Article 338 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:53:23
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338
अनुच्छेद 338 भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes) से संबंधित है। यह प्रावधान अनुसूचित जातियों (SC) के हितों की रक्षा और उनके सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष आयोग की स्थापना और उसके कार्यों को निर्धारित करता है।
"(1) अनुसूचित जातियों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग होगा, जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग कहा जाएगा।
(2) आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और अन्य सदस्य होंगे, जिन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करेगा।
(3) आयोग का कर्तव्य होगा कि वह अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक और अन्य कानूनी सुरक्षा उपायों की निगरानी करे, उनकी शिकायतों की जाँच करे, और उनके कल्याण के लिए सिफारिशें करे।
(4) आयोग को अपनी जाँच में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(5) आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करेगा, जो इसे संसद के समक्ष रखेगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 338 का उद्देश्य अनुसूचित जातियों (SC) के सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक विकास को सुनिश्चित करना और उनके खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना करना है। यह आयोग SC के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों (जैसे, अनुच्छेद 15, 16, 330, 332) की निगरानी करता है। इसका लक्ष्य सामाजिक न्याय, समानता, और लोकतांत्रिक समावेश को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 338 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। मूल रूप से, यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों दोनों के लिए एक विशेष अधिकारी (Special Officer) की व्यवस्था करता था। संशोधन: 65वां संशोधन (1990):विशेष अधिकारी को हटाकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की स्थापना की गई। 89वां संशोधन (2003):SC और ST के लिए अलग-अलग आयोग बनाए गए: अनुच्छेद 338 (SC) और अनुच्छेद 338A (ST)।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने SC/ST समुदायों के खिलाफ ऐतिहासिक भेदभाव को संबोधित करने के लिए मजबूत तंत्र की आवश्यकता महसूस की। अनुच्छेद 338 ने इसे संवैधानिक आधार दिया। प्रासंगिकता (2025): यह आयोग SC समुदाय के लिए आरक्षण, शिक्षा, और रोजगार में समावेश सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से डिजिटल और तकनीकी क्षेत्रों में।
अनुच्छेद 338 के प्रमुख तत्व
आयोग की स्थापना: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करता है। उदाहरण: 2025 में आयोग के अध्यक्ष (वर्तमान जानकारी के आधार पर अपडेट आवश्यक)।
आयोग के कर्तव्य: संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की निगरानी। SC के खिलाफ भेदभाव की शिकायतों की जाँच। उनके कल्याण के लिए नीतियों और योजनाओं पर सिफारिशें। उदाहरण: आरक्षण नीति के उल्लंघन की जाँच।
शक्तियाँ:मा आयोग को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे गवाहों को बुलाना और दस्तावेजों की माँग करना। उदाहरण: भेदभाव के मामलों में जाँच। रिपोर्ट: आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जो इसे संसद के समक्ष रखता है। उदाहरण: SC के लिए शैक्षिक योजनाओं पर सिफारिशें।
न्यायिक समीक्षा: आयोग के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि आयोग के कार्य संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करें। उदाहरण: आयोग की सिफारिशों पर कोर्ट की समीक्षा।
महत्व: सामाजिक न्याय: SC के खिलाफ भेदभाव का निवारण। लोकतांत्रिक समावेश: SC का प्रशासन और समाज में प्रतिनिधित्व। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। न्यायिक समीक्षा:
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1990: विशेष अधिकारी द्वारा SC/ST की निगरानी। 1990: 65वां संशोधन द्वारा संयुक्त आयोग। 2003: 89वां संशोधन द्वारा अलग SC आयोग। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में SC के लिए समावेश।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 338A: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग। अनुच्छेद 335: SC/ST के लिए सेवाएँ। अनुच्छेद 330-332: SC/ST के लिए आरक्षण। अनुच्छेद 341: SC की अधिसूचना।
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jp Singh
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