Article 321 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:10:04
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 321
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 321
अनुच्छेद 321 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह लोक सेवा आयोगों के कार्यों का विस्तार करने की शक्ति (Power to extend functions of Public Service Commissions) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद या राज्य विधानमंडल को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के कार्यों को विस्तार देने की शक्ति देता है, ताकि वे अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ संभाल सकें।
"संसद द्वारा बनाया गया कानून, संघ लोक सेवा आयोग या संयुक्त लोक सेवा आयोग के कार्यों को विस्तार दे सकता है, और राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून, राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यों को विस्तार दे सकता है, जैसा कि इस संविधान के उपबंधों के अधीन आवश्यक या वांछनीय हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 321 का उद्देश्य UPSC और SPSC के कार्यों को विस्तार देने की शक्ति प्रदान करना है, ताकि वे सिविल सेवाओं की भर्ती और अनुशासनात्मक मामलों के अलावा अन्य जिम्मेदारियाँ भी संभाल सकें। यह लचीलापन सुनिश्चित करता है कि आयोग बदलते प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार कार्य कर सकें। इसका लक्ष्य प्रशासनिक दक्षता, निष्पक्षता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 321 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें पब्लिक सर्विस कमीशन के कार्यों को विस्तार देने की व्यवस्था थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार लोक सेवा आयोगों के कार्यों को समायोजित करने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 321 ने इसे संवैधानिक आधार दिया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान UPSC और SPSC को डिजिटल प्रशासन, साइबर सुरक्षा, और अन्य उभरते क्षेत्रों में भर्ती या परामर्श जैसे अतिरिक्त कार्य सौंपने के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 321 के प्रमुख तत्व
संसद की शक्ति: संसद कानून बनाकर UPSC या संयुक्त लोक सेवा आयोग के कार्यों को विस्तार दे सकती है। यह अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ, जैसे विशेष भर्ती या परामर्श, शामिल कर सकता है। उदाहरण: साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की भर्ती के लिए UPSC को नया कार्य।
ज्य विधानमंडल की शक्ति: राज्य विधानमंडल कानून बनाकर SPSC के कार्यों को विस्तार दे सकता है। यह राज्य-विशिष्ट प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करता है। उदाहरण: UPPSC को स्थानीय निकाय भर्ती का कार्य।
संवैधानिक अधीनता: कार्यों का विस्तार संविधान के अन्य प्रावधानों (जैसे, अनुच्छेद 320) के अधीन होता है। यह सुनिश्चित करता है कि नए कार्य संवैधानिक ढांचे के अनुरूप हों। उदाहरण: कार्य विस्तार में अनुच्छेद 14 (समानता) का पालन।
न्यायिक समीक्षा: कार्यों के विस्तार से संबंधित कानूनों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि नए कार्य संवैधानिक और निष्पक्ष हों। उदाहरण: कार्य विस्तार के कानून पर कोर्ट का निर्णय।
महत्व: लचीलापन: आयोगों को नई जिम्मेदारियाँ सौंपने की क्षमता। प्रशासनिक दक्षता: बदलती जरूरतों के लिए अनुकूलन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: कार्यों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: विस्तार: नए कार्य सौंपना। प्राधिकारी: संसद/राज्य विधानमंडल। संवैधानिकता: अन्य प्रावधानों के अधीन। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: UPSC को अखिल भारतीय सेवाओं की भर्ती। 2000 के दशक: SPSC को स्थानीय निकाय भर्ती का कार्य। 2025 स्थिति: डिजिटल प्रशासन और साइबर सुरक्षा भर्ती।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोग की स्थापना। अनुच्छेद 316: सदस्यों की नियुक्ति। अनुच्छेद 317: बर्खास्तगी और निलंबन। अनुच्छेद 320: आयोग के कार्य।
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