Article 345 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 18:16:18
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 345
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 345
अनुच्छेद 345 भारतीय संविधान के भाग XVII (राजभाषा) में आता है। यह राज्यों की राजभाषा (Official language or languages of a State) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडलों को अपने राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए एक या अधिक भाषाओं को राजभाषा के रूप में अपनाने की शक्ति देता है।
"किसी राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, उस राज्य में प्रचलित किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए राजभाषा के रूप में अंगीकृत कर सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 345 का उद्देश्य राज्यों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं या हिंदी को शासकीय कार्यों के लिए राजभाषा के रूप में अपनाने की स्वायत्तता प्रदान करना है। यह भारत की बहुभाषी प्रकृति को मान्यता देता है और राज्यों को उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के अनुरूप राजभाषा चुनने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में भाषाई विविधता, सामाजिक समावेश, और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 345 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत की भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए बनाया गया, क्योंकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग भाषाएँ और बोलियाँ प्रचलित हैं। भारतीय संदर्भ: भारत में 22 अनुसूचित भाषाएँ (आठवीं अनुसूची में) और सैकड़ों क्षेत्रीय भाषाएँ हैं। अनुच्छेद 345 ने राज्यों को अपनी भाषाई पहचान को बनाए रखने और प्रशासन में स्थानीय भाषाओं का उपयोग करने की स्वतंत्रता दी। उदाहरण:तमिलनाडु में तमिल, महाराष्ट्र में मराठी, और पश्चिम बंगाल में बंगाली को राजभाषा के रूप में अपनाया गया। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान राज्यों में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देता है, विशेष रूप से डिजिटल प्रशासन, शिक्षा, और जनसंचार में।
अनुच्छेद 345 के प्रमुख तत्व
राज्य विधानमंडल की शक्ति: राज्य विधानमंडल कानून बनाकर अपने राज्य में प्रचलित एक या अधिक भाषाओं या हिंदी को शासकीय प्रयोजनों के लिए राजभाषा के रूप में अंगीकृत कर सकता है। यह राज्यों को अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के आधार पर स्वायत्तता देता है। उदाहरण: कर्नाटक ने कन्नड़ को राजभाषा बनाया।
संघीय ढांचा: अनुच्छेद 345 केंद्र और राज्यों के बीच भाषाई संतुलन सुनिश्चित करता है, जहाँ केंद्र हिंदी और अंग्रेजी (अनुच्छेद 343) का उपयोग करता है, जबकि राज्य अपनी भाषाएँ चुन सकते हैं। उदाहरण: तमिलनाडु में तमिल और अंग्रेजी का उपयोग।
न्यायिक समीक्षा: राजभाषा से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि राजभाषा नीति संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करे। उदाहरण: क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग पर याचिकाएँ।
महत्व: भाषाई विविधता: क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना। सांस्कृतिक पहचान: राज्यों की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में भाषाई संतुलन। प्रशासनिक दक्षता: स्थानीय भाषाओं में प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: स्वायत्तता: राज्यों को राजभाषा चुनने की शक्ति। भाषाएँ: क्षेत्रीय भाषाएँ या हिंदी। न्यायिक निगरानी: नीति की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1956: भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन, जिसने क्षेत्रीय भाषाओं को राजभाषा बनाने को बढ़ावा दिया। 1963: आधिकारिक भाषा अधिनियम ने राज्यों में अंग्रेजी के उपयोग को भी समर्थन दिया। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग।
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jp Singh
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