Article 331 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:35:56
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 331
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 331
अनुच्छेद 331 भारतीय संविधान के भाग XVI (कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध) में आता है। यह लोकसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए नामांकन (Representation of the Anglo-Indian community in the House of the People) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व के लिए लोकसभा में अधिकतम दो सदस्यों को नामांकित कर सके, यदि उसे लगता है कि इस समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
"यदि राष्ट्रपति का यह विचार हो कि आंग्ल-भारतीय समुदाय को लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, तो वह इस समुदाय के अधिकतम दो व्यक्तियों को लोकसभा में नामांकित कर सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 331 का उद्देश्य आंग्ल-भारतीय समुदाय को लोकसभा में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था, क्योंकि यह समुदाय संख्यात्मक रूप से छोटा होने के कारण निर्वाचन प्रक्रिया में पर्याप्त सीटें नहीं जीत पाता था। यह सामाजिक और ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट समुदाय के लिए सामाजिक समावेश और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता था। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक समावेश और संवैधानिक संतुलन को बनाए रखना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 331 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए विशेष प्रतिनिधित्व की व्यवस्था थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के समय, आंग्ल-भारतीय समुदाय (ऐसे व्यक्ति जिनके पूर्वज ब्रिटिश या यूरोपीय और भारतीय मूल के थे) भारत में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण समुदाय था। उनकी संस्कृति और हितों को संरक्षित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया।
104वां संशोधन (2019): इस संशोधन ने अनुच्छेद 331 और 333 (राज्य विधानसभाओं में आंग्ल-भारतीय नामांकन) के तहत नामांकन की व्यवस्था को समाप्त कर दिया। कारण: आंग्ल-भारतीय समुदाय की जनसंख्या में कमी और उनकी मुख्यधारा में एकीकरण। प्रासंगिकता (2025): वर्तमान में, अनुच्छेद 331 का कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है, क्योंकि नामांकन की व्यवस्था समाप्त हो चुकी है। हालाँकि, यह संविधान के ऐतिहासिक और समावेशी चरित्र को दर्शाता है।
अनुच्छेद 331 के प्रमुख तत्व
राष्ट्रपति की शक्ति: यदि राष्ट्रपति को लगता है कि आंग्ल-भारतीय समुदाय को लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला, तो वह इस समुदाय से अधिकतम दो सदस्य नामांकित कर सकता था। यह नामांकन निर्वाचन प्रक्रिया से अलग था। उदाहरण (ऐतिहासिक): 1952 से 2020 तक, आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधियों का नामांकन।
आंग्ल-भारतीय की परिभाषा: संविधान के अनुच्छेद 366(2) के अनुसार, आंग्ल-भारतीय वह व्यक्ति है जिसका पिता या कोई अन्य पुरुष पूर्वज यूरोपीय मूल का हो और जो भारत में स्थायी रूप से निवास करता हो। उदाहरण: फ्रैंक एंथनी जैसे आंग्ल-भारतीय नेताओं का नामांकन।
नामांकन का अंत (2020): 104वें संशोधन ने इस व्यवस्था को समाप्त किया, क्योंकि आंग्ल-भारतीय समुदाय की जनसंख्या कम हो गई थी और उनकी मुख्यधारा में एकीकरण हो चुका था। यह निर्णय लोकतांत्रिक समानता और आधुनिक जनसांख्यिकी को ध्यान में रखकर लिया गया।
न्यायिक समीक्षा: नामांकन से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती थी। कोर्ट यह सुनिश्चित करता था कि नामांकन संवैधानिक सिद्धांतों (जैसे, अनुच्छेद 14) का पालन करता हो। उदाहरण: ऐतिहासिक रूप से नामांकन की प्रक्रिया पर कोर्ट की समीक्षा।
महत्व (ऐतिहासिक): सामाजिक समावेश: छोटे समुदाय को प्रतिनिधित्व। लोकतांत्रिक समावेश: आंग्ल-भारतीय की आवाज संसद में। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में संतुलन। न्यायिक समीक्षा: नामांकन की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: नामांकन: आंग्ल-भारतीय के लिए। प्राधिकारी: राष्ट्रपति। सीमा: अधिकतम दो सदस्य। वर्तमान स्थिति: 2020 में समाप्त।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1952-2020: आंग्ल-भारतीय सदस्यों का लोकसभा में नामांकन। 2019: 104वां संशोधन प्रस्तावित। 2025 स्थिति: नामांकन व्यवस्था समाप्त।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 330: SC/ST के लिए आरक्षण। अनुच्छेद 332: विधानसभाओं में SC/ST आरक्षण। अनुच्छेद 333: विधानसभाओं में आंग्ल-भारतीय नामांकन (निरस्त)। अनुच्छेद 341-342: SC/ST की अधिसूचना।
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jp Singh
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