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Article 323B of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 17:17:59
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 323B

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 323B
अनुच्छेद 323B भारतीय संविधान के भाग XIV-A (न्यायाधिकरण) में आता है। यह विशिष्ट मामलों के लिए न्यायाधिकरण (Tribunals for other matters) की स्थापना से संबंधित है। यह प्रावधान संसद और राज्य विधानमंडल को विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे कर, श्रम, पर्यावरण आदि) से संबंधित विवादों के लिए न्यायाधिकरण स्थापित करने की शक्ति देता है।
"(1) संसद या राज्य विधानमंडल, कानून द्वारा, निम्नलिखित मामलों से संबंधित विवादों या शिकायतों के लिए न्यायाधिकरण स्थापित कर सकते हैं:
(क) कराधान;
(ख) विदेशी मुद्रा, आयात-निर्यात;
(ग) औद्योगिक और श्रम विवाद;
(घ) भूमि सुधार;
(ङ) खाद्य पदार्थों की आपूर्ति;
(च) किराया नियंत्रण;
(छ) पंचायत और नगरपालिका चुनाव;
(ज) अन्य निर्दिष्ट मामले।
(2) ऐसा कानून निम्नलिखित को प्रदान कर सकता है:
(क) न्यायाधिकरण की संरचना, शक्तियाँ, और प्रक्रियाएँ।
(ख) ऐसे मामलों में उच्च न्यायालयों की क्षेत्राधिकार को छोड़कर।
(3) इस अनुच्छेद के तहत बनाया गया कानून संविधान के अन्य प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 323B का उद्देश्य संसद और राज्य विधानमंडल को विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे कर, श्रम, पर्यावरण) से संबंधित विवादों के लिए विशेष न्यायाधिकरण स्थापित करने की शक्ति देना है। यह न्यायालयों पर बोझ कम करता है और विशेषज्ञता आधारित, त्वरित समाधान प्रदान करता है। इसका लक्ष्य न्याय की गति, विशेषज्ञता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 323B को 42वें संवैधानिक संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया। यह स्वर्ण सिंह समिति (1976) की सिफारिशों पर आधारित था, जिसने विशेष क्षेत्रों में विवादों के लिए न्यायाधिकरणों की आवश्यकता बताई। भारतीय संदर्भ: 1970 के दशक में, उच्च न्यायालयों पर विशिष्ट विवादों (जैसे कर, श्रम) के मामलों का बोझ बढ़ रहा था। अनुच्छेद 323B ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT) जैसे न्यायाधिकरणों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान पर्यावरण, डिजिटल अर्थव्यवस्था, और साइबर कानून जैसे उभरते क्षेत्रों में विवादों के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 323B के प्रमुख तत्व
खंड (1): न्यायाधिकरण की स्थापना: संसद और राज्य विधानमंडल निम्नलिखित क्षेत्रों में न्यायाधिकरण स्थापित कर सकते हैं: कराधान: आयकर, GST आदि। विदेशी मुद्रा: FEMA, आयात-निर्यात। औद्योगिक और श्रम विवाद: मजदूरी, यूनियन विवाद। भूमि सुधार: भूमि अधिग्रहण, स्वामित्व। खाद्य पदार्थ: आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति। किराया नियंत्रण: किरायेदारी विवाद। स्थानीय चुनाव: पंचायत/नगरपालिका। अन्य मामले: संसद/विधानमंडल द्वारा निर्दिष्ट। उदाहरण: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) पर्यावरण विवादों के लिए।
खंड (2): कानून के उपबंध: ऐसा कानून निम्नलिखित को निर्धारित कर सकता है: संरचना: न्यायाधिकरण के अध्यक्ष, सदस्य, और कर्मचारी। शक्तियाँ और प्रक्रियाएँ: विवादों के निपटारे की प्रक्रिया। उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार: इन मामलों में उच्च न्यायालयों की क्षेत्राधिकार को हटाना। उदाहरण: NGT अधिनियम, 2010।
खंड (3): संवैधानिक अधीनता: इस अनुच्छेद के तहत बनाए गए कानून संविधान के अन्य प्रावधानों (जैसे, अनुच्छेद 14, 226) को प्रभावित नहीं करेंगे। उदाहरण: NGT के निर्णय की समीक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय की शक्ति।
न्यायिक समीक्षा: न्यायाधिकरणों के निर्णय उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिए जा सकते हैं, लेकिन उच्च न्यायालयों की क्षेत्राधिकार सीमित होती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय संवैधानिक और निष्पक्ष हों। उदाहरण: NGT के निर्णय पर उच्चतम न्यायालय में अपील।
महत्व: न्याय की गति: विशिष्ट विवादों का त्वरित निपटारा। विशेषज्ञता: क्षेत्र-विशिष्ट निर्णय। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: निर्णयों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: स्थापना: विशिष्ट न्यायाधिकरण। क्षेत्र: कर, श्रम, पर्यावरण आदि। क्षेत्राधिकार: उच्च न्यायालयों को छोड़कर। न्यायिक निगरानी: उच्चतम न्यायालय।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1985: आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT)। 2010: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना। 2025 स्थिति: साइबर और डिजिटल विवादों के लिए नए न्यायाधिकरण की माँग।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 323A: प्रशासकीय न्यायाधिकरण। अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोग की स्थापना। अनुच्छेद 320: आयोग के कार्य। अनुच्छेद 226: उच्च न्यायालय की शक्ति।
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