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Article 347 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 18:20:36
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 347

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 347
अनुच्छेद 347 भारतीय संविधान के भाग XVII (राजभाषा) में आता है। यह किसी राज्य में विशेष भाषा के
उद्देश्य: अनुच्छेद 347 का उद्देश्य किसी राज्य की जनसंख्या के एक हिस्से द्वारा बोली जाने वाली भाषा को विशेष मान्यता देना और उसके उपयोग को बढ़ावा देना है। यह भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने और अल्पसंख्यक भाषाई समुदायों के हितों की रक्षा करने का प्रावधान करता है। इसका लक्ष्य भाषाई समावेश, सांस्कृतिक संरक्षण, और संघीय ढांचे में संतुलन सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 347 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत की बहुभाषी प्रकृति को ध्यान में रखकर बनाया गया, जहाँ कई राज्यों में अल्पसंख्यक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारतीय संदर्भ: भारत में 22 अनुसूचित भाषाएँ (आठवीं अनुसूची में) और सैकड़ों क्षेत्रीय और अल्पसंख्यक भाषाएँ हैं। अनुच्छेद 347 ने उन भाषाओं को मान्यता देने का प्रावधान किया, जो किसी राज्य की आधिकारिक राजभाषा नहीं हैं, लेकिन जनसंख्या के एक हिस्से द्वारा बोली जाती हैं। उदाहरण:गोवा में कोंकणी और मराठी को विशेष मान्यता।
प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान डिजिटल युग में अल्पसंख्यक भाषाओं के संरक्षण और उनके उपयोग को बढ़ावा देता है, विशेष रूप से शिक्षा और स्थानीय प्रशासन में।
अनुच्छेद 347 के प्रमुख तत्व
राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति किसी राज्य की जनसंख्या के पर्याप्त हिस्से की माँग पर विचार कर सकता है। वह उस भाषा को राज्य के किसी भाग या पूरे में शासकीय प्रयोजनों के लिए उपयोग करने का निर्देश दे सकता है। उदाहरण: मणिपुर में मणिपुरी (मैतेई) को विशेष मान्यता।
जनसंख्या की माँग: यह प्रावधान जनसंख्या के एक हिस्से की माँग पर आधारित है, जो भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों को मान्यता देता है। उदाहरण: कर्नाटक में तुलु भाषा की मान्यता की माँग।
न्यायिक समीक्षा: राष्ट्रपति के निर्देशों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि निर्देश संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14 और 29) का पालन करें। उदाहरण: भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर याचिकाएँ।
महत्व: भाषाई समावेश: अल्पसंख्यक भाषाओं को मान्यता और संरक्षण। सांस्कृतिक संरक्षण: भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। प्रशासनिक दक्षता: स्थानीय भाषाओं में प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: मान्यता: अल्पसंख्यक भाषाओं को। निर्देश: राष्ट्रपति द्वारा। उपयोग: शासकीय प्रयोजनों के लिए। न्यायिक निगरानी: निर्देशों की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1956: भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन, जिसने अल्पसंख्यक भाषाओं की मान्यता को बढ़ावा दिया। 1992: कोंकणी, मणिपुरी, और नेपाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, जो अनुच्छेद 347 के तहत माँगों से प्रेरित था। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में अल्पसंख्यक भाषाओं का उपयोग।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 29: सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार। अनुच्छेद 343: संघ की राजभाषा। अनुच्छेद 345: राज्यों की राजभाषा। अनुच्छेद 351: हिंदी का विकास। आठवीं अनुसूची: 22 अनुसूचित भाषाएँ।
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