Article 328 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:29:33
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 328
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 328
अनुच्छेद 328 भारतीय संविधान के भाग XV (चुनाव) में आता है। यह राज्य विधानमंडल की चुनाव संबंधी कानून बनाने की शक्ति (Power of Legislature of a State to make provision with respect to elections to such Legislature) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल को अपनी विधानसभा और विधान परिषद (यदि हो) के चुनावों से संबंधित कानून बनाने की शक्ति देता है, बशर्ते यह संसद के कानूनों से असंगत न हो।
"इस संविधान और संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के उपबंधों के अधीन, किसी राज्य का विधानमंडल उस राज्य की विधानसभा या विधान परिषद (यदि हो) के लिए चुनावों से संबंधित उपबंध करने के लिए कानून बना सकता है, जिसमें निर्वाचक नामावलियों की तैयारी और अन्य मामले शामिल हैं, बशर्ते वह संसद के कानून से असंगत न हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 328 का उद्देश्य राज्य विधानमंडल को अपनी विधानसभा और विधान परिषद (यदि हो) के लिए चुनावी प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिए कानून बनाने की शक्ति देना है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्थानीय स्तर पर नियम बनाए जा सकें, लेकिन वे संसद के कानूनों और संविधान के अनुरूप हों। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन, लोकतांत्रिक प्रक्रिया, और प्रशासनिक लचीलापन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 328 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें प्रांतीय विधानसभाओं को कुछ हद तक चुनावी नियम बनाने की शक्ति थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए राज्यों को सीमित विधायी शक्तियाँ दीं, ताकि वे अपनी चुनावी प्रक्रियाओं को स्थानीय जरूरतों के अनुसार संचालित कर सकें। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान राज्यों को स्थानीय निकाय चुनावों और विधानसभा चुनावों में डिजिटल मतदान, मतदाता सूची प्रबंधन, और अन्य प्रक्रियाओं के लिए नियम बनाने में मदद करता है।
अनुच्छेद 328 के प्रमुख तत्व
राज्य विधानमंडल की शक्ति: राज्य विधानमंडल को निम्नलिखित के लिए कानून बनाने का अधिकार है: निर्वाचक नामावलियाँ: मतदाता सूची की तैयारी और प्रबंधन। चुनावी प्रक्रियाएँ: मतदान, मतगणना, और अन्य व्यवस्थाएँ। अन्य मामले: राज्य-विशिष्ट चुनावी नियम। यह शक्ति संसद के कानूनों और संविधान के अधीन है। उदाहरण: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची नियम।
संसद के कानूनों के साथ संगति: राज्य के कानून संसद के कानूनों (जैसे, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) से असंगत नहीं हो सकते। यह संघीय ढांचे में एकरूपता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: राज्य का कानून जन प्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन नहीं कर सकता।
न्यायिक समीक्षा: राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानूनों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि कानून संवैधानिक और निष्पक्ष हों। उदाहरण: राज्य के चुनावी कानून पर कोर्ट की समीक्षा।
महत्व: संघीय ढांचा: राज्यों को सीमित स्वायत्तता। प्रशासनिक लचीलापन: स्थानीय जरूरतों के लिए नियम। लोकतांत्रिक प्रक्रिया: निष्पक्ष और एकरूप चुनाव। न्यायिक समीक्षा: कानूनों की वैधता पर निगरानी।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: राज्यों द्वारा विधानसभा चुनाव नियम। 2000 के दशक: स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य कानून। 2025 स्थिति: डिजिटल मतदाता सूची और EVM नियम।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग। अनुच्छेद 325: मतदाता सूची में समानता। अनुच्छेद 326: वयस्क मताधिकार। अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप।
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