Article 337 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:51:50
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 337
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 337
अनुच्छेद 337 भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए शैक्षिक संस्थानों को विशेष अनुदान (Special provision with respect to educational grants for the benefit of Anglo-Indian community) से संबंधित है। यह प्रावधान आंग्ल-भारतीय समुदाय द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थानों को सरकारी अनुदान प्रदान करने की व्यवस्था करता था, जो संविधान लागू होने के बाद एक निश्चित अवधि तक सीमित था।
"इस संविधान के प्रारंभ के बाद पहले तीन वर्षों के दौरान, आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए शैक्षिक संस्थानों को वही अनुदान प्रदान किए जाएँगे, जो उन्हें तत्काल पहले प्राप्त थे। इसके बाद, ये अनुदान हर दो वर्ष में 10% की दर से कम होते जाएँगे, जब तक कि वे पूरी तरह समाप्त न हो जाएँ।"
वर्तमान स्थिति (2025): - अनुच्छेद 337 के तहत विशेष अनुदान 1960 तक पूरी तरह समाप्त हो चुके थे। - यह प्रावधान अब अप्रासंगिक है, क्योंकि आंग्ल-भारतीय समुदाय की जनसंख्या में कमी और उनके मुख्यधारा में एकीकरण के कारण इसकी आवश्यकता नहीं रही।
उद्देश्य: अनुच्छेद 337 का उद्देश्य आंग्ल-भारतीय समुदाय द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थानों को संविधान लागू होने के बाद एक संक्रमणकालीन अवधि के दौरान सरकारी अनुदान प्रदान करना था। यह सुनिश्चित करता था कि आंग्ल-भारतीय समुदाय की शैक्षिक सुविधाएँ स्वतंत्रता के बाद अचानक प्रभावित न हों। इसका लक्ष्य सामाजिक समावेश, शैक्षिक समर्थन, और संवैधानिक संतुलन को बनाए रखना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 337 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें आंग्ल-भारतीय समुदाय के शैक्षिक संस्थानों को विशेष अनुदान प्राप्त थे। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के समय, आंग्ल-भारतीय समुदाय (ऐसे व्यक्ति जिनके पूर्वज ब्रिटिश या यूरोपीय और भारतीय मूल के थे) ने कई शैक्षिक संस्थान स्थापित किए थे, जैसे स्कूल और कॉलेज, जो उनकी संस्कृति और शिक्षा प्रणाली को बनाए रखते थे।
अनुच्छेद 337 ने स्वतंत्रता के बाद इन संस्थानों को एक संक्रमणकालीन व्यवस्था प्रदान की। समाप्ति: अनुच्छेद 337 के तहत विशेष अनुदान 1950 से शुरू होकर 1960 तक (10 वर्षों में) पूरी तरह समाप्त हो गए। 104वां संशोधन (2019) ने अनुच्छेद 331 और 333 के तहत आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए नामांकन को भी समाप्त कर दिया, जिससे इस समुदाय के लिए विशेष उपबंध पूरी तरह अप्रासंगिक हो गए। प्रासंगिकता (2025): अनुच्छेद 337 का अब कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है, लेकिन यह संविधान के ऐतिहासिक और समावेशी चरित्र को दर्शाता है।
अनुच्छेद 337 के प्रमुख तत्व
खंड (1): प्रारंभिक तीन वर्ष: संविधान लागू होने के बाद पहले तीन वर्षों (1950-1953) तक, आंग्ल-भारतीय समुदाय के शैक्षिक संस्थानों को वही अनुदान प्राप्त थे, जो उन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान मिलते थे। उदाहरण: आंग्ल-भारतीय स्कूलों (जैसे, ला मार्टिनियर, कोलकाता) को अनुदान।
खंड (2): क्रमिक समाप्ति: तीन वर्षों के बाद (1953 से), ये अनुदान हर दो वर्ष में 10% की दर से कम होते गए, जब तक कि वे 1960 तक पूरी तरह समाप्त नहीं हो गए। यह एक संक्रमणकालीन व्यवस्था थी। उदाहरण: 1953-1960 के बीच अनुदानों की धीरे-धीरे समाप्ति।
न्यायिक समीक्षा: अनुदान से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती थी। कोर्ट यह सुनिश्चित करता था कि ये उपबंध संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14 और 30) का पालन करें। उदाहरण: ऐतिहासिक रूप से आंग्ल-भारतीय संस्थानों के अनुदान पर कोर्ट की समीक्षा।
महत्व (ऐतिहासिक): सामाजिक समावेश: आंग्ल-भारतीय समुदाय का शैक्षिक समर्थन। संक्रमणकालीन समर्थन: स्वतंत्रता के बाद समायोजन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। न्यायिक समीक्षा: उपबंधों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: अनुदान: आंग्ल-भारतीय शैक्षिक संस्थानों के लिए। अवधि: 1950-1960। समाप्ति: 1960 में पूर्ण। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1953: आंग्ल-भारतीय स्कूलों को पूर्ण अनुदान। 1953-1960: क्रमिक समाप्ति। 2025 स्थिति: प्रावधान अप्रासंगिक।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 336: आंग्ल-भारतीय के लिए सेवाएँ। अनुच्छेद 331: आंग्ल-भारतीय नामांकन (निरस्त)। अनुच्छेद 333: विधानसभाओं में आंग्ल-भारतीय नामांकन (निरस्त)। अनुच्छेद 366(2): आंग्ल-भारतीय की परिभाषा।
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jp Singh
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