Article 342 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 18:10:33
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342
अनुच्छेद 342 भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes - ST) की अधिसूचना (Scheduled Tribes) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को अनुसूचित जनजातियों की सूची को अधिसूचित करने और संसद को इसे संशोधित करने की शक्ति देता है।
"(1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में, संसद के किसी कानून के अधीन, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों को अनुसूचित जनजातियाँ घोषित कर सकता है, जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुसूचित जनजातियाँ मानी जाएँगी।
(2) संसद, कानून द्वारा, ऐसी सूची में किसी जनजाति या जनजातीय समुदाय को शामिल कर सकती है या उसे बाहर कर सकती है, लेकिन राष्ट्रपति की अधिसूचना को केवल संसद ही संशोधित कर सकती है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 342 का उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों (ST) की पहचान करना और उन्हें संवैधानिक लाभ (जैसे, आरक्षण, वन अधिकार, और अन्य सुरक्षा उपाय) प्रदान करना है। यह आदिवासी समुदायों के लिए सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक समानता सुनिश्चित करता है। इसका लक्ष्य सामाजिक न्याय, समानता, और लोकतांत्रिक समावेश को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 342 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें आदिवासी समुदायों के लिए विशेष प्रावधान थे।
भारतीय संदर्भ: अनुसूचित जनजातियाँ भारत के आदिवासी समुदाय हैं, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित रहे हैं। अनुच्छेद 342 ने इन समुदायों को संवैधानिक सुरक्षा और लाभ प्रदान करने के लिए एक औपचारिक ढांचा स्थापित किया।
प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान ST के लिए शिक्षा, रोजगार, वन अधिकार, और डिजिटल समावेश को सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से वन अधिकार अधिनियम, 2006 के संदर्भ में।
अनुच्छेद 342 के प्रमुख तत्व
खंड (1): राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के लिए सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा अनुसूचित जनजातियों की सूची घोषित कर सकता है। यह सूची संविधान के प्रयोजनों (जैसे, अनुच्छेद 15, 16, 330, 332) के लिए लागू होती है। उदाहरण: अनुसूचित जाति और जनजाति (अधिसूचना) आदेश, 1950।
खंड (2): संसद की शक्ति: संसद कानून द्वारा इस सूची में किसी जनजाति या जनजातीय समुदाय को शामिल या बाहर कर सकती है। राष्ट्रपति की अधिसूचना को केवल संसद ही संशोधित कर सकती है, जिससे यह प्रक्रिया संवैधानिक रूप से सुरक्षित रहती है। उदाहरण: अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976।
न्यायिक समीक्षा: अनुसूचित जनजातियों की सूची से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि अधिसूचना और संशोधन संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करें। उदाहरण: सामता बनाम आंध्र प्रदेश (1997)।
महत्व: सामाजिक न्याय: ST के लिए भेदभाव का निवारण। लोकतांत्रिक समावेश: ST का शिक्षा, रोजगार, और प्रशासन में प्रतिनिधित्व। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। न्यायिक समीक्षा: अधिसूचना की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: अधिसूचना: राष्ट्रपति द्वारा ST की सूची। संशोधन: संसद द्वारा। लाभ: शिक्षा, रोजगार, और वन अधिकार। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: पहली ST अधिसूचना। 1976: ST सूची में संशोधन। 2025 स्थिति: वन अधिकार और डिजिटल समावेश पर जोर।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 338A: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग। अनुच्छेद 335: SC/ST के लिए सेवाएँ। अनुच्छेद 330-332: SC/ST के लिए आरक्षण। पांचवीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन।
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jp Singh
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