Article 325 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:22:38
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 325
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 325
अनुच्छेद 325 भारतीय संविधान के भाग XV (चुनाव) में आता है। यह चुनावों में मतदाता सूची में समानता (No person to be ineligible for inclusion in, or to claim to be included in a special, electoral roll on grounds of religion, race, caste or sex) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि भारत में मतदाता सूची में शामिल होने या मतदान के लिए कोई भी व्यक्ति धर्म, नस्ल, जाति, या लिंग के आधार पर भेदभाव का शिकार नहीं होगा।
"कोई भी व्यक्ति धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर सामान्य निर्वाचक नामावली में शामिल होने के लिए अपात्र नहीं होगा, न ही वह ऐसी आधार पर किसी विशेष निर्वाचक नामावली में शामिल होने का दावा कर सकेगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 325 का उद्देश्य भारत में सामान्य मतदाता सूची (General Electoral Roll) की व्यवस्था को सुनिश्चित करना है, जिसमें सभी पात्र नागरिकों को बिना किसी भेदभाव (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग) के शामिल किया जाए। यह विशेष मतदाता सूची (जैसे, केवल किसी धर्म या जाति के लिए) की माँग को रोकता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक समानता, निष्पक्ष चुनाव, और संवैधानिक मूल्यों (जैसे, अनुच्छेद 14 की समानता) को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 325 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 के विपरीत था, जिसमें कुछ समुदायों (जैसे, मुस्लिम, सिख) के लिए अलग मतदाता सूचियाँ थीं। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने सामुदायिक आधारित मतदाता सूचियों को समाप्त कर एक समान मतदाता सूची की व्यवस्था अपनाई, जो समावेशी लोकतंत्र को बढ़ावा देती है। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान सामाजिक समावेश और निष्पक्ष मतदान प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से डिजिटल मतदाता सूची और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में।
अनुच्छेद 325 के प्रमुख तत्व
समान मतदाता सूची: कोई भी व्यक्ति धर्म, नस्ल, जाति, या लिंग के आधार पर सामान्य मतदाता सूची में शामिल होने के लिए अपात्र नहीं ठहराया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि सभी पात्र नागरिक (18 वर्ष से अधिक आयु) मतदाता सूची में शामिल हों। उदाहरण: 2024 लोकसभा चुनाव में एकल मतदाता सूची का उपयोग।
विशेष सूची पर प्रतिबंध: कोई भी व्यक्ति धर्म, नस्ल, जाति, या लिंग के आधार पर विशेष मतदाता सूची में शामिल होने का दावा नहीं कर सकता। यह सामुदायिक आधारित अलगाव को रोकता है। उदाहरण: अलग धार्मिक समुदाय के लिए विशेष सूची की माँग को अस्वीकार करना।
न्यायिक समीक्षा: मतदाता सूची से संबंधित निर्णयों को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया संवैधानिक और निष्पक्ष हो। उदाहरण: मतदाता सूची में हेरफेर के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप।
महत्व: लोकतांत्रिक समानता: सभी नागरिकों के लिए समान मतदान अधिकार। सामाजिक समावेश: भेदभाव के बिना मतदाता सूची। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों में एकरूपता। न्यायिक समीक्षा: प्रक्रिया की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: समानता: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग पर भेदभाव नहीं। एकल सूची: सामान्य मतदाता सूची। प्रतिबंध: विशेष सूची की माँग पर रोक। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1951-52: भारत का पहला आम चुनाव, एकल मतदाता सूची के साथ। 2000 के दशक: मतदाता सूची में समावेश पर कोर्ट के निर्णय। 2025 स्थिति: डिजिटल मतदाता सूची और साइबर सुरक्षा पर जोर।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग। अनुच्छेद 326: वयस्क मताधिकार। अनुच्छेद 327: संसद की शक्ति। अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप।
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