकों, और केंद्र सरकार के नियमों और आदेशों का प्रामाणिक पाठ अंग्रेजी में होगा।
(2) खंड (1)(क) के उपबंधों के बावजूद, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की सहमति से, उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी या उस राज्य की राजभाषा के उपयोग को प्राधिकृत कर सकता है।
(3) खंड (1)(ख) के उपबंधों के बावजूद, संसद कानून द्वारा हिंदी या किसी अन्य भाषा में अधिनियमों और विधेयकों का प्रामाणिक पाठ उपलब्ध कराने का उपबंध कर सकती है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 348 का उद्देश्य उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, और संसद के अधिनियमों और विधेयकों के लिए भाषा नीति को निर्धारित करना है। यह मुख्य रूप से अंग्रेजी को प्राथमिकता देता है ताकि कानूनी और प्रशासनिक कार्यवाहियों में एकरूपता और स्पष्टता बनी रहे। यह हिंदी और अन्य भाषाओं के उपयोग की संभावना को भी खुला रखता है, जिससे भाषाई विविधता और समावेश को बढ़ावा मिलता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 348 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी के व्यापक उपयोग को ध्यान में रखते हुए बनाया गया, जो विशेष रूप से कानूनी और न्यायिक कार्यवाहियों में प्रचलित थी। आधिकारिक भाषा अधिनियम, 1963: इसने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के उपयोग को अनिश्चितकाल तक जारी रखने की अनुमति दी, साथ ही हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित किया। भारतीय संदर्भ: भारत की बहुभाषी प्रकृति के कारण, अंग्रेजी को कानूनी और तकनीकी कार्यों में प्राथमिकता दी गई, जबकि हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को धीरे-धीरे शामिल करने की व्यवस्था की गई।
प्रासंगिकता (2025): डिजिटल युग में, अंग्रेजी कानूनी कार्यवाहियों में प्रमुख बनी हुई है, लेकिन हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग बढ़ रहा है, विशेष रूप से निचली अदालतों और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर।
अनुच्छेद 348 के प्रमुख तत्व
खंड (1): अंग्रेजी का उपयोग: उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी में होंगी, जब तक कि संसद अन्यथा कानून द्वारा उपबंध न करे। संसद के अधिनियम, विधेयक, और केंद्र सरकार के नियम और आदेश का प्रामाणिक पाठ अंग्रेजी में होगा। उदाहरण: उच्चतम न्यायालय की कार्यवाहियाँ और भारतीय दंड संहिता का अंग्रेजी पाठ।
खंड (2): हिंदी या क्षेत्रीय भाषा: किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की सहमति से, उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी या उस राज्य की राजभाषा के उपयोग को प्राधिकृत कर सकता है। उदाहरण: उत्तर प्रदेश और बिहार के उच्च न्यायालयों में हिंदी का उपयोग।
खंड (3): संसद की शक्ति: संसद कानून द्वारा अधिनियमों और विधेयकों का प्रामाणिक पाठ हिंदी या अन्य भाषाओं में उपलब्ध करा सकती है। उदाहरण: संविधान और केंद्रीय अधिनियमों के हिंदी अनुवाद।
न्यायिक समीक्षा: भाषा नीति से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि भाषा नीति संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करे। उदाहरण: हिंदी या क्षेत्रीय भाषा के उपयोग पर याचिकाएँ।
महत्व: कानूनी एकरूपता: अंग्रेजी के उपयोग से राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी स्पष्टता। भाषाई समावेश: हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। प्रशासनिक दक्षता: कानूनी कार्यवाहियों में निरंतरता।
प्रमुख विशेषताएँ: प्राथमिक भाषा: अंग्रेजी। सहायक भाषा: हिंदी या क्षेत्रीय भाषाएँ। शक्ति: संसद और राज्यपाल (राष्ट्रपति की सहमति से)। न्यायिक निगरानी: नीति की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी की स्थापना। 1963: अनुच्छेद 345: राज्यों की राजभाषा। अनुच्छेद 351: हिंदी का विकास। आठवीं अनुसूची: 22 अनुसूचित भाषाएँ।
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