Article 338A of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:55:09
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338A
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338A
अनुच्छेद 338A भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) से संबंधित है। यह प्रावधान अनुसूचित जनजातियों (ST) के हितों की रक्षा और उनके सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना और उसके कार्यों को निर्धारित करता है।
"(1) अनुसूचित जनजातियों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग होगा, जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग कहा जाएगा।
(2) आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और अन्य सदस्य होंगे, जिन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करेगा।
(3) आयोग का कर्तव्य होगा कि वह अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक और अन्य कानूनी सुरक्षा उपायों की निगरानी करे, उनकी शिकायतों की जाँच करे, और उनके कल्याण के लिए सिफारिशें करे।
(4) आयोग को अपनी जाँच में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(5) आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करेगा, जो इसे संसद के समक्ष रखेगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 338A का उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों (ST) के सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक विकास को सुनिश्चित करना और उनके खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना करना है। यह आयोग ST के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों (जैसे, अनुच्छेद 15, 16, 330, 332) की निगरानी करता है। इसका लक्ष्य सामाजिक न्याय, समानता, और लोकतांत्रिक समावेश को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 338A को 89वें संवैधानिक संशोधन (2003) द्वारा जोड़ा गया। इससे पहले, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए एक संयुक्त आयोग (अनुच्छेद 338) था, जिसे 65वें संशोधन (1990) ने स्थापित किया था। 89वां संशोधन (2003): SC और ST के लिए अलग-अलग आयोग बनाए गए, क्योंकि दोनों समुदायों की समस्याएँ और आवश्यकताएँ भिन्न थीं। भारतीय संदर्भ: अनुसूचित जनजातियाँ भारत के आदिवासी समुदाय हैं, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित रहे हैं। अनुच्छेद 338A ने उनकी विशिष्ट समस्याओं (जैसे, भूमि अधिकार, वन अधिकार) को संबोधित करने के लिए एक समर्पित तंत्र प्रदान किया।
प्रासंगिकता (2025): यह आयोग ST के लिए शिक्षा, रोजगार, और भूमि-वन अधिकारों में समावेश सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से डिजिटल युग और पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में।
अनुच्छेद 338A के प्रमुख तत्व
आयोग की स्थापना: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करता है। उदाहरण: 2025 में आयोग के अध्यक्ष (वर्तमान जानकारी के आधार पर अपडेट आवश्यक)।
आयोग के कर्तव्य: संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की निगरानी। ST के खिलाफ भेदभाव की शिकायतों की जाँच। उनके कल्याण के लिए नीतियों और योजनाओं पर सिफारिशें। उदाहरण: वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन की निगरानी।
शक्तियाँ: आयोग को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे गवाहों को बुलाना और दस्तावेजों की माँग करना। उदाहरण: भूमि विवादों में जाँच।
रिपोर्ट: आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जो इसे संसद के समक्ष रखता है। उदाहरण: ST के लिए शैक्षिक और रोजगार योजनाओं पर सिफारिशें।
न्यायिक समीक्षा: आयोग के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि आयोग के कार्य संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करें। उदाहरण: वन अधिकार या आरक्षण पर आयोग की सिफारिशों की समीक्षा।
- न्यायिक समीक्षा: आयोग की सिफारिशों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: आयोग: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग। कर्तव्य: निगरानी, जाँच, सिफारिश। शक्तियाँ: सिविल कोर्ट की तरह। रिपोर्ट: राष्ट्रपति और संसद को।
ऐतिहासिक उदाहरण: 2003: 89वां संशोधन द्वारा ST आयोग की स्थापना। 2006: वन अधिकार अधिनियम पर आयोग की भूमिका। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में ST के लिए समावेश और भूमि-वन अधिकार।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 338: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग। अनुच्छेद 335: SC/ST के लिए सेवाएँ। अनुच्छेद 330-332: SC/ST के लिए आरक्षण। अनुच्छेद 342: ST की अधिसूचना।
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jp Singh
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