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Article 333 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 17:39:46
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 333

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 333
104वें संवैधानिक संशोधन (2019) द्वारा अनुच्छेद 333 के तहत आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए राज्य विधानसभाओं में नामांकन की व्यवस्था को 31 जनवरी 2020 से समाप्त कर दिया गया।
अनुच्छेद 333 भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह राज्य विधानसभाओं में आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए नामांकन (Representation of the Anglo-Indian community in the Legislative Assemblies of the States) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को यह शक्ति देता था कि वह आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व के लिए राज्य की विधानसभा में अधिकतम एक सदस्य को नामांकित कर सके, यदि उसे लगता था कि इस समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
"यदि राज्यपाल का यह विचार हो कि आंग्ल-भारतीय समुदाय को किसी राज्य की विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, तो वह इस समुदाय के एक व्यक्ति को उस विधानसभा में नामांकित कर सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 333 का उद्देश्य आंग्ल-भारतीय समुदाय को राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था, क्योंकि यह समुदाय संख्यात्मक रूप से छोटा होने के कारण निर्वाचन प्रक्रिया में सीटें नहीं जीत पाता था। यह सामाजिक और ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट समुदाय के लिए सामाजिक समावेश और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता था। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक समावेश और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 333 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए प्रांतीय विधानसभाओं में विशेष प्रतिनिधित्व की व्यवस्था थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के समय, आंग्ल-भारतीय समुदाय (ऐसे व्यक्ति जिनके पूर्वज ब्रिटिश या यूरोपीय और भारतीय मूल के थे) भारत में एक छोटा लेकिन विशिष्ट समुदाय था। उनकी संस्कृति और हितों को संरक्षित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया।
104वां संशोधन (2019): इस संशोधन ने अनुच्छेद 333 और 331 (लोकसभा में आंग्ल-भारतीय नामांकन) के तहत नामांकन की व्यवस्था को समाप्त कर दिया। कारण: आंग्ल-भारतीय समुदाय की जनसंख्या में कमी और उनकी मुख्यधारा में एकीकरण। प्रासंगिकता (2025): वर्तमान में, अनुच्छेद 333 का कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है, क्योंकि नामांकन की व्यवस्था समाप्त हो चुकी है। यह संविधान के ऐतिहासिक और समावेशी चरित्र को दर्शाता है।
अनुच्छेद 333 के प्रमुख तत्व
राज्यपाल की शक्ति: यदि राज्यपाल को लगता था कि आंग्ल-भारतीय समुदाय को राज्य विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला, तो वह इस समुदाय से एक सदस्य को नामांकित कर सकता था। यह नामांकन निर्वाचन प्रक्रिया से अलग था। उदाहरण (ऐतिहासिक): 1952 से 2020 तक, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसी विधानसभाओं में आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधियों का नामांकन।
आंग्ल-भारतीय की परिभाषा: संविधान के अनुच्छेद 366(2) के अनुसार, आंग्ल-भारतीय वह व्यक्ति है जिसका पिता या कोई अन्य पुरुष पूर्वज यूरोपीय मूल का हो और जो भारत में स्थायी रूप से निवास करता हो। उदाहरण: आंग्ल-भारतीय नेताओं जैसे डेरेक ओ’ब्रायन के पूर्वजों का नामांकन।
नामांकन का अंत (2020): 104वें संशोधन ने इस व्यवस्था को समाप्त किया, क्योंकि आंग्ल-भारतीय समुदाय की जनसंख्या कम हो गई थी और उनकी मुख्यधारा में एकीकरण हो चुका था। यह निर्णय लोकतांत्रिक समानता और आधुनिक जनसांख्यिकी को ध्यान में रखकर लिया गया।
न्यायिक समीक्षा: नामांकन से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती थी। कोर्ट यह सुनिश्चित करता था कि नामांकन संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करता हो। उदाहरण: ऐतिहासिक रूप से नामांकन की प्रक्रिया पर कोर्ट की समीक्षा।
महत्व (ऐतिहासिक): सामाजिक समावेश: छोटे समुदाय को प्रतिनिधित्व। लोकतांत्रिक समावेश: आंग्ल-भारतीय की आवाज विधानसभाओं में। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। न्यायिक समीक्षा: नामांकन की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: नामांकन: आंग्ल-भारतीय के लिए। प्राधिकारी: राज्यपाल। सीमा: एक सदस्य। वर्तमान स्थिति: 2020 में समाप्त।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1952-2020: आंग्ल-भारतीय सदस्यों का विधानसभाओं में नामांकन। 2019: 104वां संशोधन प्रस्तावित। 2025 स्थिति: नामांकन व्यवस्था समाप्त।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 331: लोकसभा में आंग्ल-भारतीय नामांकन (निरस्त)। अनुच्छेद 330: लोकसभा में SC/ST आरक्षण। अनुच्छेद 332: विधानसभाओं में SC/ST आरक्षण। अनुच्छेद 341-342: SC/ST की अधिसूचना।
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