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Article 332 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 17:38:17
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 332

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 332
अनुच्छेद 332 भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण (Reservation of seats for Scheduled Castes and Scheduled Tribes in the Legislative Assemblies of the States) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों को प्रत्येक राज्य की विधानसभा में उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिले।
"(1) प्रत्येक राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होंगी।
(2) प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगी।
(3) इस अनुच्छेद के तहत आरक्षण संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार होगा।
(4) इस अनुच्छेद के तहत कुछ भी यह नहीं मानेगा कि अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें उन राज्यों में आरक्षित होंगी, जिनमें उनकी जनसंख्या नगण्य है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 332 का उद्देश्य अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) को राज्य विधानसभाओं में उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करना है। यह सामाजिक और ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों के लिए सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक समावेश सुनिश्चित करता है। इसका लक्ष्य सामाजिक समानता, प्रतिनिधित्व, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 332 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें कुछ समुदायों के लिए सीटों का आरक्षण था, लेकिन SC/ST पर विशेष ध्यान नहीं था। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने सामाजिक रूप से वंचित समुदायों (SC/ST) को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण नीति अपनाई। अनुच्छेद 332 ने इसे राज्यों के स्तर पर लागू किया।
संशोधन: 8वां संशोधन (1959), 23वां संशोधन (1969), 45वां संशोधन (1980), 79वां संशोधन (1999), और 104वां संशोधन (2019) ने SC/ST के लिए आरक्षण की अवधि को बढ़ाया। वर्तमान में, यह आरक्षण 2030 तक लागू है। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान SC/ST समुदायों के लिए राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 332 के प्रमुख तत्व
खंड (1): सीटों का आरक्षण: प्रत्येक राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होंगी। यह सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों से अलग विशेष निर्वाचन क्षेत्रों में होता है। उदाहरण: उत्तर प्रदेश विधानसभा में SC के लिए 89 और ST के लिए 2 सीटें।
खंड (2): जनसंख्या के अनुपात में: प्रत्येक राज्य में SC/ST के लिए सीटों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगी। यह परिसीमन आयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है। उदाहरण: झारखंड में ST की जनसंख्या के आधार पर आरक्षित सीटें।
खंड (3): संसद का कानून: आरक्षण की प्रक्रिया और विवरण संसद द्वारा बनाए गए कानून (जैसे, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950) के अनुसार होंगे। उदाहरण: परिसीमन अधिनियम, 2002।
खंड (4): अपवाद: उन राज्यों में, जहाँ अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या नगण्य है, उनके लिए सीटें आरक्षित नहीं होंगी। उदाहरण: गोवा जैसे राज्यों में ST के लिए कोई आरक्षण नहीं।
न्यायिक समीक्षा: आरक्षण से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि आरक्षण संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करता हो। उदाहरण: परिसीमन या आरक्षण नीति पर कोर्ट की समीक्षा।
महत्व: सामाजिक न्याय: वंचित समुदायों का प्रतिनिधित्व। लोकतांत्रिक समावेश: SC/ST की आवाज विधानसभाओं में। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में एकरूपता। न्यायिक समीक्षा: आरक्षण की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: आरक्षण: SC/ST के लिए सीटें। अनुपात: जनसंख्या आधारित। कानून: संसद द्वारा नियमन। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1951-52: प्रथम विधानसभा चुनावों में SC/ST के लिए सीटें। 2002: परिसीमन आयोग द्वारा SC/ST सीटों का पुनर्निर्धारण। 2025 स्थिति: 2030 तक आरक्षण की निरंतरता।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 330: लोकसभा में SC/ST आरक्षण। अनुच्छेद 331: आंग्ल-भारतीय नामांकन (निरस्त)। अनुच्छेद 341-342: SC/ST की अधिसूचना। अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग।
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